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13,700 फीट की ऊंचाई पर बनी सेला टनल क्यों है खास? पढ़ें- चीन को कैसे मिलेगा इससे जवाब

अरुणाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को सेला टनल का उद्घाटन किया. इसमें दो सुरंगें बनाई गई हैं. इस सुरंग के बनने से चीन सीमा की दूरी 10 किलोमीटर तक कम हो जाएगी.

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सेला टनल 13,700 फीट की ऊंचाई पर बनी है.
सेला टनल 13,700 फीट की ऊंचाई पर बनी है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को अरुणाचल प्रदेश में 'सेला टनल' का उद्घाटन किया. ये दुनिया की सबसे लंबी डबल-लेन टनल है. 

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13 हजार 700 फीट की ऊंचाई पर बनी ये सुरंग रणनीतिक लिहाज से काफी अहम है. ये सुरंग असम के तेजपुर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग को जोड़ने वाली सड़क पर बनाई गई है. इसे बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) ने बनाया है.

सेला सुरंग की नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2019 में रखी थी. शनिवार को इसका उद्घाटन करते हुए पीएम मोदी ने बताया कि पूर्वोत्तर में और भी सुरंगों का निर्माण कार्य चल रहा है.

ये सुरंग अरुणाचल प्रदेश में बालीपारा-चारिदुआर-तवांग रोड पर सेला दर्रे के पार तवांग तक सभी मौसम में कनेक्टिविटी देगी. 

सेला टनल की क्या है खासियत?

इस सुरंग को बनाने में 825 करोड़ रुपये का खर्च आया है. इस पूरे प्रोजेक्ट के तहत दो सुरंगें बनाई गईं हैं. इन सुरंगों को आपस में जोड़ने के लिए सड़क बनी है. कुल मिलाकर सुरंग और सड़कों को मिलाकर ये 12 किलोमीटर लंबी है.

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जो दो सुरंग बनाई गई हैं, उसमें पहली सिंगल-ट्यूब टनल है, जो 980 मीटर लंबी है. जबकि, दूसरी डबल-ट्यूब टनल है, जो 1.5 किलोमीटर लंबी है. 

डबल-ट्यूब टनल में ट्रैफिक के लिए दो लेन बनाई गई हैं. एक लेन सामान्य ट्रैफिक के लिए है. जबकि, दूसरी लेन इमरजेंसी में बाहर निकलने की सुविधा भी मौजूद है. 

पहली सुरंग तक पहुंचने के लिए लगभग सात किलोमीटर लंबी सड़क बनाई गई है. और दूसरी सुरंग के लिए 1.2 किलोमीटर सड़क को लिंक रोड के रूप में तैयार किया गया है.

सेफ्टी सिस्टम

सेला टनल से समय की भी काफी बचत होगी. ये सुरंग अरुणाचल के पश्चिम कामिंग जिले में तवांग और देरांग के बीच की दूरी को 12 किमी तक कम कर देगी. इससे लगभग 90 मिनट बचेंगे.

ये दुनिया की सबसे लंबी डबल-लेन सुरंग है. इसे यात्रियों की सुरक्षा को भी ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है. इसमें वेंटिलेशन सिस्टम, लाइट सिस्टम और फायर ब्रिगेड सिस्टम भी है. 

इस सुरंग से रोजाना तीन हजार छोटी गाड़ियां और दो हजार बड़े ट्रक आना-जाना कर सकते हैं.

इसलिए भी अहम है ये सुरंग?

बताया जा रहा है कि इस सुरंग के बनने से चीन सीमा तक की दूरी लगभग 10 किमी तक कम हो जाएगी. ये एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) के नजदीक बनी है, जिससे चीन सीमा तक जल्दी पहुंचा जा सकेगा.

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इस सुरंग के बनने से चीन बॉर्डर तक भारतीय सेना की पहुंच आसान हो जाएगी. इस टनल के जरिए भारतीय सेना किसी भी मौसम में जरूरत के सभी सामान सीमा तक पहुंचा सकेगी.

दरअसल, सर्दियां में यहां तापमान 20 डिग्री से भी नीचे गिर जाता है. ऐसी स्थिति में भारतीय सेना तक जरूरत का सामान पहुंचाने में दिक्कत आती थी. लेकिन सेला टनल से असम के गुवाहाटी और तवांग में तैनात भारतीय सैनिकों तक हर मौसम में सामान पहुंचाया जा सकेगा.

चीन को कैसे मिलेगा जवाब?

अभी तक सेना और आम नागरिक तवांग तक पहुंचने के लिए बालीपारा-चारिदुआर रोड (असम) का इस्तेमाल करते थे, क्योंकि सर्दियों में बर्फबारी के कारण सेला दर्रा बंद हो जाता था.

इन सुरंगों को इस तरह से डिजाइन किया गया है, ताकि यहां से बोफोर्स तोपों जैसे बड़े तोपखाने, टी-90 और वज्र हॉवित्जर जैसे टैंक आसानी से किसी भी मौसम में तवांग तक पहुंच सकते हैं. 

इस सुरंग से चीन सीमा की दूरी तो कम होगी ही, साथ ही साथ तेजपुर (असम) और तवांग (अरुणाचल) में सेना के जो चार कोर हेडक्वार्टर हैं, उनके बीच की दूरी भी करीब एक घंटे तक कम हो जाएगी.

इतना ही नहीं, अभी तक एलएसी के पास तवांग में चीन भारतीय सेना की गाड़ियों के मूवमेंट पर नजर रखता था, सुरंग बनने से अब उसकी निगरानी भी बंद हो जाएगी. 

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तवांग इसलिए है खास

लगभग सवा दो साल पहले तवांग में ही भारतीय और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी. चीन की सीमा से तवांग लगभग 35 किलोमीटर दूर है. 

अरुणाचल में पड़ने वाले तवांग पर चीन की बुरी नजरें हमेशा से रही हैं. तवांग बौद्धों का प्रमुख धर्मस्थल भी है. इसे एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ भी कहा जाता है. 

1914 में जो समझौता हुआ था, उसमें तवांग को अरुणाचल का हिस्सा बताया था, लेकिन चीन इसे तिब्बत का हिस्सा बताता है. 

1962 की जंग के दौरान तवांग पर एक महीने तक चीनी सेना का कब्जा रहा था. बाद में युद्धविराम के तहत उसे अपना अवैध कब्जा छोड़ना पड़ा था. तवांग में अक्सर भारत और चीन की सेना में टकराव होता रहा है. आखिरी बार दिसंबर 2022 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प हुई थी.

अभी तो ये भी बाकी है

सेला प्रोजेक्ट पूरा हो चुका है, लेकिन चीन सीमा से सटे इलाकों में भारत तेजी से बुनियादी ढांचे को बढ़ा रहा है. चीन सीमा पर पहुंच बढ़ाने के लिए मोदी सरकार 'अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे' प्रोजेक्ट पर भी काम कर रही है. 

अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे प्रोजेक्ट के तहत, 2 हजार 178 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई जा रही है, जो चीन की सीमा से सटी रहेगी. इस पर 40 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होने का अनुमान है.

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ये हाईवे तवांग से शुरू होगा और फिर पूर्वी कामिंग, अपर सुबनसिरी, पश्चिमी सियांग, तूतिंग, मेचुका, अपर सियांग, दिबांग वैली, डेसाली, चगलागम, किबिथू, डोंग और हवाई से गुजरती हुई विजयनगर में खत्म होगा.

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