सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर को खास दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को खत्म करने के सेंटर के फैसले को जारी रखा. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने आर्टिकल 370 को 'अस्थायी प्रावधान' भी बताया. कश्मीर पर संसद से लेकर आम लोगों के बीच बहस के दौरान बार-बार स्थाई निवासी टर्म आता रहा. डोगरा शासकों के समय से लगातार सरकारों ने जम्मू-कश्मीर के असली निवासियों को अलग-अलग तरीके से जाना.
19वीं सदी में भी था विवाद
कश्मीर में भीतरी और बाहरी लोगों का कंसेप्ट काफी पुराना था. 19वीं सदी से ही इसकी शुरुआत हो चुकी थी, जब इस रिसायत में देश के दूसरे हिस्सों से लोग आने और नौकरियां पाने लगे थे. इसे लेकर कश्मीर में बसे लोग परेशान थे. लोकल निवासियों को शांत करने के लिए ब्रिटिश हुकूमत के दौरान साल 1889 में पहला सर्कुलर आया. इसमें कहा गया कि कश्मीर में सरकारी नौकरी के लिए स्थानीय लोगों को ही ऊपर रखा जाएगा. यही सर्कुलर आगे बढ़ते हुए आखिरी डोगरा राजा हरि सिंह के वक्त तक पहुंच गया.
अलग-अलग श्रेणियां बन गईं
साल 1927 में हरि सिंह ने निवासियों को 4 हिस्सों में बांट दिया. इसमें वे लोग भी थे, जो कश्मीर में ही जन्मे और पले-बढ़े, साथ ही वे भी थे, जो दूसरी जगहों से आकर लंबे समय से कश्मीर में बस चुके थे. वैध तरीकों से अचल संपत्ति बना चुके लोग भी इसमें शामिल थे. हालांकि सभी श्रेणियों को कम-ज्यादा अधिकार थे. ऑर्डर में ये भी साफ किया गया कि इन श्रेणियों की आने वाली पीढ़ियां भी राज्य में उतना ही अधिकार पाएंगी, जितना उनके पुरखों को मिलता रहा.
आजाद भारत के कश्मीर में क्या बदला
नवंबर 1956 को जम्मू-कश्मीर असेंबली ने एक नया संविधान अपनाया. इसमें राजा हरि सिंह डोगरा के समय के 'स्टेट सब्जेक्ट' को स्थाई निवासी बना दिया गया. इसमें कहा गया है कि हरेक व्यक्ति जो भारत के संविधान के तहत भारतीय नागरिक है, साथ ही जो 1954 तक स्टेट सबजेक्ट की पहली दो श्रेणियों में रह चुका है, वो स्थाई नागरिक होगा. या फिर जो पिछले 10 सालों से रह रहा और इतने ही समय से कश्मीर में अचल संपत्ति खरीद चुका है, उसे भी परमानेंट निवासी माना जाएगा.
अगर कोई कश्मीर में रहते हुए उन इलाकों में बस गया हो, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान में चले गए, ऐसे लोगों के लिए भी जम्मू-कश्मीर में गुंजाइश रखी गई. अगर वे रीसैटलमेंट के लिए लौटना चाहें तो नियमों के तहत उन्हें भी परमानेंट रेजिडेंट माना जा सकता है.
महिलाओं के लिए भी इसमें जगह
किसी भी बाहरी व्यक्ति से शादी करने के बाद भी जम्मू-कश्मीर की महिला वहां की स्थाई निवासी ही रहेगी और संपत्ति पर अधिकार सहित सभी हक उसके पास रहेंगे. इसे हटाने के लिए पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन सरकार ने परमानेंट रेजिडेंट्स (डिसक्वालिफिकेशन) बिल भी लाना चाहा लेकिन ये मामला बीच में ही अटक गया.
क्या बदलेगा नए नियम में
अगस्त 2019 में जब सेंटर ने अनुच्छेद 370 में बदलाव किया, तब 'स्थाई निवासियों' को 'डोमिसाइल' के तौर पर परिभाषित किया गया. डोमिसाइल असल में आधिकारिक दर्जा है जो बताता है कि फलां शख्स किसी राज्य या यूनियन टैरिटरी का स्थाई निवासी है.
इन्हें मिल सकता है निवास प्रमाण पत्र
नई परिभाषा के अनुसार, कोई भी व्यक्ति केंद्र शासित राज्य जम्मू-कश्मीर का निवासी हो सकता है अगर वो वहां 15 सालों तक रहा हो, या फिर 7 सालों तक पढ़ाई करते हुए वहीं से 10वीं या 12वीं की परीक्षा दी हो. इसमें वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने खुद को माइग्रेंट की तरह रजिस्टर किया हो. डोमिसाइल के तहत केंद्र सरकार के सभी अधिकारियों के बच्चे, शोध संस्थान में काम करने वालों के परिवार और वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर की सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 10 सालों तक सर्विस दी हो.
साल 2019 से अब तक कितने लोग घाटी लौटे
नब्बे के दशक में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और घाटी छोड़कर जाने के बाद से अब तक हालातों में कई बदलाव बताए जा रहे हैं. अनुच्छेद 370 हटने के बाद से साल 2022 की शुरुआत तक 2 हजार से ज्यादा माइग्रेंट्स घाटी में वापस लौटे. ये दावा सेंटर की ओर से किया गया. हालांकि कई मीडिया रिपोर्ट्स ये भी कहती हैं कि जम्मू-कश्मीर से 370 हटने के बाद सुरक्षा तो बढ़ी, लेकिन वहां से भागे लोग या तो वापस लौटते हुए हिचक रहे हैं, या घाटी पहुंच चुके परिवार एक बार फिर वहां से जाने की तैयारी में हैं. माइनोरिटी अब भी वहां खुद को सेफ नहीं मान पा रही.