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कभी 'गोल्डन बॉय' थे, अब फूटी आंख नहीं सुहाते... पाकिस्तान आर्मी ने इमरान खान को क्यों किया आउट?

पाकिस्तान में इमरान खान के बिना आम चुनाव होने जा रहे हैं. इमरान खान जेल में हैं और उनपर चुनाव लड़ने पर भी रोक लगी है. पाकिस्तान में 8 फरवरी को वोटिंग होनी है. ऐसे में जानते हैं कि कभी सेना की नजरों में इमरान खान 'गोल्डन बॉय' थे, लेकिन अब वो फूटी आंख भी नहीं सुहाते.

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इमरान खान के चुनाव लड़ने पर रोक लगी है.
इमरान खान के चुनाव लड़ने पर रोक लगी है.

पाकिस्तान में दो दिन बाद चुनाव होने हैं. वैसे तो ये चुनाव पिछले साल नवंबर में ही हो जाने चाहिए थे, लेकिन फंड की कमी के कारण चुनाव आयोग ने इनकी तारीख आगे बढ़ा दी थी. 

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इस बार पाकिस्तान के चुनाव कुछ खास हैं. साल 2018 में जब पाकिस्तान में चुनाव हुए थे, तब नवाज शरीफ नहीं थे. और 2024 में जब चुनाव हो रहे हैं तो इमरान खान नहीं हैं. इमरान खान जेल में बंद हैं. कई मामलों में उन्हें सजा भी मिल चुकी है. उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी गई है.

पिछले चुनाव में इमरान खान पांच सीटों से खड़े हुए थे. और सभी पर जीत भी गए थे. पाकिस्तान के इतिहास में ये पहली बार था जब कोई नेता पांच सीटों से खड़ा हुआ और पांचों जगह जीत गया. 

ये वो दौर था जब इमरान खान की लोकप्रियता सबसे ज्यादा थी. लेकिन इस वक्त इमरान खान जेल में हैं. उनका पूरा चुनाव प्रचार सोशल मीडिया पर चल रहा है. उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के उम्मीदवार मैदान में तो हैं, लेकिन माना जा रहा है कि इस बार पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) की जीत तय है. नवाज शरीफ का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय माना जा रहा है.

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हालांकि, पाकिस्तान में अभी जैसे सियासी हालात हैं, ठीक उसी तरह के 2018 के वक्त भी थे. उस समय भी पीएमएल-एन के नेताओं को गिरफ्तार किया जा रहा था. नवाज शरीफ को जेल की सजा सुनाई गई थी. इस बार भी यही हो रहा है. पीटीआई के नेता गिरफ्तार हो रहे हैं. इमरान खान को भी जेल की सजा सुनाई जा रही है. 

जानकार इन सबके पीछे वहां की सेना का हाथ मानते हैं. क्योंकि ये जगजाहिर है कि पाकिस्तान में सत्ता की चाबी सेना के हाथ से मिलती है. यही सेना थी, जिसने इमरान खान को सत्ता तक पहुंचने में मदद की थी. और अब यही सेना है जिसने इमरान खान को 'आउट' कर दिया है.

सेना की आंखों में क्यों खटकने लगे थे इमरान?

2018 में जब इमरान खान सत्ता में आए, तब वो सेना की नजरों में 'गोल्डन बॉय' थे. तीन साल तक इमरान सरकार और सेना में तालमेल भी ठीक बना रहा. लेकिन 2021 के अक्टूबर में उनके सेना से रिश्ते बिगड़ने शुरू हो गए. उस समय पाकिस्तान सेना के चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा थे.

हुआ ये था कि अक्टूबर 2021 में पाकिस्तानी सेना का कम्युनिकेशन संभालने वाली इंटर सर्विसेस पब्लिक रिलेशन (आईएसपीआर) ने उस समय के ISI चीफ फैज हमीद का ट्रांसफर कर पेशावर का कोर कमांडर बना दिया था. फैज हमीद इमरान खान के करीबियों में से थे. बताया जाता है कि ये फैसला लेने से पहले इमरान खान ने जनरल बाजवा से कोई सलाह भी नहीं ली थी.

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इतना ही नहीं, नवंबर 2019 में तो इमरान सरकार ने जनरल बाजवा का कार्यकाल तीन साल बढ़ा दिया था. लेकिन पहले ही चर्चा चल पड़ी थी कि अब इमरान सरकार उनका कार्यकाल बढ़ाने के मूड में नहीं हैं. नतीजतन, ये दरार और बढ़ने लगी.

ये रिश्ते तब और बिगड़ गए, जब इमरान खान ने विपक्ष और सेना के बीच डील होने का आरोप लगाया. बात तब और बिगड़ गई, जब इमरान खान ने भारतीय सेना की तारीफ करते हुए कहा कि वहां की सेना चुनी हुई सरकार के कामकाज में दखलंदाजी नहीं करती.

