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नेपाल में हिंदू राष्ट्र और राजशाही की मांग क्या बदल देगी पड़ोसियों के साथ केमिस्ट्री, कहां कमजोर पड़ सकता है चीन?

नेपाल में राजशाही लौटाने की मांग को लेकर समर्थक सड़कों पर उतरे हुए हैं. साथ ही साथ हिंदू राष्ट्र की आवाज भी बुलंद है. लगभग 20 साल पहले लोकतंत्र आने के साथ ही देश को सेकुलर घोषित कर दिया गया. इसके साथ ही कई कूटनीतिक व्यवस्थाएं बदलीं. वो भारत से दूर हुआ, जबकि चीन के करीब दिखने लगा.

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नेपाल में राजशाही खत्म होने के बाद से राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है.
नेपाल में राजशाही खत्म होने के बाद से राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है.

काठमांडू में आजकल बहुत कुछ हो रहा है. वो लंबे समय तक दुनिया का अकेला हिंदू राष्ट्र रहा, जहां राजशाही भी लागू थी. साल 2008 में इस व्यवस्था के खत्म होने के कई सालों बाद संविधान बन सका जिसके तहत नेपाल अब धर्मनिरपेक्ष देश है. हालांकि नेपाली जनता लोकतंत्र और सेकुलरिज्म से उकता चुकी और राजा के शासन समेत हिंदू देश की मांग दोबारा उठा रही है. लेकिन काठमांडू में इस बदलाव का असर क्या केवल वहीं तक सीमित रहेगा, या नई इमेज के साथ पड़ोसियों से उसके रिश्ते भी बदलेंगे?

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कितने उतार-चढ़ाव आए नेपाल की राजनीति में

नेपाल का इतिहास राजनीतिक बदलावों से भरा हुआ है. राजशाही और हिंदू देश का दर्जा खत्म होने जैसी घटनाएं भी एक रात में नहीं हुईं, बल्कि कई पड़ाव आए. 18वीं सदी में छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर एक मजबूत हिंदू राजशाही की नींव रखी गई. इसके बाद करीब ढाई सौ सालों तक ये व्यवस्था बनी रही. लेकिन कई बदलावों के साथ. बीच में एक वक्त ऐसा भी आया, जब राजा यानी शाह वंश केवल सांकेतिक तौर पर ताकतवर था. वहीं असर पावर राणा परिवार के पास चली गई थी. इसे प्रॉक्सी मोनार्की भी कहा जाने लगा, जहां मुहर राजा की हो लेकिन फैसले दूसरे ले रहे हों. 

पचास के दशक में देश में बगावत हुई और फिर टुकड़े-टुकड़े में होते हुए रॉयल फैमिली के पास फिर ताकत आ गई. नब्बे के दशक में बाकी दुनिया की देखादेखी यहां फिर विद्रोह हुआ. ये इतना बड़ा था कि तत्कालीन राजा बीरेंद्र को मजबूर होकर कई फैसले लेने पड़े, जो आमतौर पर वे नहीं लेते. हालांकि नेपाल तब भी राजशाही और हिंदू राष्ट्र बना रहा. 

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nepal protests on pro monarchy and hindu nation impact on relation with china photo AP

साल 2001 में नेपाली राजशाही को बड़ा झटका तब लगा, जब तत्कालीन राजा बीरेन्द्र, रानी ऐश्वर्या और पूरे शाही परिवार को राजकुमार दीपेंद्र ने गोली मार दी. इसके बाद ज्ञानेंद्र शाह नए राजा बने. लेकिन उनकी तानाशाही इतनी बढ़ी कि जनता भड़क उठी और सत्ता अपने हाथ में ले ली. इस जन आंदोलन के बाद राजशाही को खत्म कर दिया, साथ ही देश का हिंदू राष्ट्र का दर्जा खत्म कर धर्मनिरपेक्षता लागू हो गई. 

क्यों गहराई वापसी की मांग

अब दोबारा राजशाही और सेकुलरिज्म हटा हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग जोरों पर है. दरअसल इसके पीछे आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक तीनों ही कारण रहे. साल 2008 में जब काठमांडू सेकुलर हुआ तो लोगों को उम्मीद थी कि स्थिरता आएगी, करप्शन कम होगा, और नेपाल आर्थिक रूप से मजबूत होगा. लेकिन हुआ उल्टा. दो दशक से भी कम वक्त में वहां लगभग दर्जनभर बार सरकार बदली. कोई भी पीएम अपना टर्म पूरा नहीं कर सका. लगभग सब पर करप्शन के आरोप लगे. देश में महंगाई तेजी से बढ़ी. ऐसे में लोगों को लगने लगा कि राजशाही के समय देश अधिक स्थिर था. 

हिंदू राष्ट्र होना ऐसा तमगा था, जिसे लेकर नेपाल कई बार गर्वित होता दिखा. धर्मनिरपेक्ष होने पर लोगों को लगने लगा कि उनकी धार्मिक और कल्चरल पहचान खत्म न हो जाए. इस बीच कथित तौर पर धर्मांतरण भी बढ़ा. 

