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लहजे को छोड़ भी दें, तब भी नीतीश कुमार के बर्थ कंट्रोल फॉर्मूले में जोखिम हैं कई

बिहार के CM नीतीश कुमार ने विधानसभा में सेक्स एजुकेशन पर बेहद अजीबोगरीब बयान दे दिया. वे फैमिली कंट्रोल पर बात कर रहे थे. विवाद गरमाने पर नीतीश माफी मांग चुके, लेकिन इस बीच ये बात उठ रही है कि जाने-अनजाने सीएम जो तरीका कह गए, क्या परिवार नियोजन के लिए वो सेफ रास्ता है. अगर नहीं, तो इसके क्या खतरे हैं?

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दुनिया में लगातार बर्थ कंट्रोल के पूरी तरह सेफ मैथड पर बात होती रही. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
दुनिया में लगातार बर्थ कंट्रोल के पूरी तरह सेफ मैथड पर बात होती रही. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा में जातिगत सर्वे पर बोलते समय बढ़ती आबादी के मुद्दे पर कहा कि लड़की पढ़ी-लिखी हो तो फैमिली प्लानिंग सही तरीके से हो सकेगी. हालांकि इस बात को कहने का उनका तरीका काफी भद्दा था, जिसके बाद से पटना से लेकर दिल्ली और यहां तक कि विदेश में भी इसकी चर्चा-निंदा हो रही है. 

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क्या कहा था नीतीश ने

'लड़की पढ़ लेगी, तो जब शादी होगी, तब पुरुष रोज रात में करता है न, उसी में और (बच्चा) पैदा हो जाता है. लड़की अगर पढ़ लेगी तो उसको भीतर मत...,उसको .... कर दो. इसी में संख्या घट रही है.' 

डीकोड करने पर क्या समझ आता है

अगर शब्दों पर जाएं तो बिहार के सीएम विदड्रॉअल मैथड की बात कर थे. इसे पुल-आउट या कोइटस इंटरप्टस मैथड भी कहते हैं, जिसे लेकर भ्रम की स्थिति है कि क्या वाकई ये फैमिली प्लानिंग का सेफ तरीका है. पहले कंडोम की अनुपलब्धता में इसे सुरक्षित माना जाता रहा. आज भी कम जानकार लोग मानते हैं कि इससे स्पर्म स्त्री के भीतर नहीं जा सकेगा और फर्टिलिटी नहीं होगी. 

 nitish kumar controversial statement on birth control during caste reservation debate bihar assembly photo Getty Images

क्या है ये मैथड

इस तरीके के तहत संबंध बनाने के दौरान इजेक्यूलेशन से पहले पुरुष अपने यौनांग को बाहर हटा देते हैं ताकि स्पर्म स्त्री के शरीर में प्रवेश करके एग के साथ न मिल सके. एग और स्पर्म के मिलने से ही फर्टिलिटी होती है. तो इस तरह से देखा जाए तो ये तरीका बिल्कुल सही लगता है, लेकिन ऐसा है नहीं. 

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कहां होती है मुश्किल

- इस तरीके में सेकंड्स की देरी से भी इजेक्युलेशन भीतर हो जाएगा और अनचाहे गर्भ का जोखिम बढ़ जाएगा. 

- स्पर्म अगर वजाइना की बजाए उसके आसपास जैसे वल्वा पर भी रह जाएं तो वजाइनल ट्रैक के सहारे भीतर जाकर प्रेग्नेंसी दे सकते हैं. 

- संबंध बनाने के दौरान जो प्री-इजेक्युलेशन फ्लूइड बनता है, उसमें भी स्पर्म मौजूद होते हैं. ऐसे में प्रेग्नेंसी हो सकती है. वैसे ये थ्योरी विवादित है. 

