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UP के युवक को 6वीं बार काटा सांप ने, क्या जहर की माइक्रोडोज का शरीर में जाना इम्यून बना देता है?

उत्तर प्रदेश का एक युवक चर्चा में है, जिसे कुछ ही दिनों के भीतर कथित तौर पर 6वीं बार सांप ने काट लिया. हर बार कुछ दिन अस्पताल में रहकर वो लौट आता है. वैसे माना जाता रहा कि सांप के जहर की छोटी खुराक लगातार लेने पर जहर बेअसर हो जाता है. इतिहास से लेकर मॉर्डन अमेरिका में भी ऐसे उदाहरण दिखते रहे.

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जहर की हल्की मात्रा लेकर इम्यून होने के उदाहरण इतिहास में मिलते हैं. (Photo- Getty Images)
जहर की हल्की मात्रा लेकर इम्यून होने के उदाहरण इतिहास में मिलते हैं. (Photo- Getty Images)

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में एक युवक को डेढ़ महीने में छठवीं बार सांप ने डस लिया. हर बार इलाज के बाद वो ठीक हो जाता है. सांप के जहर के साथ खास बात ये है कि इतिहास में काफी सारे लोग ये पॉइजन छोटी मात्रा में लेते रहे. नतीजा ये हुआ कि वे स्नेक वेनम के लिए इम्यून हो गए. इस पूरी प्रक्रिया को मिथ्रिडेटिज्म कहते हैं. 

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राजा ने निकाली थी तरकीब

ईसा पूर्व पोंटस के राजा मिथ्रिडेट्स छठें ने यह उपाय खोजा. असल में राजा के पिता को दुश्मनों ने जहर देकर मार दिया था. उस दौर में ये आम बात थी. राजाओं के विरोधी अक्सर सबसे भरोसेमंद साथी को अपने साथ मिलाकर खाने में जहर डलवा देते. ये इतना मारक होता था कि बड़े वैद्य भी शासक को बचा नहीं पाते. अपने पिता का हाल देखने के बाद मिथ्रिडेट्स ने तय किया कि वे खुद को जहर के लिए इम्यून बनाएंगे. मिथ्रिडेट्स की जिंदगी आसान नहीं थी. पिता की मौत के बाद उन्होंने पाया कि महारानी यानी उनकी मां भी उनकी बजाए दूसरे भाई को गद्दी पर बिठाना चाहती थीं. डरकर वे महल से भाग निकले. 

सेल्फ-एडमिनिस्ट्रेशन को कहते हैं मिथ्रिडेटिज्म

गुप्त रूप से रहते हुए ही मिथ्रिडेट्स ने पुराने राजवैद्य की मदद से खुद को सांप का जहर देना शुरू किया. वो रोज अपने खाने के साथ थोड़ा-थोड़ा जहर खाने लगा. इतना कि मौत न हो. धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाई जाने लगी और राजा का शरीर पूरी तरह से जहरीला हो गया. जहर खाकर जहरीला बनने के इस तरीके को आज भी मिथ्रिडेटिज्म के नाम से जाना जाता है. 

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poison immunity by microdose history photo AFP

कई ग्रंथों में होता है जिक्र

बहुत से राजाओं ने यही तरीका अपनाकर खुद को हर तरह के जहर के लिए मजबूत बना लिया. ये तो हुआ विदेशी किस्सा, लेकिन हिंदुस्तान में भी तरीका काफी पुराना माना जाता है. कहा जाता है कि सिकंदर जब दुनिया जीतने निकला तो उसके गुरु अरस्तू ने उसे यहां की विषकन्याओं के बारे में सचेत किया था. इसके बाद सिकंदर तो सिकंदर, उसकी सेना ने भी ध्यान रखा कि वे कम से कम युवतियों के संपर्क में आएं. अरस्तू की कही हुई बातों पर आधारित सीक्रेट सीक्रेटोरम में गुरु के अपने शिष्य को सचेत करते हुए पत्र हैं. मूलतः ग्रीक में लिखी इस बातों का अरबी तक में सिर-अल-असरार नाम से अनुवाद हुआ था.

