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तीन साल में खर्च होंगे 3.68 लाख करोड़... जानें क्या है PM-PRANAM योजना, क्यों है जरूरी?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस योजना का ऐलान बजट में किया था. इस योजना का मकसद वैकल्पिक खाद के इस्तेमाल को बढ़ाने और केमिकल फर्टिलाइजर के इस्तेमाल को कम करने या संतुलित इस्तेमाल करने को बढ़ावा देना है.

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कैबिनेट ने पीएम-प्रणाम योजना को मंजूरी दे दी है. (फाइल फोटो-PTI)
कैबिनेट ने पीएम-प्रणाम योजना को मंजूरी दे दी है. (फाइल फोटो-PTI)

मोदी सरकार ने बुधवार को कैबिनेट की बैठक में प्रधानमंत्री-प्रणाम योजना को मंजूरी दे दी. PM-PRANAM यानी प्रमोशन ऑफ ऑल्टरनेटिव न्यूट्रियन्ट्स फॉर एग्रीकल्चर मैनेजमेंट स्कीम. 

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल बजट पेश करते समय इस योजना का ऐलान किया था. इस योजना का मकसद वैकल्पिक खाद का इस्तेमाल बढ़ाना और केमिकल फर्टिलाइजर का इस्तेमाल कम करना है.

इस योजना के तहत, अगले तीन साल यानी मार्च 2025 तक 3.68 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे. ये रकम राज्यों को सब्सिडी के तौर पर मिलेगी.

क्यों आई ये योजना?

- 1991 के बाद से सरकार का मकसद खाद्य उत्पादन को दोगुना करने और किसानों को सशक्त बनाने पर है. हालांकि, पीएम-प्रणाम योजना के जरिए सरकार फर्टिलाइजर सब्सिडी के बढ़ते बोझ को कम करना और मिट्टी की सेहत को सुधारना चाहती है.

- केमिकल फर्टिलाइजर के बहुत ज्यादा इस्तेमाल की वजह से न सिर्फ खेती में बल्कि अनाज के पोषक तत्वों की क्वालिटी में भी गिरावट आ रही है.

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- 2022-23 में केंद्र सरकार ने केमिकल फर्टिलाइजर पर दी जाने वाली सब्सिडी पर 2.25 लाख करोड़ रुपये खर्च किए, जो 2021-22 की तुलना में 39% ज्यादा है. 2021-22 में 1.62 लाख करोड़ रुपये सब्सिडी दी गई थी.

क्या है पीएम-प्रणाम योजना?

- जैसा कि ऊपर बता चुके हैं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस योजना का ऐलान बजट में किया था. 

- बुधवार को कैबिनेट बैठक में केंद्र सरकार ने किसानों से जुड़ी योजनाओं के लिए 3.70 लाख करोड़ रुपये के पैकेज को मंजूरी दी है. इसमें से 3.68 लाख करोड़ रुपये अगले तीन साल तक यूरिया सब्सिडी पर खर्च होंगे.

- इस योजना का मकसद वैकल्पिक खाद के इस्तेमाल को बढ़ाने और केमिकल फर्टिलाइजर के इस्तेमाल को कम करने या संतुलित इस्तेमाल करने को बढ़ावा देना है.

कैसे काम करेगी योजना?

- पीएम-प्रणाम योजना के लिए अलग से फंड की व्यवस्था नहीं की गई है. इस पर 2022-23 से 2024-25 तक तीन साल में 3.68 लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा.

- ये खर्चा उर्वरक विभाग की ओर से दी जा रही फर्टिलाइजर सब्सिडी के जरिए ही दिया जाएगा. यानी अभी जो फर्टिलाइजर सब्सिडी दी जाती है, उसकी सेविंग से ही ये योजना चलेगी.

- अभी इस योजना को लेकर बहुत ज्यादा जानकारी सामने नहीं आई है. हालांकि, कुछ रिपोर्ट्स में ऐसा बताया जा रहा है कि 50% सब्सिडी बचत को राज्यों को ग्रांट के रूप में दिया जाएगा.

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- राज्यों को जो केंद्र की ओर से ग्रांट मिलेगी, उसका 70% वो वैकल्पिक उर्वरकों और वैकल्पिक उर्वरकों की तकनीक से जुड़ी संपत्ति को बनाने में खर्च करेंगे. 

- बाकी 30% फंड का इस्तेमाल किसानों, पंचायतों, उत्पादक संगठनों और सेल्फ हेल्प ग्रुप्स को प्रोत्साहित करने के लिए हो सकता है.

सरकार का क्या है प्लान?

- सरकार ने यूरिया पर मिलने वाली सब्सिडी को तीन साल के लिए बढ़ा दिया है. इससे किसानों को 266.70 रुपये प्रति 45 किलोग्राम की कीमत पर यूरिया मिलेगा. जबकि इसकी असल कीमत लगभग 2200 रुपये है.

- इतना ही नहीं, यूरिया के अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण जमीन में सल्फर की कमी हो गई है. सरकार की कोश‍िश है क‍ि अगर कोई क‍िसान सौ क‍िलो यूर‍िया डाल रहा है तो उसके खेत में पांच से सात क‍िलो सल्फर चला जाए. सल्फर कोट‍िंग यूर‍िया से ग्राउंड वाटर पाल्यूशन कम होगा और त‍िलहन फसलों में तेल की मात्रा बढ़ जाएगी. सल्फर कोटेड यूर‍िया का नाम 'यूर‍िया गोल्ड' होगा.

