प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के सिंगापुर के दौरे पर हैं. दौरे के दूसरे दिन पीएम मोदी ने सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेन्स वॉन्ग के साथ मुलाकात की. इस दौरान भारत और सिंगापुर के बीच चार अहम समझौतों पर भी दस्तखत हुए.
अपने दौरे के दूसरे दिन पीएम मोदी ने लॉरेन्स वॉन्ग के साथ सिंगापुर की AEM होल्डिंग्स लिमिटेड के सेमीकंडक्टर सेंटर का भी दौरा किया. पीएम मोदी ने कंपनियों को सेमीकॉन इंडिया एग्जिबिशन में आने का न्योता दिया. 11 से 13 सितंबर के बीच ग्रेटर नोएडा में सेमीकॉन इंडिया एग्जिबिशन होगा.
इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वो भारत में भी कई सिंगापुर बनाना चाहते हैं. पीएम मोदी ने कहा, 'हम भारत में भी अनेक सिंगापुर बनाना चाहते हैं और हमें खुशी कि हम इस दिशा में मिलकर कोशिश कर रहे हैं.'
पर प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा क्यों कहा? दरअसल, ऐसा कहने की वजह भारत को भी सिंगापुर की तरह सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का बड़ा हब बनाना है.
सिंगापुर का मतलब क्या?
60 से ज्यादा छोटे-छोटे द्वीपों से मिलकर सिंगापुर 735 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है. अगर देखा जाए तो सिंगापुर, भारत से लगभग साढ़े चार हजार गुना छोटा है. लेकिन इतना छोटा होने के बावजूद सिंगापुर सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का बादशाह है.
सिंगापुर की जीडीपी में 7% हिस्सेदारी सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री की है. दुनियाभर के 10% सेमीकंडक्टर मार्केट पर सिंगापुर का ही कब्जा है. वहीं, सेमीकंडक्टर से जुड़ी इक्विपमेंट बनाने में सिंगापुर की हिस्सेदारी 20% है. इतना ही नहीं, दुनियाभर के 5% सेमीकंडक्टर इंडस्ट्रियल पार्क भी सिंगापुर में ही हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की 15 टॉप सेमीकंडक्टर कंपनियों में से 9 ने सिंगापुर में अपनी ब्रांच खोली हैं.
सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के चार बड़े प्लेयर हैं. पहला- आईसी डिजाइन. दूसरा- असेंबली, पैकेजिंग और टेस्टिंग. तीसरा- वेफर फैब्रिकेशन या इंडस्ट्रियल पार्क. चौथा- इक्विपमेंट प्रोडक्शन. इन चारों में सिंगापुर का दबदबा है.
सिंगापुर सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2000 से 2022 के बीच देश में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री सालाना 9.3 फीसदी की दर से बढ़ी है. सिंगापुर का मैनुफैक्चरिंग सेक्टर पूरी तरह से सेमीकंडक्टर पर ही निर्भर है. मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री की 44% हिस्सेदारी है.
पर ये सब हुआ कैसे?
1960 के दशक में अमेरिकी चिप कंपनियों ने सिंगापुर और दक्षिण एशियाई देशों का रूख किया. इसकी वजह ये थी कि यहां सस्ते में अच्छे मजदूर मिल जाते थे. सिंगापुर ने इसे भुनाया. सिंगापुर की अर्थव्यवस्था हमेशा से मैनुफैक्चरिंग सेक्टर पर निर्भर रही है. इसलिए मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में काम करने वालों को तनख्वाह भी अच्छी मिलती है.
सिंगापुर इकोनॉमिक डेवलपमेंट बोर्ड (EDB) के मुताबिक, पिछले 55 साल में खुद को सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का सबसे बड़ा हब बनाने के मकसद से सिंगापुर ने काफी निवेश किया है. सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के लिए यहां उस तरह का इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित किया गया है. सिंगापुर के कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स और आईसी डिजाइनिंग की पढ़ाई करवाई जाती है, ताकि युवाओं को इसके लिए तैयार किया जा सके.
इतना ही नहीं, सिंगापुर की सरकार ने रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर भी काफी खर्च करती है. अगले पांच साल में इस पर 28 अरब डॉलर का खर्च किया जाएगा.
क्या भारत में बन सकते हैं सिंगापुर?
प्रधानमंत्री मोदी ने जो कहा, उसका मतलब यही था कि सिंगापुर की तरह ही भारत भी सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का बड़ा हब बन सके. बढ़ती टेक्नोलॉजी ने सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को भी बढ़ा दिया है.
2023 तक दुनियाभर में सेमीकंडक्टर मार्केट 600 अरब डॉलर का था. इस साल तक ये 680 अरब डॉलर के पार जाने की उम्मीद है. जबकि, 2032 तक सेमीकंडक्टर मार्केट दो हजार अरब डॉलर से भी ज्यादा होने का अनुमान है.
सिंगापुर में अभी जो चिप बनती हैं, वो बहुत ज्यादा एडवांस्ड नहीं हैं. वहां बनने वाली चिपों का इस्तेमाल एप्लायंसेस, कारों और इक्विपमेंट में होता है. लेकिन जिस तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) बढ़ रहा है, उसके लिए ज्यादा एडवांस्ड चिप की जरूरत है, जो सिंगापुर में नहीं बनती. ऐसे में भारत के पास एक मौका है कि वो सेमीकंडक्टर कंपनियों को यहां मैनुफैक्चरिंग प्लांट लगाने के लिए राजी करे.
अब ज्यादातर कंपनियां एआई चिप में भारी निवेश कर रही हैं. भारत के लिए अच्छी बात ये है कि सिंगापुर में जिन कंपनियों के प्लांट हैं, उनमें से ज्यादातर वहां एआई चिप के लिए निवेश करने में दिलचस्पी नहीं रखतीं. टीएमसी, सैमसंग और इंटेल जैसी कंपनियां सिंगापुर से बाहर जगह तलाश रही हैं.
भारत का सेमीकंडक्टर मार्केट लगातार बढ़ रहा है. 2023 तक भारत का सेमीकंडक्टर मार्केट 35 अरब डॉलर का था. 2023 तक ये बढ़कर 190 अरब डॉलर तक होने की उम्मीद है. भारत में पहले ही दुनिया की कई टॉप कंपनियों ने मैनुफैक्चरिंग प्लांट स्थापित किए हैं. भारत में कई सारे सिंगापुर इसलिए बन सकते हैं, क्योंकि यहां न सिर्फ रिसोर्सेस हैं, बल्कि युवा आबादी भी है.