पाकिस्तान अक्सर महंगाई, गरीबी और राजनीतिक उथलपुथल के लिए खबरों में रहता है. बीच-बीच में पड़ोसियों से उसकी जुबानी झड़प की चर्चा भी हो जाती है. आजकल बलूच लोग देश से अलगाव मांग रहे हैं. कुल मिलाकर, पाकिस्तान हर फ्रंट पर अस्थिर है. लेकिन इसी देश में अफगानिस्तान से लाखों शरणार्थी आ रहे हैं. अब इस्लामाबाद उनसे इतना परेशान है कि उन्हें निकालने के तरीके खोज रहा है. हाल में उसने अवैध इमिग्रेंट्स को खुद ही देश छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया, वरना उनपर कार्रवाई की जाएगी.
इस्लामाबाद ने जनवरी के आखिर में एक सरकारी नोटिफिकेशन निकाला, जिसमें सारे अवैध प्रवासियों को 31 मार्च तक देश छोड़ने को कहा गया. खासकर इस्लामाबाद और रावलपिंडी में इसपर जोर दिया गया. नोटिफिकेशन के मुताबिक, बिना पेपरवर्क के रहते लोग अगर देश में बने रहें तो 10 अप्रैल से उनपर एक्शन लिया जाएगा.
कौन से पेपरवर्क की बात हो रही
यूएन रिफ्यूजी एजेंसी UNHCR प्रूफ ऑफ रजिस्ट्रेशन जारी करती है, जो लोगों को किसी देश में शरण लेते हुए दिया जाता है. जिनके पास ये दस्तावेज हैं, पाकिस्तान उन्हें देश से तो नहीं निकालेगा लेकिन इस्लामाबाद और रावलपिंडी से बाहर किसी दूसरे शहर में भेज देगा. वहीं अफगान सिटीजन कार्ड रखने वाले सारे लोग तुरंत अफगानिस्तान भेज दिए जाएंगे. अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने का काम पिछले 18 महीनों से कई चरणों में हो रहा था. अब कथित तौर पर आखिरी चेतावनी दी गई, जिसमें लोगों से वॉलंटरी तरीके से जाने को कहा गया.
इन्हीं दो शहरों से क्यों निकाले जा रहे
इस्लामाबाद और रावलपिंडी दोनों ही शहर राजनीतिक और व्यापारिक नजरिए से बेहद अहम हैं. यहां डिप्लोमेट्स का भी आना-जाना बना रहता है. पाकिस्तान सरकार का कहना है कि हाल के सालों में इन शहरों में अवैध प्रवासियों की संख्या तेजी से बढ़ी. इससे सुरक्षा के साथ-साथ छवि को भी खतरा है. इसके अलावा, बीते कुछ समय में इस देश के लिए इंटरनेशनल फंडिंग, खासकर अमेरिकी फंड में कटौती हुई. इसका असर भी शरणार्थी पॉलिसी पर हो रहा है. यही वजह है कि देश लगातार घुसपैठियों पर सख्त हुआ.
लेकिन भूचाल से गुजरते इस देश में आखिर अफगानिस्तान के लोग क्यों शरण खोज रहे?
इसकी शुरुआत अफगानिस्तान पर सोवियत संघ से हमले से हुई. साल 1979 में उसने अफगानिस्तान पर हमला किया ताकि तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार को बचा सके. हालांकि उसका शासन ज्यादा नहीं टिका. कई मुजाहिदीन गुट उसके खिलाफ इकट्ठा हो गए. चारों तरफ आतंक का माहौल था. सोवियत हर अफगानी पर शक करता, यही हाल मुजाहिदीनों का था. इसी दौर में करीब 50 लाख अफगानियों ने अपना देश छोड़ दिया. इनमें से ज्यादातर पाकिस्तान गए, जबकि कुछ प्रतिशत पश्चिमी देशों की तरफ निकल गया.
