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14-15 अगस्त 1947 की रात को दिया नेहरू का वो भाषण, जिसका पीएम मोदी ने किया जिक्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के विशेष सत्र के पहले दिन सदन को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि ये वो सदन है जहां पंडित नेहरू का स्ट्रोक ऑफ मिडनाइट की गूंज कोई नहीं भूल सकता. असल में पंडित नेहरू ने ये भाषण आजादी की रात को दिया था. उस भाषण में नेहरू ने क्या कहा था? पढ़िए...

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आजादी की पहली रात संविधान सभा में भाषण देते जवाहरलाल नेहरू. (फाइल फोटो)
आजादी की पहली रात संविधान सभा में भाषण देते जवाहरलाल नेहरू. (फाइल फोटो)

96 साल बाद पुराना संसद भवन आज रिटायर हो गया. अब से यहां सत्र नहीं होगा. संसद का विशेष सत्र मंगलवार से नए संसद भवन में ही होगा. विशेष सत्र के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में भाषण दिया. इस दौरान उन्होंने पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, 'ये वो सदन है, जहां पंडित नेहरू का स्ट्रोक ऑफ मिडनाइट की गूंज को कोई नहीं भूल सकता.'

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प्रधानमंत्री मोदी ने नेहरू के जिस भाषण का यहां जिक्र किया, असल में वो उन्होंने 14 और 15 अगस्त 1947 की रात को दिया था. उनके भाषण को 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' के नाम से जाना जाता है.

आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने जवाहरलाल नेहरू ने ये भाषण संविधान सभा में दिया था. इसे 20वीं सदी के सबसे ताकतवर भाषण में से एक माना जाता है. 

भारत नई सुबह के साथ उठेगा

'हमने नियति को मिलने का वचन दिया था. और अब समय आ गया है कि हम उस वचन को निभाएं. पूरी तरह न सही. लेकिन बहुत हद तक.'

'आज रात बारह बजे सब सारी दुनिया सो रही होगी, तब भारत जीवन और स्वतंत्रता की नई सुबह के साथ उठेगा. एक क्षण आता है, जो इतिहास में शायद ही कभी आता है, जब हम पुराने से नए की ओर बढ़ते हैं, जब एक युग समाप्त होता है और जब लंबे समय से दबी हुई एक राष्ट्र की आत्मा को अभिव्यक्ति मिलती है. ये एक संयोग है कि इस पवित्र अवसर पर हम समर्पण के साथ खुद को भारत और उसकी जनता की सेवा और उससे भी बढ़कर सारी मानवता की सेवा करने की प्रतिज्ञा ले रहे हैं.'

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'इतिहास की शुरुआत में ही भारत ने अपनी अंतहीन खोज शुरू कर दी थी. और अनगिनत सदियां उसके प्रयासों, उसकी सफलताओं और असफलताओं से भरी हुई हैं. चाहे अच्छा हो या बुरा, भारत ने कभी भी उस खोज को नजरअंदाज नहीं किया या उन आदर्शों को नहीं भुलाया जिन्होंने उसे ताकत दी थी. आज हम दुर्भाग्य से एक युग का अंत कर रहे हैं और भारत फिर से खुद को खोज रहा है.'

'आज हम जिस उपलब्धि का जश्न मना रहे हैं, वो महज एक कदम है, नए अवसरों के खुलने का. इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियां हमारा इंतजार कर रहीं हैं. क्या हम इतने साहसी और बुद्धिमान हैं कि इस अवसर को समझ सकें और भविष्य की चुनौती को स्वीकार कर सकें?'

अब भविष्य हमारा है

'स्वतंत्रता और सत्ता जिम्मेदारी लाती है. जिम्मेदारी इस सभा पर है, जो भारत की जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली संप्रभु संस्था है. आजादी के जन्म से पहले हमने प्रसव की सारी पीड़ा सहन की है. कुछ दर्द अब भी हैं. फिर भी, अतीत बीत चुका है और अब भविष्य ही हमारी ओर इशारा कर रहा है.' 