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nepal protests on pro monarchy and hindu nation impact on relation with china photo Getty Images

फिलहाल किन धर्मों के लोग हैं 

साल 2021 के सेंसस के मुताबिक देश में हिंदू आबादी 81 प्रतिशत से भी ज्यादा है. इसके बाद 8 प्रतिशत के साथ बौद्ध धर्म के लोग हैं. इसके बाद इस्लाम को मानने वाले हैं, जो 5 प्रतिशत से कुछ ज्यादा रहे. इसके बाद ईसाई धर्म हैं, और बाकी मिले-जुले धर्म के लोग रहते हैं.

क्यों हो रही डेमोग्राफी बदलने की बात

यहां कथित तौर पर ईसाई और मुस्लिम धर्म को मानने वाले बढ़ रहे हैं. खासकर मुस्लिम एक दशक पहले वे 4 प्रतिशत थे, और फिर सीधे 5 प्रतिशत से ऊपर चले गए. जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू और बौद्ध धर्म के अनुयायियों में क्रमशः 0.11 प्रतिशत और 0.79 प्रतिशत की गिरावट आई है. इससे उलट, इस्लाम और ईसाइयों की जनसंख्या में क्रमशः 0.69, और 0.36 प्रतिशत की बढ़त हुई. इसे देखते हुए कई तरह का डर जताया जा रहा है, और माना जा रहा है कि देश को पुराना दर्जा देने पर ट्रैक रखना आसान हो सकेगा.

दे रहे शक्तिशाली देशों का हवाला

कई हिंदू संगठनों समेत नेपाली कांग्रेस का तर्क है कि अगर सनातन को बचाना है तो सेकुलर कहने से काम नहीं चलेगा. एक दलील ये भी है कि जब ताकतवर देश खुद को ईसाई या इस्लामिक कह सकते हैं तो नेपाल क्यों नहीं कह सकता. कई पार्टियां इसपर जनमत संग्रह की मांग करती रहीं कि देश को धर्मनिरपेक्ष ही कहा जाए या हिंदू राष्ट्र का आधिकारिक दर्जा दे दिया जाए. अब इसे ही लेकर प्रोटेस्ट हो रहे हैं.

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कैसे बदल सकता है भारत और चीन से रिश्ता 

काठमांडू अगर जनता की मांग मान ले तो देश के भीतर ही नहीं, बल्कि बाहर भी बहुत कुछ बदलेगा. खासकर उसके पड़ोसियों से रिश्ते. राजवंश के हाथ से सत्ता जाने के बाद से ही चीन ने वहां तेजी से अपना सिक्का जमाया. इसके पहले नेपाल का झुकाव भारत और वेस्ट की तरफ ज्यादा था. वैसे जहां तक भारत और चीन की बात है तो ये देश दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करता रहा. 

nepal protests on pro monarchy and hindu nation impact on relation with china photo Reuters

चीन की जड़ें हुईं मजबूत

राजशाही जाने के बाद वहां कम्युनिस्ट पार्टियों का दबदबा बढ़ा, जिन्हें चीन ने समर्थन दिया. बीजिंग ने नेपाल को वन चाइना पॉलिसी अपनाने के लिए मजबूर किया, यानी वो देश तिब्बती शरणार्थियों को अपने यहां नहीं रख सकता था. 

कम्युनिस्ट दलों के मजबूत होने के साथ वे चीन के व्यापार को भी अपनाने लगे. साल 2017 में चीन ने नेपाल में कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट शुरू कर दिए. यहां तक कि वहां के बाजारों में कथित तौर पर चीनी करेंसी भी चलने लगी और स्कूलों में चीन भाषा सिखाने पर जोर बढ़ा. 

एक तरफ नेपाल और चीन के रिश्ते परवान चढ़ रहे थे तो दूसरी तरफ भारत और काठमांडू के संबंध बिगड़ने लगे.

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पड़ोसी देश ने नक्शे पर भारत के कुछ हिस्सों को अपना दिखा दिया. यहां तक कि वो नागरिकता से लेकर पानी पर भी दिल्ली से उलझने लगा. नेपाल भारत और चीन के बीच बफर स्टेट की तरह है लेकिन उसके चीन की तरफ जाने से भारत को काफी मुश्किल हो सकती है. ये सामरिक से लेकर व्यापारिक लिहाज से भी अच्छा नहीं, वो भी तब जबकि हमारे रिश्ते हाल में कई पड़ोसियों से तल्ख हो चुके. 

अगर राजशाही वापस आए तो नेपाल फिर से भारत की ओर झुक सकता है. पहले भी राजवंश से दिल्ली के अच्छे संबंध रहे. हिंदू राष्ट्र बनने पर देश की सांस्कृतिक और धार्मिक नजदीकी और बढ़ेगी. इससे वहां की विदेश नीति भारत समर्थक हो सकती है. जाहिर तौर पर इससे चीन का बाजार और मंसूबे डगमगाएंगे. अब भी कई पुराने राजनीतिक दल चीन पर आरोप लगा रहे हैं कि वो उनके यहां जमीनें कब्जा रहा है और अंदरुनी मुद्दों में भी दखल दे रहा है.  

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