फिलिस्तीन के प्रेसिडेंट महमूद अब्बास रूस गए हुए हैं. इसे काफी अहम माना जा रहा है, खासकर जबकि लगभग 10 महीनों से फिलिस्तीन के हमास और इजरायल के बीच पूरे दम से जंग चल रही है. तो क्या रूस इसमें मध्यस्थता करने जा रहा है, या फिर वो फिलिस्तीनी संगठन होने के नाते हमास की मदद कर सकता है? खुद को निष्पक्ष कहते रूस ने वैसे शुरुआत से ही फिलिस्तीन के अलग देश होने को सपोर्ट किया.
फिलिस्तीन से रखे कूटनीतिक रिश्ते
मिडिल ईस्टर्न मीडिया हाउस एआई मॉनिटर के अनुसार, फिलिस्तीन और रूस (तब सोवियत संघ) के बीच रिश्ते साल 1974 में आकार लेने लगे. इसी समय फिलिस्तीन के अधिकारों पर काम करने वाले संगठन फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ने मॉस्को में भी अपनी एक शाखा खोली. ये एक तरह से डिप्लोमेटिक ब्रांच खोलने जैसा था, हालांकि फिलिस्तीन तब भी आजाद देश नहीं था, बल्कि इसपर इजरायल का कब्जा था.
अब सवाल ये है कि फिलिस्तीन के लिए रूस इतना उदार क्यों रहा. इसकी वजह रूस और इजरायल के आपसी रिश्ते हैं. मॉस्को और तेल अवीव के बीच संबंध लगातार बनता-बिगड़ता रहे, लेकिन मोटे तौर पर देखा जाए तो ये रस्सी में पड़ चुकी गांठ जैसा रहा, यानी ठीक होकर भी खराब हो चुका.
यहूदी देश से खराब हो चुके थे संबंध
इजरायल के बनने के साथ ही रूस ने उसे देश बतौर मान्यता दे दी थी. लेकिन लगभग 2 दशक के भीतर इनके रिश्ते बिगड़ने लगे. असल में जून 1967 में अरब देशों के साथ इजरायल का युद्ध हुआ, जिसमें आखिरकार इजरायल ही जीता लेकिन रूस इसमें अरब की मदद करता रहा. वो उन्हें गोला-बारूद मुहैया करा रहा था. लड़ाई खत्म होने पर मॉस्को ने तेल अवीव से डिप्लोमेटिक रिश्ते तोड़ दिए. इसके बाद से दोनों के बीच संबंध बिगड़ते चले गए. वो खुले तौर पर फिलिस्तीन के अलग देश होने की बात करने लगा.
क्यों लिया इजरायल से बैर
- रूस का इजरायल से कोई ज्यादा वास्ता नहीं, लेकिन अरब से उसके अच्छे रिश्ते हैं. इजरायल छोटा और अकेला देश है, जबकि मिडिल ईस्ट में कई संपन्न मुस्लिम देश हैं. रूस ने इस क्षेत्र में अपना असर बनाने के लिए अरब और इजरायल में हमेशा अरब को ही चुना.
- इसमें एक फैक्टर अमेरिका और यूरोप भी रहे. रूस इनका विरोधी है, जबकि ये ताकतें इजरायल के साथ रहीं. इसलिए भी रूस और इजरायल संबंध उतने अच्छे नहीं रहे.
- रूस उन सारी जगहों पर अपना असर बना रहा है, जहां पश्चिम कुछ कमजोर है, फिर चाहे वो मिडिल ईस्ट हो या अफ्रीकी देश. वो शीतयुद्ध के उस समय का दोहराव नहीं चाहता, जब ज्यादातर देश अमेरिका की तरफ हो चुके थे, और वो चुनिंदा देशों के साथ अलग-थलग था.
- एक और फैक्टर है धर्म. पहले सोवियत संघ के तौर पर रूस में मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा थी. खुद को स्थिर रखने के लिए भी रूस ने मुस्लिम देशों, खासकर अरब देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहा.
पुतिन ने दिखाई थी नरमी
इजरायल-रूस-फिलिस्तीन संबंधों ने नई करवट ली कोल्ड वॉर खत्म होने यानी नब्बे के शुरुआती समय में. कुछ सालों बाद व्लादिमीर पुतिन सत्ता में आए. वे यहूदियों के लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखते थे, जिसका जिक्र वे अक्सर करते रहे. रूस में 10 लाख के आसपास यहूदी आबादी थी, जो रूसी बोलती थी. पुतिन उन्हें nashi Yevrei यानी हमारे यहूदी बुलाते थे.
परदे की ओट से अब भी सपोर्ट
पुतिन के राष्ट्रपति बनने के बाद रूस और इजरायल में डिप्लोमेटिक रिश्ते तो बहाल हो गए लेकिन जैसा कि हम कह चुके, रिश्ते में गांठ लग चुकी थी. सीरिया में अब भी रूसी सेना मौजूद है, जो कि इजरायल के लिए चिंता की बात है. इसके अलावा रूस का टू स्टेट सॉल्यूशन को सपोर्ट करना भी बिगाड़ की बड़ी वजह है. यहां तक कि 7 अक्टूबर को हमास के इजरायल पर हमले के बाद भी रूस यूएनएससी में उसका बचाव करता रहा.
इसी फरवरी में यानी हमले के कुछ ही महीनों बाद मॉस्को ने अपने यहां इंटरपेलेस्टाइन डायलॉग रखा था, जिसमें फिलिस्तीन इस्लामिक जेहाद से भी कई लीडर पहुंचे थे. यहां बता दें कि ये गुट और कुछ नहीं, बल्कि हमास की राजनैतिक शाखा है. इजरायल और रूस, दोनों ही हालांकि खुलकर टकराव को टाल रहे हैं.
क्या चाहता है रूस
अरब देशों से रिश्ते बनाकर अमेरिका को पछाड़ने में जुटे रूस के पास इजरायल और फिलिस्तीन के लिए कोई पक्का प्लान नहीं. जर्मन मीडिया डीडब्ल्यू की एक रिपोर्ट में रूसी-मध्यपूर्व मामलों के एक्सपर्ट रुस्लान सुलेमानोव ने कहा था कि रूस के पास फिलिस्तीन खासकर गाजा पट्टी के लिए कोई रोड मैप नहीं. अगर उसे मध्यस्थता करनी है तो गाजा में हमास के अलावा इजरायल से भी संबंध सुधारने होंगे. इसके बाद ही क्षेत्र में उसका दबदबा बढ़ेगा.
ताजा मुलाकात में क्या हो सकता है
माना जा रहा है कि फिलिस्तीन के राष्ट्रपति अब्बास रूसी लीडर पुतिन से फिलहाल चल रहे युद्ध के अलावा रिश्तों को और मजबूती देने पर बात कर सकते हैं. खुद अब्बास ने कहा था कि वे रूस की मदद लेना चाहते हैं क्योंकि उसका ग्लोबल पॉलिटिक्स के साथ यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में बड़ा ओहदा है.