किस तरह से कोई जगह टूरिस्ट स्पॉट बनती है, या फिर कैसे उसे तीर्थ स्थल का दर्जा मिलता है, ये जानने से पहले एक बार हालिया विवाद को समझते चलें. मामला झारखंड के पारसनाथ पर स्थित सम्मेद शिखरजी से जुड़ा है, जो इस समुदाय के सबसे पवित्र स्थलों में से है. कुछ समय पहले झारखंड सरकार ने इस जगह को पर्यटन के लिहाज से तैयार करने की बात कर दी. इसपर समुदाय नाराज हो गया कि टूरिस्ट स्पॉट पर होने वाली सारी एक्टिविटीज अब उनके धार्मिक स्थल पर भी होने लगेंगी, जैसे मांस-शराब का सेवन.
इसी बात को लेकर देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं. यहां तक कि अनशन के दौरान एक जैन मुनि का निधन भी हो गया. इससे मामला और भड़क गया. अब जैन समुदाय हर हाल में पारसनाथ को तीर्थ ही रहने देने पर अड़ गया है.
कैसे कोई जगह तीर्थ या टूरिस्ट स्पॉट हो जाती है?
तीर्थस्थल और पर्यटन स्थल में बेसिक फर्क है भावना और व्यवहार का. टूरिस्ट की तरह जाते हुए हम जब अपना बैग पैक करते हैं, तो वहीं से बदलाव दिखने लगता है. अपने पसंदीदा कपड़ों से लेकर पसंदीदा खाना हमारी प्राथमिकता होती है. टूरिस्ट स्पॉट पर खानपान और व्यवहार में खुलापन रहता है. सैलानी ज्यादा से ज्यादा एंजॉय करने के लिए जाते हैं. मनोरंजन के लिए काफी सुविधाएं होती हैं.
तीर्थस्थल में अलिखित ड्रेस कोड भी
तीर्थस्थल पर सबकुछ बदल जाता है. वहां धर्म भी होता है और कट्टरता भी. खास तरह के या फिर ज्यादा से ज्यादा सादगीभरे कपड़ों और खानपान पर जोर रहता है. तीर्थस्थल के आसपास से लेकर काफी दूर तक इस बात की पाबंदी रहती है ताकि किसी धर्म विशेष को परेशानी न हो. ये नियम हिंदू, या जैन धर्म में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में जहां, जितने भी तीर्थस्थल हैं, वहां लागू होता है. यहां तक कि वेटिकन सिटी की भी बात करें तो वहां नियम पालन पर काफी सख्ती है.
आस्था से जुड़ा होना जरूरी
तीर्थ कहलाने के लिए किसी जगह में कुछ खास बातें होनी चाहिए, जैसे किसी धर्म से उसका संबंध, कोई आध्यात्मिक यात्रा, या फिर आस्था. वैसे पश्चिमी देशों में इसे धर्म की बजाए ज्यादातर आध्यात्म से जोड़ा जाता है. आजकल एक और चलन आया हुआ है, जिसमें किसी खास प्रोफेशन की नींव रख चुके लोगों की जन्म या कर्मस्थली को तीर्थ की तरह विकसित किया जाने लगा. हालांकि भारत समेत ज्यादातर देशों में अब भी धार्मिक स्थल ही तीर्थस्थल की तरह लिए जाते हैं.
नदी या पानी के स्त्रोत से संबंध
तीर्थ संस्कृत से उपजा शब्द है, जिसके मायने हैं नदी या घाट किनारे का पवित्र स्थान. देखें तो पाएंगे कि हमारे यहां ज्यादातर तीर्थ नदियों के किनारे ही हैं. श्रद्धालु स्नान के बाद शरीर और मन की शुद्धि के साथ ईश्वर के दर्शन करते हैं.
भावनाओं को देखते हुए होता है बदलाव
टूरिस्ट स्पॉट और तीर्थस्थल के लिए कोई खास टैग तो नहीं, लेकिन सरकार इसका फैसला उस जगह से जुड़ी आस्था के आधार पर लेती है. अगर किसी या बहुत से धर्मों की आस्था किसी खास जगह के लिए हो, या उस जगह के कुछ धार्मिक मायने हों तो उसे आमतौर पर तीर्थस्थल की तरह ही डेवलप किया जाता है. इसके आसपास ट्रांसपोर्ट, भोजन, इलाज की व्यवस्था तो होती है, लेकिन मनोरंजन के लिए कम ही चीजें मिलेगीं.
इस तरह मानते हैं टूरिस्ट प्लेस
टूरिस्ट स्पॉट पर ऐशोआराम की तमाम चीजें होंगी. उसे इस तरह से बनाया जाएगा कि देश ही नहीं, दुनिया के लोग आकर उसका आनंद ले सकें. इससे राजस्व भी बढ़ता है. यही वजह है कि अधिकतर देशों में टूरिस्ट स्पॉट ही ज्यादा हैं. भारत में सेक्शन 3 के तहत पर्यटन विभाग किसी खास जगह को टूरिस्ट स्पॉट डिक्लेअर करता है. इससे पहले उस जगह का दौरा करते तय किया जाता है कि उसमें सैलानियों को लुभाने की तमाम गुंजाइशें हैं. तीर्थस्थलों को तीर्थ घोषित करने का काम सरकार की बजाए आमतौर पर धर्म विशेष करता है. सरकार का इस मामले में दखल कम ही होता है.
पारसनाथ जी की बात करें तो साल 2019 में इस पवित्र पहाड़ी को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया गया. ये वो क्षेत्र होता है जो किसी भी वजह से पर्यावरण के लिए संवेदनशील होता है. यहां की वनस्पति और जीव-जंतुओं की रक्षा पर खास ध्यान देते हुए सरकार ऐसी जगह को इको-टूरिज्म के स्त्रोत की तरह भी देखती है. पारसनाथ जी को भी कुछ इसी तरह से डेवलप करने की बात रही होगी, जिसके बाद विरोध शुरू हुआ.