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हाल के समय में जियो पॉलिटिक्स में बहुत बदलाव हुआ है. खासकर साउथ एशिया में. और इससे सबसे ज्यादा प्रभावित भारत ही हुआ है. जैसे- बांग्लादेश में हुआ तख्तापलट भी भारत के लिए किसी झटके से कम नहीं है.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था- 'आप दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं.' भारत के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि उसे पड़ोसी बहुत अच्छे नहीं मिले हैं.
भारत के जितने भी पड़ोसी हैं, उनमें से एक भी ऐसा नहीं है जहां राजनीतिक स्थिरता हो. एक बांग्लादेश था, जो राजनीतिक और आर्थिक रूप से स्थिर था, लेकिन पिछले हफ्ते वहां भी तख्तापलट हो गया. प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देना पड़ा और बांग्लादेश भी छोड़कर आना पड़ा. फिलहाल शेख हसीना भारत में हैं.
भूटान को छोड़ दिया जाए तो सारे पड़ोसी मुल्कों में ऐसी सत्ता है, जिनका रुख एंटी-इंडिया माना जाता है. नेपाल में पिछले महीने ही सत्ता बदली है और अब वहां चीन की समर्थक सरकार है. बांग्लादेश में अभी अंतरिम सरकार है और मोहम्मद युनूस इसके मुखिया हैं. लेकिन कुछ ही महीनों में वहां चुनाव होंगे और ऐसी सरकार आने की आशंका है जो भारत विरोधी रुख अपना सकती है.
बांग्लादेश का संकट कितना बड़ा?
बांग्लादेश बना ही भारत की मदद से था और तब से ही दोनों मुल्कों के रिश्ते बेहतरीन थे. लेकिन अब शेख हसीना का सत्ता में न होना भारत के लिए मुश्किल हो सकता है. शेख हसीना भारत के ज्यादा करीब रहीं हैं और उनका सत्ता में रहना भारत के लिए फायदेमंद ही रहा है.
पिछले महीने शेख हसीना चीन के दौरे पर गई थीं. लेकिन ये दौरा बीच में ही छोड़कर लौट आई थीं. बांग्लादेश लौटते ही शेख हसीना ने भारत के लिए एक बड़ा ऐलान किया था. उन्होंने कहा था कि तीस्ता प्रोजेक्ट में भारत और चीन, दोनों की दिलचस्पी है, लेकिन वो चाहती हैं कि भारत इसे पूरा करे.
अब शेख हसीना के सत्ता में जाने के बाद भारत विरोधी सरकार आने की संभावना बढ़ गई है. खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी की सरकार बन सकती है. इनका झुकाव इस्लामिक कट्टरपंथ की तरफ ज्यादा माना जाता है. बीएनपी भारत से ज्यादा पाकिस्तान के करीब रहती है और इससे चीन को फायदा होता है, क्योंकि पाकिस्तान उसका अच्छा दोस्त है.
इतना ही नहीं, आतंकवाद को लेकर भी शेख हसीना की सरकार संवेदनशील रही है. उनकी सरकार में भारत विरोधी आतंकी गुटों के खिलाफ कार्रवाई हुई. लेकिन अब बांग्लादेश की तरफ से आतंकवादियों की घुसपैठ का खतरा भी बढ़ गया है.
बांग्लादेश में अस्थिरता सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि उसके लिए भी चिंताजनक है. क्योंकि पहले से ही वहां रोजगार और महंगाई बड़ी समस्या बनी हुई है. लिहाजा, बांग्लादेश भी चाहेगा कि भारत के साथ उसके रिश्ते जस के तस बने रहें, क्योंकि इससे उसे आर्थिक फायदा होगा.
हालांकि, अब बांग्लादेश के चीन के और करीब जाने की संभावना भी है. शेख हसीना की सरकार सरकार भारत और चीन के बीच बैलेंस बनाकर चलती थी.
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भारत के पड़ोसियों को घेर रहा चीन?
श्रीलंका काफी लंबे वक्त से अस्थिरता से गुजर रहा है. उसकी वजह चीन ही है. पाकिस्तान तो आजादी के वक्त से ही भारत का दुश्मन रहा है. म्यांमार में भी कई सालों से सेना का शासन है. मालदीव में पिछले साल ही मोहम्मद मुइज्जू राष्ट्रपति बने हैं, जिन्हें चीन का समर्थक माना जाता है. नेपाल में भी बीते महीने ही चीन समर्थक केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री बने हैं.
