फिलिस्तीन और इजरायल दोनों तरफ से तबाही की खबरें आ रही हैं. इस बीच इजरायली मीडिया ने दावा किया कि संघर्ष में मारे गए मिलिटेंट्स की जेब से कैप्टागन की गोलियां मिलीं. गरीबों की कोकीन कहलाने वाले इस ड्रग को लेने के बाद कोई भी लगातार जाग सकता है. इससे वो अलर्ट रहता है, और भूख-प्यास भी नहीं लगती. यूरोप ने इसे डिप्रेशन जैसी बीमारियों के लिए बनाया था. हाईली एडिक्टिव होने की वजह से जल्द ही इसपर बैन लग गया.
इसकी अवैध मैन्युफेक्चरिंग अब भी हो रही है. सिविल वॉर के दौरान सीरियाई मिलिटेंट्स ने इसका खासा इस्तेमाल किया. वहां सालों तक लोग आपस में ही भिड़ते रहे. खाने-पीने की सप्लाई रुकी हुई थी. ऐसे में लड़ाके ड्रग्स लेकर लड़ते रहे.
बाद में मिडिल ईस्ट के करीब-करीब सारे देशों में इसकी सप्लाई होने लगी. यहां तक कि नशे के कारोबार को लेकर सख्ती बरतने वाले सऊदी के रियाद से बीते साल ही कैप्टागन की काफी बड़ी खेप जब्त की गई. यहां बता दें कि नशे के लिए सऊदी समेत कई देशों में कड़ी सजा है.
ISIS के बारे में भी कहा जाता था कि उसमें नशे का इस्तेमाल आम था. वॉशिंगटन पोस्ट ने दावा किया था कि सीरिया में हो रही लड़ाई असल में ड्रग्स की वजह से थी. कैप्टागन लेकर आतंकी खुद को सुपरह्यूमन मानने लगते हैं. वे नशे में ही लगातार लड़ते-भिड़ते रहते हैं और बच्चों की हत्याओं से भी नहीं झिझकते.
दुनिया के सबसे बड़े नरसंहार के लिए जिम्मेदार हिटलर और उसकी सेना के बारे में लगातार कहा गया कि वे ड्रग्स लेकर ये काम करते थे. यहूदियों को गैस चैंबरों में बंद करके मारा जाना सामान्य इंसानों के लिए मुमकिन ही नहीं था. ऐसे काम करते हुए किसी अफसर या सैनिक के दिल में दया या ग्लानि न आए, इसके लिए हिटलर सबको नशा करवाया करता.
हिटलर के पर्सनल फिजिशियन थियोडोर मॉरेल ने वर्ल्ड वॉर के ठीक बाद कहा था कि हिटलर रोज कई तरह का नशा करता, जैसे ऑक्सीकोडॉन, मॉर्फीन और कोकीन भी. यहां तक कि लड़ाई या हत्याओं से पहले पूरी की पूरी नाजी पार्टी मेथामफेटामाइन नाम का नशा लेती थी.
मेथामफेटामाइन वही ड्रग है, जिसका नाम सोनाली फोगाट की मौत के समय आया था. गोवा पुलिस ने दावा किया था कि फोगाट को मौत के कुछ घंटों पहले यही ड्रग दिया गया था. सीधे सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर असर करने वाला ये नशा सफेद या पारदर्शी होता है और किसी भी खाने-पीने की चीज में आसानी से मिल जाता है.
इसे लेने पर शरीर और दिमाग जोश से भर जाता है और लगातार काम कर पाता है. यही वजह है कि हिटलर के सैनिक ये नशा करने लगे. उनपर अपने को बेहतर साबित करने का तो दबाव था ही, साथ ही लाखों हत्याओं के गिल्ट को भी दूर रखना था. ऐसे में मेथामफेटामाइन से बेहतर और सस्ता कोई नशा नहीं था.
हिटलर के दौर में उसे क्रिस्टल मेथ कहा जाता था. जर्मन लेखक नॉर्मेन ओहलर की किताब द टोटल रश में बताया गया कि कैसे नाजी सैनिक दिन-रात नशे में चूर रहा करते थे ताकि कभी भी वे दुख से न भर जाएं. इटली के तानाशाह मुसोलिनी के बारे में भी यही कहा जाता है.
जो सैनिक नशा लेने से मना करते, उनके खाने-पीने में इसकी मात्रा मिला दी जाती थी. यही वजह है कि वे बिना रुके लगातार कत्लेआम मचाते रहे. इसका अंत तब हुआ, जब दवा बनाने वाली कंपनी टेम्लर पर दुश्मन देशों ने बमबारी कर दी. ये साल 1945 की बात है. इसके साथ ही नाजी जर्मनी का भी अंत हो गया.
जर्मनी अकेला नहीं. कनाडा के ओंटेरियो में लॉरियर मिलिट्री हिस्ट्री आर्काइव में उन सारे देशों का जिक्र है, जो लड़ाई के दौरान अपने सैनिकों को ड्रग्स देते रहे. यहां तक कि कई जगहों पर नियम था कि हर 8 घंटे में सेना कोई न कोई ड्रग्स ले. सैनिक विटामिन की गोलियों की तरह नशा लिया करते.
अमेरिका और वियतनाम की लड़ाई में भी दोनों ही पक्षों पर इस तरह का आरोप लगा. असल में जंग के समय हालात ऐसे रहते हैं, जिसमें आम इंसान का दिल-दिमाग से काबू हट जाए. ऐसे में सैनिक अपना फोकस खोए बिना अपने देश का काम करते रहे, इसके लिए भी उन्हें ड्रग्स दिया जाने लगा. हालांकि ऐसा पश्चिम और मिडिल ईस्ट में ही ज्यादा दिखता रहा.