
भारत के पड़ोसी नेपाल में एक बार फिर नए राजनीतिक समीकरण बन गए हैं. इससे पुष्प कमल दहाल 'प्रचंड' की सरकार अल्पमत में आ गई है. नेपाली कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने प्रचंड से इस्तीफा देने को कहा है, ताकि नई सरकार का गठन हो सके.
प्रचंड सरकार को पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) यानी CPN-UML का समर्थन था. लेकिन अब ओली की पार्टी ने प्रचंड सरकार से समर्थन वापस ले लिया है. अब CPN-UML और नेपाली कांग्रेस के बीच गठबंधन हो गया है.
हालांकि, प्रचंड प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि वो संसद में विश्वास मत का सामना करेंगे. नेपाल के संविधान के मुताबिक, प्रधानमंत्री को 30 दिन में विश्वास मत हासिल करना होगा.
जैसे को तैसा!
इस साल मार्च में प्रधानमंत्री प्रचंड ने शेर बहादुर देउबा की पार्टी को सरकार से बाहर कर दिया था. प्रचंड की सरकार देउबा की पार्टी नेपाली कांग्रेस के समर्थन से चल रही थी. दोनों ने 15 महीने तक सरकार चलाई.
लेकिन मार्च में देउबा की पार्टी को बाहर कर प्रचंड ने ओली की पार्टी CPN-UML को सरकार में शामिल कर लिया था.
न्यूज एजेंसी के मुताबिक, बीते हफ्ते देउबा ने ओली से मुलाकात की थी. इसके बाद ओली ने दो बार प्रधानमंत्री प्रचंड के साथ मीटिंग की थी.
अब शेर बहादुर देउबा की नेपाली कांग्रेस और केपी शर्मा ओली की CPN-UML ने गठबंधन कर लिया है. दोनों पार्टियों के बीच एक राजनीतिक समझौता भी हुआ है. इसके तहत, देउबा और ओली दोनों ही बारी-बारी से प्रधानमंत्री भी बनेंगे. पहले केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री बनेंगे और उनके बाद देउबा.
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दोनों पार्टियों में क्या समझौता हुआ?
ये समझौता सिर्फ प्रधानमंत्री पद की शेयरिंग को लेकर ही नहीं हुआ है. बल्कि, इसमें और भी कई अहम बात हैं. मसलन, जिस पार्टी का नेता सरकार की अगुवाई करेगा, उसे गृह मंत्रालय नहीं मिलेगा. यानी, केपी शर्मा ओली जब तक प्रधानमंत्री रहेंगे, तब तक CPN-UML को गृह मंत्रालय नहीं दिया जाएगा. गृह मंत्रालय शेर बहादुर देउबा की नेपाली कांग्रेस को मिलेगा.
दोनों पार्टियों ने संविधान संशोधन का एक ड्राफ्ट भी तैयार किया गया है. इसमें उपराष्ट्रपति को नेशनल असेंबली का अध्यक्ष बनाने का प्रावधान है.
ओली और देउबा की पार्टी सिर्फ केंद्र में ही सरकार नहीं बनाएगी, बल्कि दोनों के बीच प्रांतीय सरकारों को लेकर भी समझौता हुआ है. इसके तहत, ओली की पार्टी कोशी, लुंबिनी और करनाली प्रांत में सरकार की अगुवाई करेगी. जबकि, देउबा की पार्टी बागमती, गंडकी और सुदूर-पश्चिमी प्रांतों की सरकार का नेतृत्व करेगी.
संसद में किसकी कितनी ताकत?
नेपाल की संसद को प्रतिनिधि सभा कहा जाता है. 275 सीटों वाली संसद में सबसे बड़ी पार्टी देउबा की है. उनकी पार्टी नेपाली कांग्रेस के पास 89 सीटें हैं. जबकि, ओली की पार्टी CPN-UML की 78 सीटें हैं.
दूसरी ओर, प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) के पास महज 32 सीटें हैं.
इनके अलावा जनता समाजवादी पार्टी की 5, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी की 14 और लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी की 4 सीटें हैं.
नेपाली कांग्रेस के प्रवक्ता प्रकाश शरन महात ने दावा किया कि दूसरी पार्टियों ने भी नेपाली कांग्रेस और CPN-UML की सरकार को समर्थन कर रही हैं.