'सेना की आलोचना नहीं करनी चाहिए थी'

इमरान की सरकार में गृह मंत्री रहे शेख रशीद ने सेना के साथ मनमुटाव होने की बात मानी थी. रशीद का कहना था कि सेना की आलोचना नहीं की जानी चाहिए थी. उन्होंने नसीहत देते हुए कहा था कि पीएमएल-एन के नेता आर्मी को कोसते थे, अगर वो आर्मी से शांति बना सकते हैं, तो हमें भी सारी गलतफहमियां दूर कर अच्छे रिश्ते बनाने चाहिए. 

जनवरी 2022 में इमरान खान का एक वीडियो वायरल हुआ था. इस वीडियो में उन्हें ये कहते हुए सुना गया था कि अगर उनकी सरकार को गिराने की कोशिश की जाती है तो ये बहुत खतरनाक होगा. उस समय इमरान की इस बात को सेना पर सीधा हमला माना गया था.

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अप्रैल 2022 में इमरान खान की सरकार गिर गई. इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया से लेकर पब्लिक रैली तक में सेना की आलोचना की थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि सेना ने विदेशी ताकतों के साथ मिलकर उनकी सरकार गिराई.

सरकार गिरने के बाद इमरान ने खुले मंच से सेना पर जमकर आरोप लगाए. एक रैली में उन्होंने कहा, ताकतवर पदों पर बैठे कुछ लोग उनकी सरकार गिराने की साजिश में शामिल थे.

नवंबर 2022 में इमरान पर हमला हुआ. उनके पैर में गोली लगी थी. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार और सेना विदेशी ताकतों के साथ मिलकर उनकी हत्या की साजिश रच रही है. 

हद तो तब हो गई, जब पिछले साल 9 मई को हुई हिंसा में इमरान के समर्थकों ने कंटेन्मेंट एरिया में धावा बोला और जनता को दिखाया कि पाकिस्तानी सेना के जनरल कितनी लक्जरियस लाइफ जीते हैं.

मुसीबत मोल ले ली!

सेना से दुश्मनी मोल लेना इमरान को बहुत महंगा पड़ गया. पहले तो उनकी सरकार गई. फिर उन्हें जेल में डाल दिया गया. और अब उनकी सियासी पारी भी खत्म होने की कगार पर है.

इमरान का दावा है कि सत्ता से बेदखल होने के बाद से उनपर 150 से ज्यादा केस दर्ज हो चुके हैं. बीते एक हफ्ते में इमरान को तीन अलग-अलग मामलों में सजा भी हो चुकी है.

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पिछले हफ्ते इमरान को 'साइफर केस' में 10 साल जेल की सजा सुनाई गई है. उन्हें सीक्रेट लीक करने के मामले में दोषी ठहराया गया है. इसके अगले ही दिन 31 जनवरी को उन्हें 'तोशाखाना मामले' में 14 साल की सजा सुनाई गई. इसके बाद कोर्ट ने इमरान खान और बुशरा बीबी की शादी को भी अवैध घोषित कर दिया. दोनों को गैर-इस्लामिक निकाह के लिए दोषी माना गया और 7-7 साल जेल की सजा सुनाई.

पार्टी पर भी खतरा!

25 अप्रैल 1996 को इमरान खान ने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी की स्थापना की. पीटीआई को सत्ता में लाने में इमरान खान को 22 साल लग गए. 2018 में 155 सीटें जीतकर पीटीआई सत्ता में आई.

लेकिन सेना की आंख में खटकने का नतीजा ये रहा कि इमरान की पार्टी पर भी अब खतरा बढ़ गया. इस आम चुनाव में पीटीआई को दूर रखने की कई कोशिशें की गईं. चुनाव आयोग ने भी पीटीआई से उसका चुनाव चिह्न 'बैट' भी जब्त कर लिया.

अब दिक्कत ये है कि इमरान की पार्टी के उम्मीदवार एक तरह से निर्दलीय माने जा रहे हैं. क्योंकि हर उम्मीदवार का चुनाव चिह्न अलग-अलग है. पाकिस्तान जैसे देश में ऐसे चुनाव लड़ना इसलिए भी चुनौती भरा है, क्योंकि वहां की आधी से ज्यादा आबादी निरक्षर है. और इसलिए एक चुनाव चिह्न होना जरूरी है.

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इतना ही नहीं, चुनाव से पहले पाकिस्तान की पुलिस भी पीटीआई नेताओं के पीछे पड़ गई है. एक फरवरी को ही पीटीआई के 39 नेता दंगा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था.

इन सबके अलावा, पिछले साल मार्च में इमरान खान और उनके नेताओं को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने बैन भी कर दिया था. आरोप लगा कि इमरान खान और उनके नेता अपने भाषणों में निराधार आरोप लगा रहे हैं और भड़काऊ बयानबाजी कर रहे हैं, जिससे शांति भंग होने का खतरा है.

इमरान और उनके उम्मीदवारों को टीवी मीडिया में जगह नहीं दी जा रही है. इसके बाद इमरान खान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर प्रचार कर रहे हैं.

71 साल के इमरान खान के पास कोई रास्ता नहीं है. इस चुनाव में उनकी जीत की गुंजाइश भी कम जताई जा रही है. लेकिन जानकार मानते हैं कि अगर इमरान वोटरों को खींच लाते हैं और उनका वोट प्रतिशत बढ़ता है तो ये किसी चमत्कार से कम नहीं होगा.

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