लगभग चार साल पहले दूसरी खेप आई
शरणार्थियों की दूसरी बड़ी खेप साल 2021 में पाकिस्तान पहुंची, जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. ये कोविड का भी समय था, जिसमें देश पूरी तरह से तबाह हो गया. यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीस के मुताबिक फिलहाल 80 लाख से ज्यादा अफगानी देश छोड़ चुके हैं, जबकि लगभग साढ़े 3 लाख लोग अपने ही देश में विस्थापितों की तरह जी रहे हैं.
पाकिस्तान में कितने अफगानी शरणार्थी
यूनाइटेड नेशन्स के डेटा को देखें तो पाकिस्तान में 1.5 मिलियन अफगानियों ने खुद को रजिस्टर करवा रखा है. हालांकि, पाकिस्तानी अधिकारियों का मानना है कि उनकी संख्या साढ़े चार या पांच मिलियन तक हो सकती है
कैसे पहुंचते हैं वहां
दोनों देश ढाई हजार किलोमीटर की सीमा शेयर करते हैं. इसे डुरंड रेखा या वखान कॉरिडोर भी कहते हैं. वैसे तो ये बॉर्डर सुरक्षा बलों से घिरा हुआ है, लेकिन तब भी कहीं न कहीं चूक हो ही जाती है. इसके अलावा ब्लैक मार्केट में फर्जी कागजात बनवाकर भी बहुत से लोग एंट्री पा रहे हैं.
कहां रह रहे हैं
ज्यादातर लोग सीमा पार करने के बाद नजदीकी इलाकों में बस जाते हैं, जैसे खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांत में. ये इलाके डुरंड रेखा के करीब हैं. आर्थिक तौर पर मजबूत अफगानी पाकिस्तान के मुख्य शहरों जैसे इस्लामाबाद और कराची तक भी जाते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या कम है क्योंकि पुलिस की नजर में आने का डर रहता है.
पाकिस्तान में रिफ्यूजी किस हाल में
ये देश खुद ही आर्थिक और राजनैतिक उथल-पुथल से जूझ रहा है. ऐसे में जाहिर है कि बाहर से आने वाले लोगों के लिए उनके पास खास पॉलिसी नहीं. अवैध शरणार्थियों के पास लीगल स्टेटस न होने की वजह से दोहरी मार पड़ी हुई है. उनके पास न तो छत है, न ही राशन या सेहत को लेकर सरकारी सुविधाएं. अफगानी महिलाएं और बच्चों के हालात सबसे खराब हैं. कई बार वहां से मानव तस्करी की खबरें आती हैं.
अफगानियों के अलावा भी इस देश में कई मुल्कों के शरणार्थी
ईरान से लगातार मची अस्थिरता के चलते वहां के काफी सारे लोग कराची और क्वेटा जैसे शहरों में आ गए. इनमें से ज्यादातर वैध रिफ्यूजी हैं. उनके अलावा रोहिंग्या मुस्लिम जो म्यांमार में हिंसा का सामना कर रहे हैं, वे भी सुरक्षा और बेहतर जिंदगी के लिए पाकिस्तान पहुंचे. साथ ही अफ्रीकी देश सोमालिया में चल रहे संघर्ष के बीच मुस्लिम धर्म को मानने वाले सोमाली लोग भी पाकिस्तान आए.
विदेशी मदद रोकी जा रही
वैसे पाकिस्तान में अफगानियों के अलावा बाकी देशों से कम ही लोग शरण के लिए आते हैं लेकिन इसके लिए भी उन्हें इंटरनेशनल फंडिंग मिलती रही. UNHCR समेत संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी कई संस्थाएं उनकी मदद करती रहीं लेकिन हाल में यूएस ने रिफ्यूजियों के लिए लगभग सारी फंडिंग रोक दी. पद पर आते ही ट्रंप प्रशासन ने एक आदेश जारी किया, जिसके तहत शरणार्थी सहायता सहित लगभग सभी विदेशी सहायता को रोक दिया गया. इसके कुछ ही दिनों बाद पाकिस्तान सरकार ने अवैध रिफ्यूजियों को 31 मार्च तक देश छोड़ने की चेतावनी दी.