अब आगे क्या?
संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, बहुमत खोने वाले प्रधानमंत्री को 30 दिन के भीतर संसद में विश्वास मत साबित करना होता है. ऐसे में प्रचंड के पास अभी 30 दिन का समय है.
डेढ़ साल में ये पांचवीं बार होगा जब प्रचंड को सदन में बहुमत साबित करना होगा. शेर बहादुर देउबा ने प्रचंड से इस्तीफा देने का अनुरोध किया है.
नेपाली कांग्रेस के प्रवक्ता महात का कहना है कि प्रधानमंत्री को नई सरकार के गठन के लिए रास्ता साफ कर देना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर प्रधानमंत्री इस्तीफा नहीं देते हैं तो फिर संवैधानिक प्रक्रिया के तहत नई सरकार का गठन किया जाएगा.
16 साल में गिरी 13 सरकारें
साल 2008 तक नेपाल में राजशाही हुआ करती थी. 2008 में ही नेपाल गणतंत्र बना. और तब से अब तक यहां गठबंधन सरकारें ही बनी हैं. नेपाल के 16 साल के लोकतांत्रिक इतिहास में 13 सरकारें गिर चुकी हैं. अगर प्रचंड इस्तीफा देते हैं, तो फिर नेपाल की जनता 14वीं सरकार देखेगी.
दरअसल, नेपाल में अब तक जितनी भी सरकारें बनी हैं, वो दो या दो से ज्यादा पार्टियों के समर्थन से बनी हैं. इस कारण राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है.
2008 में जब पहला चुनाव हुआ तो पुष्प कमल दहाल प्रचंड की पार्टी ने सबसे ज्यादा सीटें जीतीं. उन्होंने सरकार बनाने के लिए ओली की CPN-UML से हाथ मिलाया. लेकिन 2009 में ही प्रचंड ने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद CPN-UML और नेपाली कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई. ये गठबंधन भी बहुत ज्यादा नहीं चला और 2010 में ही सरकार गिर गई.
इसके बाद झाला नाथ खनाल और बाबूराम भट्टाराई भी प्रधानमंत्री बने, लेकिन बहुत लंबे समय तक सत्ता पर काबिज नहीं रह सके. फरवरी 2014 में नेपाली कांग्रेस और CPN-UML ने मिलकर फिर सरकार बनाई और सुशील कोयराला प्रधानमंत्री बने. हालांकि, कोयराला को भी दो साल से भी कम वक्त में ही पद से हटना पड़ा.
2015 में केपी शर्मा ओली ने एक और नया गठबंधन बनाया और प्रधानमंत्री बने. अगस्त 2016 में छोटी-छोटी पार्टियों को साथ लाकर प्रचंड एक बार फिर प्रधानमंत्री बन गए.
साल 2017 में चुनाव हुए और इसके बाद ओली और प्रचंड की पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई. ये भी तय हुआ कि ओली और प्रचंड बारी-बारी से प्रधानमंत्री बनेंगे. लेकिन जब प्रचंड के पीएम बनने का वक्त आया तो ओली ने पलटी मार ली. इसके बाद ओली ने संसद भी भंग कर दी और चुनाव कराने का आदेश दिया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने संसद को बहाल कर दिया. इसके बाद शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री बने.
नवंबर 2022 में हुए चुनाव में शेर बहादुर देउबा की पार्टी ने सबसे ज्यादा 89 सीटें जीतीं, लेकिन बहुमत से दूर रही. एक बार फिर देउबा और प्रचंड ने मिलकर सरकार बनाई. प्रचंड प्रधानमंत्री बने, लेकिन दिसंबर 2022 में देउबा से उनके रिश्ते बिगड़ने लगे. मार्च 2023 में आखिरकार ये गठबंधन टूट गया, लेकिन ओली की पार्टी के समर्थन के चलते प्रचंड प्रधानमंत्री बने रहे.
इतिहास देखा जाए तो नेपाल में ज्यादातर सरकारें शर्तें तोड़ने के कारण गिरी हैं. प्रचंड और देउबा के बीच रिश्ते भी गठबंधन की शर्तें तोड़ने के कारण बिगड़े थे.