जैन ग्रंथ राजवलिकथे में बताया गया है कि मौर्य शासक चंद्रगुप्त को उनके गुरु की सलाह पर खाने में जहर की हल्की खुराक दी जाती थी ताकि वे इसके लिए इम्यून हो जाएं. शासक खुद इस बात से अनजान था. एक रोज उन्होंने अपनी पत्नी रानी दुर्धरा, जो उस वक्त गर्भवती थीं, से अपना खाना शेयर कर लिया. कुछ ही मिनटों में रानी की मौत हो गई. तब जाकर ये राज खुला था कि गुरु उन्हें जानकर रोज जहर दिया करते थे. 

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क्या वाकई जहर बेअसर हो जाता है

मिथ्रिडेटिज्म मतलब जहर के लिए प्रतिरक्षा पैदा कर पाना हर किस्म के पॉइजन के साथ मुमकिन नहीं. हर शरीर पर भी ये मुमकिन नहीं. जहर तब बेअसर हो जाता है, जब शरीर का मेटाबॉलिज्म उसपर ठीक से काम करता और सामान्य खाने की तरह उसे पचा लेता है. मेटाबॉलिक टॉलरेंस पाने की प्रक्रिया में लिवर को तैयार किया जाता है कि वो खास तरह का एंजाइम ज्यादा बनाए, जिससे जहर पच सके. ये वैसा ही है, जैसे कुछ इलाकों में रहने वाले ज्यादा मिर्च-मसाला खाते हैं तो उनका लिवर इसी तरह से कंडीशन हो जाता है. वहां बच्चे भी मिर्च-मसाले खाकर बीमार नहीं होते, जबकि तेल-मसालों की कम मात्रा भी कुछ इलाकों पर भारी पड़ जाती है. 

poison immunity by microdose history photo Unsplash

पच जाता है हल्का साइनाइड

सेब में बीज में हाइड्रोजन साइनाइड जहर होता है, लेकिन हमारा शरीर उसे आसानी से पचा पाता है क्योंकि लिवर इसका आदी रहता है. इसे पचाने के लिए लिवर में रोडेनीज नाम का एंजाइम बनता है, जो साइनाइड को कम घातक जहर थियोसाइनाइड में बदल देता है. एंजाइम के जहर को तोड़ने की प्रोसेस के चलते ही शरीर सेब का बीज पचा लेता है. लेकिन ज्यादा मात्रा में साइनाइड जाना बेहद घातक साबित होता है क्योंकि लिवर उतनी जल्दी प्रोसेस नहीं कर पाता. 

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ये कोशिश पड़ सकती है बेहद भारी

हैवी मेटल जैसे मर्करी, कैडमियम जैसी चीजें का माइक्रोडोज लेना भारी पड़ सकता है. शरीर में इनके जहर को पचाने की क्षमता नहीं होती. नतीजा ये होता है कि शख्स गंभीर रूप से बीमार पड़ सकता है. 

बर्मा में एक ट्राइब है- पकोक्कू. इन्हें इनके शरीर पर गुदे टैटू के लिए भी जाना जाता है. लेकिन ये आम टैटू नहीं, बल्कि सांप के जहर से बने होते हैं. वे सबसे जहरीले सांपों को पकड़कर उनके जहर को टैटू इंक के साथ मिलाते और टैटू करते हैं. माना जाता है कि घने जंगलों में रहती इस ट्राइब के किसी व्यक्ति की मौत सांपों के काटने से नहीं हुई. 

अमेरिकी डॉक्टर ने वियतनाम युद्ध के दौरान किया था प्रयोग

अमेरिका जैसे आधुनिक देश में भी जहर के माइक्रोडोज की घटनाएं हो चुकीं. यहां मिलिट्री के डॉक्टर हर्शेल फ्लार्स ने वियतनाम युद्ध के दौरान सांपों के जहर का बेहद हल्की खुराक लगातार ली थी ताकि वहां युद्ध के दौरान सांप काटने पर जहर न फैले. डॉक्टर ने अपनी इस कोशिश को डॉक्युमेंट भी किया था. लेकिन बाकी डॉक्टरों ने इसपर कभी मुहर नहीं लगाई, बल्कि साफ खारिज कर दिया. असल में हर शरीर की क्षमता अलग होती है. ऐसे में बेहद हल्दी डोज देना भी खतरनाक हो सकता है. 

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