इसका फायदा क्या होगा?

- इस योजना का मकसद न सिर्फ कृषि उत्पादन को बढ़ाना, बल्कि पर्यावरण और इंसानों की सेहत का भी ध्यान रखना है. 

- इसका मकसद केमिकल फर्टिलाइजर, खासकर यूरिया के इस्तेमाल को कम से कम करना है. इसके इस्तेमाल से इंसानों को कैंसर और डीएनए डैमेज जैसी गंभीर बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है. इतना ही नहीं, ये उर्वरक जल निकायों को भी प्रदूषित करते हैं.

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- इस योजना के जरिए खेती-बाड़ी में यूरिया के अलावा दूसरे उर्वरकों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना. इससे पर्यावरणीय क्षति रुकने के अलावा लंबे समय में मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और फसल की पैदावार बढ़ने की उम्मीद है.

सब्सिडी पर क्या असर पड़ेगा?

- पीएम-प्रणाम योजना का मकसद बढ़ते फर्टिलाइजर सब्सिडी के खर्च को भी कम करना है. 2022-23 में सरकार ने पहले फर्टिलाइजर सब्सिडी के लिए 1.05 लाख करोड़ रुपये रखे थे. लेकिन बाद में ये खर्च बढ़कर 2.25 लाख करोड़ पहुंच गया. 2023-24 में इसके लिए 1.75 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है.

- सब्सिडी का ये पूरा खर्च केंद्र सरकार ही उठाती है. ये सब्सिडी फर्टिलाइजर बनाने वाली कंपनियों को दी जाती है, ताकि किसानों को कम कीमत पर उर्वरक मिलें. 

- सब्सिडी ने केमिकल फर्टिलाइजर को किफायती बना दिया, जिस वजह से खेती-बाड़ी में केमिकल फर्टिलाइजर का अंधाधुंध इस्तेमाल बढ़ गया. 

कितना इस्तेमाल होता है फर्टिलाइजर?

- भारत में अनाज की खेती के लिए खरीफ सीजन (जून से अक्टूबर) सबसे अहम होता है. इसी सीजन में सालभर की जरूरत का आधे से ज्यादा अनाज पैदा होता है.

- खरीफ सीजन में दालों का एक-तिहाई और तिलहन का दो-तिहाई उत्पादन होता है. इस मौसम में बड़ी मात्रा में उर्वरक की जरूरत होती है.

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- हर महीने उर्वरक की जरूरत की मात्रा मांग के हिसाब से बदलती रहती है. ये मांग फसल की बुवाई के समय पर आधारित होती है.

- उदाहरण के तौर पर, यूरिया की मांग जून से अगस्त के बीच सबसे ज्यादा होती है. लेकिन मार्च और अप्रैल में इसकी मांग आमतौर पर कम होती है.

- कृषि और किसान कल्याण विभाग हर साल सीजन की शुरुआत से पहले उर्वरकों की जरूरतों का आकलन करता है. इस आधार पर मांग पूरी करने के लिए रसायन और उर्वरक मंत्रालय को सूचित करता है.

फर्टिलाइजर कैसे पहुंचा रहे जमीन को नुकसान?

- भारतीय कृष‍ि अनुसंधान संस्थान में एग्रोनॉमी ड‍िवीजन के प्रिंसिपल साइंट‍िस्ट डॉ. वाईएस श‍िवे ने किसान तक को बताया क‍ि इस समय भारत की 42 फीसदी जमीन में सल्फर की कमी है. इसी तरह 39 फीसदी जमीन में ज‍िंक की कमी है, जबक‍ि 23 फीसदी बोरॉन की कमी है. 

- कई व‍िशेषज्ञ अन्य उर्वरकों की तुलना में यूरिया की अत्यधिक कम कीमत को इसकी वजह बताते हैं. क‍िसान हर काम के ल‍िए यूर‍िया का ही इस्तेमाल करता जाता है. 

- इससे कई महत्वपूर्ण सूक्ष्म और पोषक तत्व कम हो गए हैं. क‍िसानों ने ज्यादातर नाइट्रोजन और फास्फोरस का ही इस्तेमाल क‍िया है. इससे उत्पादन पर बुरा असर पड़ रहा है, क्योंक‍ि जमीन की उर्वरा शक्त‍ि खत्म होने लगी है.

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- साउथ एश‍िया ज‍िंक न्यूट्रिएंट इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉ. सौम‍ित्र दास किसान तक से कहते हैं क‍ि रासायन‍िक खादों के इस्तेमाल के असंतुलन की वजह से जमीन में पोषक तत्वों की कमी हो गई है. इस समय देश में सालाना 12 से 13 लाख टन ज‍िंक की जरूरत है. जबक‍ि 2 लाख टन का ही इस्तेमाल हो रहा है. 

- उन्होंने बताया कि हर काम के ल‍िए नाइट्रोजन का इस्तेमाल हो रहा है, जो ठीक नहीं है. अगर जमीन में क‍िसी भी माइक्रो न्यूट्रिएंट की कमी है तो उसकी कमी कृष‍ि उपज में भी द‍िखती है. उत्पाद की गुणवत्ता ठीक नहीं होती. 

 

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