scorecardresearch
 

शेख हसीना का तख्तापलट करने वाले छात्रों ने बनाई नई पार्टी, अब कौन सा मोड़ लेंगे दिल्ली-ढाका संबंध?

बांग्लादेश में छात्रों ने नई राजनीतिक पार्टी का एलान कर दिया. ये वही स्टूडेंट्स हैं, जिनकी बगावत ने बीते अगस्त में तत्कालीन पीएम शेख हसीना की सरकार गिरा दी. इस बीच मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार भी हिली हुई है. तो क्या आधे साल के भीतर ही देश एक बार फिर राजनैतिक भूचाल से गुजरने वाला है?

Advertisement
X
आंदोलनकारी नई पार्टी बनाने का एलान कर चुके. (Photo- AFP)
आंदोलनकारी नई पार्टी बनाने का एलान कर चुके. (Photo- AFP)

पिछले साल अगस्त में छात्रों ने आरक्षण के खिलाफ आंदोलन शुरू किया जो बढ़ते-बढ़ते प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार गिराने पर रुका. देश की बागडोर कुछ समय के लिए अंतरिम सरकार के हाथ में आ गई. उम्मीद थी कि इस बीच चुनाव होंगे और नई लोकतांत्रिक सरकार आ जाएगी. लेकिन भीतर कुछ और ही खदबदाता दिख रहा है. सरकार गिराने वाले छात्र राजनैतिक दल बना चुके. अगर वे राजनैतिक जमीन पर जमे तो ढाका के साथ नई दिल्ली के रिश्ते फिर नया मोड़ ले सकते हैं.

Advertisement

स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिसक्रिमिनेशन वही छात्र संगठन है, जिसने राजनीतिक बदलाव में सबसे अहम रोल अदा किया. नाहिद इस्लाम इस पार्टी के प्रमुख थे. हसीना सरकार के गिरने के बाद वे अंतरिम सरकार का हिस्सा बन गए. हाल में उन्होंने इस्तीफा दे दिया और एक नया राजनीतिक दल राष्ट्रीय नागरिक पार्टी (NCP) बनाने की घोषणा की. 

उनका दावा है कि वे ढाका को आर्थिक और राजनीतिक संकट से निकालने की कोशिश में हैं. साथ ही वे नए बांग्लादेश का नारा भी दे रहे हैं. ये सब तक है, जबकि इस देश में सत्ता में फिलहाल कोई भी बड़ी पार्टी नहीं. यहां तक कि अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस भी जन आंदोलन के नेता रहे और किसी दल से अलग से जुड़े हुए नहीं हैं. 

तो ढाका में क्या बदल रहा है

इसे समझने के लिए साल 2024 में चलते हैं. जुलाई में वहां स्टूडेंट्स ने रिजर्वेशन खत्म करने के लिए आंदोलन शुरू किया. वे आरोप लगा रहे थे कि हसीना सरकार और उनकी पार्टी अवामी लीग अपने लोगों को सरकारी नौकरियां दे रही है. कुछ ही दिनों में प्रोटेस्टर्स और सरकार के समर्थकों के बीच टकराव में भारी हिंसा हुई और कई मौतें हो गईं. आंदोलन इसके बाद और भड़का. यहां तक कि 5 अगस्त को हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा. इसके बाद ही केयरटेकर सरकार आ गई, जिसे यूनुस लीड कर रहे हैं. 

Advertisement

new political party bangladesh by students what will happen to sheikh hasina and BNP photo Reuters

यूनुस के दौर में बांग्लादेश के हाल

उनके सामने कई मुश्किलें हैं. एक तो वे जनता के चुने हुए नेता नहीं. दूसरा, वे सीधे-सीधे किसी राजनैतिक दल के नहीं. तीसरा, उन्हें ऐसे वक्त पर जिम्मा मिला, जब देश एक साथ कई फ्रंट्स पर कमजोर है, चाहे वो राजनैतिक हालात हों, या आर्थिक. यूनुस के आते ही  देश से माइनोरिटी पर हिंसा की खबरें आने लगीं, जिसे लेकर इंटरनेशनल स्तर पर उनकी साख गिरी. 