'वो भविष्य आराम करने का नहीं है, बल्कि निरंतर प्रयास करने का है ताकि हम उन प्रतिज्ञाओं को पूरा कर सकें जो हम अक्सर लेते आए हैं और जो आज हम लेंगे. भारत की सेवा का मतलब उन लाखों पीड़ितों की सेवा से है. इसका अर्थ है गरीबी, अज्ञानता, बीमारी और अवसर की असमानता का अंत. हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की महत्वाकांक्षा हर आंख से हर आंसू पोंछने की रही है. और जब तक आंसू और पीड़ा है, तब तक हमारा काम खत्म नहीं होगा. और इसलिए हमें अपने सपनों को सच करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी. वो सपने भारत के लिए हैं. दुनिया के लिए भी हैं. क्योंकि आज सभी राष्ट्र और लोग एक-दूसरे के इतने करीब हैं कि उनमें से कोई भी ये कल्पना नहीं कर सकता कि वो अलग-अलग रह सकते हैं.' 

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'भारत के लोगों से, जिनके हम प्रतिनिधि हैं, हम इस महान साहसिक काम में विश्वास के साथ शामिल होने की अपील करते हैं. ये आलोचना करने का समय नहीं है. दुर्भावना रखने या दूसरों को दोष देने का समय नहीं है. हमें स्वतंत्र भारत की भव्य इमारत का निर्माण करना है, जहां उसके सभी नागरिक रह सकें.'

भारत दुनिया में सही जगह हासिल कर सके

'मैं आप सभी से विनती करता हूं... आधी रात के आखिरी पहर के बाद, इस अवसर पर उपस्थित संविधान सभा के सभी सदस्य प्रतिज्ञा करेंः इस महत्वपूर्ण क्षण में, जब भारत के लोगों ने कष्ट और बलिदान के माध्यम से स्वतंत्रता हासिल की है. मैं.......... भारत की संविधान का सदस्य, पूरी विनम्रता से भारत और उसके नागरिकों की सेवा के लिए खुद को समर्पित करता हूं. ताकि ये प्राचीन भूमि भारत दुनिया में अपनी सही जगह बना सके और विश्व शांति को बढ़ाने और मानव जाति के कल्याण में पूरा योगदान दे सके.'

वचन निभाने के लिए बहुत कुछ करना है

'आज नियत समय आ गया है. एक ऐसा दिन जिसे नियति ने तय किया था. और एक बार फिर सालों के संघर्षों के बाद, भारत जागृत और स्वतंत्र खड़ा है. कुछ हद तक हमारा अतीत हमसे जुड़ा हुआ है. और हम अक्सर जो वचन लेते हैं, उसे निभाने के लिए बहुत कुछ करना है. हमारे लिए एक नया इतिहास आरंभ हो चुका है. एक ऐसा इतिहास जिसे हम गढ़ेंगे. जिसके बारे में और लोग भी लिखेंगे.'

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'ये हमारे लिए सौभाग्य का क्षण है. एक नया तारा उगा है. पूरब में स्वतंत्रता का तारा. एक नई आशा का जन्म हुआ है. काश ये तारा कभी अस्त न हो. हम सदा इस स्वतंत्रता में आनंदित रहें.'

'भविष्य हमें बुला रहा है. हमें किधर जाना चाहिए और हमारे क्या प्रयास होने चाहिए, जिससे हम आम आदमी, किसानों और कामगारों के लिए स्वतंत्रता और अवसर ला सकें. गरीबी, अज्ञानता और बीमारियों से लड़ सकें. एक समृद्ध, लोकतांत्रिक और प्रगतिशील देश का निर्माण कर सकें. ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थानों की स्थापना कर सकें. जो हर एक पुरुष और स्त्री के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सके.'

'हमें कड़ी मेहनत करनी होगी. हममें से कोई भी तब तक चैन से नहीं बैठ सकता, जब तक हम अपने वचन को पूरी तरह से निभा नहीं देते. जब तक हमें सभी भारतीयों को वहां तक पहुंचा नहीं देते, जहां किस्मत उन्हें पहुंचाना चाहती है.'

'हम सभी महान देश के नागरिक हैं. हम सभी चाहे जिस धर्म के हों, समान रूप से भारत मां की संतान हैं. हम सभी के बराबर अधिकार और दायित्व हैं. हम और संकीर्ण सोच को बढ़ावा नहीं दे सकते, क्योंकि कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता, जब तक उसकी उसके लोगों की सोच या काम संकीर्ण हैं.'

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