- बिना कंडोम यौन संबंधों से सेक्सुअली ट्रांसमिटेड बीमारियों (STDs) का खतरा रहता है. 

nitish kumar controversial statement on birth control during caste reservation debate bihar assembly photo Unsplash

कंडोम की टक्कर पर खड़ा है ये मैथड

साइंटिफिक अमेरिकन वेबसाइट में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के हवाले से माना गया कि अगर बिल्कुल सही समय पर पुल-आउट किया जाए, तब भी प्रेग्नेंसी का 4 प्रतिशत चांस रह ही जाता है. यानी अगर 100 जोड़े ये तरीका अपना रहे हों तो उनमें से 4 जोड़े कंसीव कर सकते हैं. इसके बाद भी ये कंडोम के बाद सबसे ज्यादा आजमाया जा रहा मैथड बना हुआ है. 

कौन सा तरीका कितना असरदार

- सही तरीके से इस्तेमाल करने पर गर्भ निरोधक गोलियां लगभग 99% प्रभावी हैं. 
- बर्थ कंट्रोल के लिए मेल कंडोम का इस्तेमाल 98% तक काम कर सकता है, लेकिन फेल भी होता है. 
- कॉपर टी (IUD)99% तक असरदार है, लेकिन कई बार इससे महिलाओं में कई दिक्कतें होती हैं. 
- मेल और फीमेल स्टेरेलाइजेशन दोनों ही करीब  98% तक कारगर हैं. 
- इनकी तुलना में पुल-आउट मैथड 96% तक ही काम करता है. 

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क्या 100% की भी गारंटी है

कुल मिलाकर कोई भी तरीका 100 प्रतिशत तक कारगर नहीं है, सिवाय एबस्टिनन्स के, मतलब यौन संबंधों से परहेज के. कई धर्मों में इसका जमकर प्रचार-प्रसार भी होता रहा. ये स्त्री-पुरुष दोनों के लिए था, कम से कम एक खास उम्र तक इसका पालन जरूरी रहा. एबस्टिनन्स को तोड़ने वालों को सजा भी दी जाती थी. 

nitish kumar controversial statement on birth control during caste reservation debate bihar assembly photo Pixabay

पुराने समय में क्या होता था

ये तो हुई नए जमाने की बात, लेकिन पुराने समय में स्त्री-पुरुष अनचाही प्रेग्नेंसी को रोकने के लिए काफी अजीबोगरीब तरीके अपनाते थे. इनकी सारी जिम्मेदारी महिलाओं की होती थी. कई बार ये मैथड इतने भयंकर होते कि महिला की जान भी चली जाती थी.  

प्राचीन रोम से लेकर चीन तक में गर्भ रोकने के लिए महिलाओं को पारे का घोल पीने की सलाह दी जाती. जाहिर है कि इससे गर्भ हो, न हो, लेकिन स्त्री की जान चली जाएगी. अगर जान बच भी जाए तो विकलांगता आ जाती थी. बता दें कि पारे से ब्रेन, लिवर और किडनी बुरी तरह से डैमेज हो सकती है.

लाइजॉल का उपयोग करने लगी थी महिलाएं

पहले वर्ल्ड वॉर के बाद सैनिक घर लौटे और एक तरह से बेबी बूम के हालात बन गए. आबादी तेजी से बढ़ने लगी. तब महिलाओं ने फ्लोर क्लीन करने वाले लाइजॉल को ही बर्थ कंट्रोल मैथड बना लिया. वे इससे अपने यौनांग को क्लीन करने लगीं ताकि गर्भ न ठहरे. इससे बहुत सी औरतें गंभीर रूप से बीमार हो गईं. तब लाइजॉल एक एंटीसेप्टिक साबुन भी बनाया करता था, जिसमें क्रेसॉल नाम का केमिकल होता.

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लाइजॉल पॉइजनिंग के बाद कंपनी की काफी बदनामी हुई. इसके बाद उसने क्रेसॉल की जगह ऑर्थो-हाइड्रॉक्सीडीफिनाइल का इस्तेमाल शुरू कर दिया. साथ ही साबुन की जगह टॉयलेट और फ्लोर क्लीनर ही बनाने लगा. 

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