सत्ता में आने के छह महीने बाद भी कुछ नहीं बदला. न ही चुनावों की घोषणा हुई, जो कि संविधान के अनुसार तीन महीनों के भीतर हो जानी थी. स्टूडेंट्स अपनी पार्टी लेकर आएंगे, इसके कयास तो पहले से लग रहे थे, लेकिन ये इतनी जल्दी होगा, इसका अनुमान किसी को नहीं था. वैसे एक अनुमान ये भी है कि खुद यूनुस ने नई पार्टी को चुपके से सपोर्ट किया हो ताकि बाद में वे भी इसका हिस्सा बन सकें. कई बार ये बात उठी कि तीन महीनों के भीतर होने वाले चुनावों को सात महीनों तक रोकने की यही वजह रही होगी. 

अब क्या हो सकता है

हसीना के साथ ही अवामी लीग कमजोर पड़ गया. लीग के कई और नेता भी देश से चले गए, वहीं कई नेता जेल में डाल दिए गए. दूसरा प्रमुख दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) भी कमजोर पड़ा हुआ है. उसकी नेता खालिदा जिया इलाज के लिए लंदन जा चुकी हैं. इसे एक तरह से स्व-निर्वासन ही माना जा रहा है. पार्टी के कुछ नेता देश में हैं और वक्त-बेवक्त कुछ न कुछ हलचल भी कर रहे हैं, लेकिन ये समंदर में मछली के मूवमेंट से ज्यादा नहीं. इस बीच देश में जनरल इलेक्शन्स की बात चल रही है. अनुमान है कि इस बार भी लगभग दो दशक पुराना फॉर्मूला जिंदा हो सकता है, जिसे माइनस टू पैटर्न कहा गया था. 

Advertisement

new political party bangladesh by students what will happen to sheikh hasina and BNP photo APTOPIX

साल 2007 में बांग्लादेश की राजनीति में इन्हीं दो बड़े दलों को हटाकर सैन्य शासन लाने पर काम चला था. इसके तहत दल नेताओं को जेल में डाल दिया गया. इस बीच दोनों दलों के समर्थक सड़कों पर उतर आए. यहां तक कि ढाका के रवैए की आलोचना इंटरनेशनल मंच पर भी होने लगी. इसके बाद ही नेताओं की रिहाई हो सकी थी. अब फिर दो दशक पुराना हाल दिख रहा है. दोनों बड़े दल गायब हैं. फर्क बस इतना है कि सैन्य शासन की बजाए एक नई पार्टी तैयार हो गई, जो स्टूडेंट्स की है. 

ये भी हो सकता है कि नई पार्टी ढाका की दो-दलीय व्यवस्था को तोड़ दे और तीसरी राजनैतिक ताकत बन जाए. छोटे दल, जो अक्सर बड़ी पार्टियों को अपना सपोर्ट देते रहे, वे भी आंदोलन से जन्मे दल से जुड़ सकते हैं. इससे ढाका में एक और बार राजनैतिक हलचल दिखेगी लेकिन ये नए चैप्टर की शुरुआत भी हो सकती है, जिसमें राजनीति में कंपीटिशन भी है, और देश का विकास भी हो. 

भारत के लिए क्या लेकर आएगा ये बदलाव

स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिसक्रिमिनेशन वही संगठन है, जिसकी वजह से तख्तापलट हुआ. यह ढाका के लिए भले ही विकास पर काम करे लेकिन भारत के लिए ये हाल-हाल तक जहर उगलता रहा. सैड का आरोप था कि भारत के सहयोग से ही हसीना सरकार सत्ता में रही, जबकि जनता उसे नहीं चाहती थी. भारत-बांग्लादेश सीमा पर बीएसएफ और बांग्लादेशी नागरिकों के बीच अक्सर तनाव रहता है.

Advertisement

स्टूडेंट्स का कहना है कि भारतीय सुरक्षा बल उनके लोगों के साथ गलत व्यवहार करता रहा. सैड न केवल विवादित बयान दे रहा है, बल्कि उन सारे कट्टर संगठनों से भी जुड़ा दिखता है, जो भारत विरोधी रुख के लिए जाने जाते रहे. ऐसे में हो सकता है कि ढाका के साथ हमारे रिश्ते एक बार फिर कुछ तीखे हो जाएं. 

Live TV

Advertisement
Advertisement