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खराब सर्विस देने के लिए वकीलों पर नहीं हो सकता मुकदमा, क्यों सुप्रीम कोर्ट ने वकालत को दी छूट?

वकालत के काम को किसी भी बिजनेस या सर्विस से अलग रखा जाना चाहिए. अगर क्लाइंट वकील से नाखुश हो, या सर्विस में किसी किस्म की गड़बड़ी हो जाए तो उसे कोर्ट में नहीं घसीटा जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 14 मई को ये फैसला सुनाते हुए कहा कि क्लाइंट अपने वकील पर फॉल्टी सर्विस के लिए मुकदमा नहीं कर सकते.

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सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों पर एक बड़ा फैसला दिया. (Photo- AFP)
सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों पर एक बड़ा फैसला दिया. (Photo- AFP)

किसी वकील के काम को दूसरे बिजनेस या व्यापार से अलग रखना चाहिए. मंगलवार को एक अपील के खिलाफ से फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस प्रोफेशन में कामयाबी कई बातों पर तय रहती है, और कई चीजें वकील के कंट्रोल से बाहर रहती हैं. ऐसे में क्लाइंट केस हारने पर अपने ही वकील के खिलाफ मुकदमा नहीं कर सकते, जैसा कि आमतौर पर कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट में माना गया है. 

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ये फैसला उस अपील के बदले आया, जहां साल 2007 में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रीड्रेसल कमीशन (NCDRC) ने माना था कि क्लाइंट अपने वकील को भी कंज्यूमर कोर्ट ला सकता है. NCDRC का मानना था कि वकीलों की सर्विस भी कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 की धारा 2 के तहत आती है. अगर सर्विस में कोई चूक रह जाए तो NCDRC के मुताबिक सीपीए के तहत शिकायत दर्ज हो सकती है. 

क्या तर्क दिए गए? और अदालत ने क्या कहा?

एम माथियास नाम के वकील, जो असल याचिकाकर्ता थे, ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया, दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन और बार ऑफ इंडियन लॉयर्स जैसे कई समूहों के साथ मिलकर दलील दी कि कानूनी पेशे को सीपीए से अलग रखा जाए. 

no action against lawyers by their clients consumer protection act supreme court photo Getty Images

वकीलों की तरफ से क्या कहा गया

पिटीशनर का कहना था कि फीस पाने के बाद भी दूसरे पेशों से अलग, लॉयर अपने क्लाइंट के माउथपीस की तरह काम नहीं कर सकता क्योंकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स, 1961 के मुताबिक वो अदालत और यहां तक कि अपने कंपीटिटर के लिए भी जवाबदेह है. इसमें क्लाइंट के साथ कुछ कमी-बेसी रह सकती है. जैसे, लॉयर की ड्यूटी है कि ऐसे क्लाइंट को रिप्रेजेंट करने से मना कर दे, जो गलत तरीके अपनाने की बात करते हैं. 

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एक तर्क ये भी था कि कानूनी मुद्दे अक्सर इतने पेचीदा होते हैं कि उनपर क्या फैसला आएगा, ये वकीलों के काबू से बाहर होता है. आखिरी फैसला इसपर भी तय करता है कि विरोधी पक्ष क्या तरीके अपना रहा है. मेडिकल प्रोफेशन में मदद के लिए साइंस है, लेकिन वकालत में कोई यूनिवर्सल स्टैंडर्ड नहीं. यही वजह है कि उनके पेशे को उपभोक्ता कानून से अलग रखा जाना चाहिए. 

कार्रवाई के लिए पहले से नियम

वकीलों पर एक्शन के लिए कानून पहले से हैं. एडवोकेट्स एक्ट 1961 और बार काउंसिल दोनों ही राज्य और देश के स्तर पर वकीलों पर कार्रवाई कर सकते हैं. 

no action against lawyers by their clients consumer protection act supreme court photo SC lawyers

वकीलों की बात को काउंटर करने के लिए कोर्ट ने खुद ही सीनियर वकील वी गिरी को एमिकस क्यूरी की तरह नियुक्त किया. उन्होंने कहा कि वकीलों की दो कैटेगरी है. पहले वे हैं, जो कोर्ट में अपने क्लाइंट्स का पक्ष रखते हैं. दूसरे वकील कोर्ट से बाहर सर्विस देते हैं. ये कानूनी राय देते हैं. गिरी ने कहा कि वकीलों की ये दूसरी श्रेणी उपभोक्ता कानून में आ सकती है. 

अदालत ने क्या तर्क दिए

इस बात को सुप्रीम कोर्ट ने भी माना. बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने फैसला दिया कि सीपीए के तहत वकीलों की सर्विस को शामिल नहीं जा सकता क्योंकि ये बिजनेस या ट्रेड नहीं, जहां मुनाफा ही मकसद होता है. वहीं वकालत एक प्रोफेशन है, जहां कई चीजें बस के बाहर होती हैं. 

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मेडिकल प्रोफेशन को भी मिले थोड़ी छूट!

कोर्ट ने अपने फैसले में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम वीपी शांता मामले का भी जिक्र किया. अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि मेडिकल पेशे में काम करने वाले लोग कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के दायरे में आएंगे. अब जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा है कि इस फैसले पर दोबारा सोचने की जरूरत है. बता दें कि मरीज या उसके घरवाले गंभीर नुकसान की स्थिति में डॉक्टरों, अस्पतालों या नर्सिंग होम के खिलाफ चिकित्सकीय लापरवाही के केस करते रहते हैं. आरोप साबित होने पर कार्रवाई भी होती है. 

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