- भूटानः चारों ओर जमीन से घिरा हुआ भूटान अब चीन के करीब जाता दिख रहा है. चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाने को लेकर बातचीत अंतिम दौर में है. चीन और भूटान के बीच जिसे लेकर विवाद है, उसमें 269 वर्ग किमी का डोकलाम भी है. दूसरा इलाका 495 वर्ग किमी का जकारलुंग और पासमलुंग पहाड़ी इलाका है. चीन का प्रस्ताव है कि वो 495 वर्ग किमी के इलाक पर अपना दावा छोड़ देगा, अगर भूटान उसे 269 वर्ग किमी वाला डोकलाम दे दे. अगर दोनों में इस पर सहमति हो जाती है तो चीन की सेना भारत के और करीब आ जाएगी. 2017 में डोकलाम में ही भारत और चीन के बीच 76 दिन तक तनाव रहा था.
- नेपालः पिछले महीने ही पुष्प कमल दहाल 'प्रचंड' की सत्ता हटी है. अब यहां केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री हैं. प्रचंड को भारत समर्थक माना जाता था, जबकि ओली चीन के ज्यादा करीब हैं. ओली जब प्रधानमंत्री थे, तभी नेपाल ने 2017 में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) प्रोजेक्ट में शामिल होने का ऐलान किया था. इतना ही नहीं, भारत को लेकर ओली का रुख सकारात्मक भी नहीं रहा है. प्रधानमंत्री रहते ही 2019 में ओली ने भारत के लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल का हिस्सा बताया था. मई 2020 में नेपाल का नया नक्शा भी आया था, जिसमें इन तीनों इलाकों को उसका हिस्सा बताया गया था.
- मालदीवः पिछले साल हुए राष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद मुइज्जू की जीत हुई थी. मुइज्जू ने अपना पूरा चुनाव 'इंडिया आउट' कैंपेन पर लड़ा था. मुइज्जू को चीन का समर्थक माना जाता है. मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और मालदीव के बीच रिश्ते बिगड़ते ही गए. मुइज्जू से पहले इब्राहिम मोहम्मद सोलिह राष्ट्रपति थे. सोलिह की सरकार में भारत और मालदीव के रिश्ते और भी मजबूत हुए थे. मुइज्जू की सरकार में मालदीव ने भारत पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए चीन के साथ 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. हालांकि, अब मुइज्जू सरकार भारत को लेकर अपनी पॉलिसी बदल रही है. मालदीव का कहना है कि उसे भरोसा है कि वो जब भी मुश्किल में होगा, भारत सबसे पहले प्रतिक्रिया देगा.
- म्यांमारः साढ़े तीन साल से भी लंबे वक्त से गृहयुद्ध से जूझ रहा है. फरवरी 2021 में यहां की सेना ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई आंग सान सू की की सरकार को हटा दिया था. अभी यहां आर्मी चीफ मिन आंग सरकार चला रहे हैं. बताया जाता है कि 50% इलाकों पर विद्रोहियों ने कब्जा कर लिया है. म्यांमार वैसे तो चीन का ही करीबी माना जाता है, लेकिन सैन्य शासन में चीन के ये और ज्यादा करीब गया है. चीन 2017 से बीआरआई का सदस्य है और उस पर लगातार चीन का कर्ज बढ़ता जा रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, म्यांमार जल्द ही दिवालिया हो सकता है.
- श्रीलंकाः 2022 से यहां गंभीर आर्थिक संकट है. श्रीलंका की आर्थिक बर्बादी का कारण चीन ही था. राजपक्षे की सरकार में श्रीलंका और चीन के बीच नजदीकियां बढ़ीं. चीन ने कर्ज देकर श्रीलंका को दिवालिया कर दिया. श्रीलंका ने अप्रैल 2022 में जब खुद को दिवालिया घोषित किया था, तब उस पर 51 अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज था. हालांकि, गोटाबाया राजपक्षे के सत्ता से बाहर होने के राष्ट्रपति बने रानिल विक्रमसिंघे ने अर्थव्यवस्था में सुधार किया है. श्रीलंका में इसी साल सितंबर-अक्टूबर में चुनाव होने जा रहे हैं. विक्रमसिंघे इसमें निर्दलीय लड़ेंगे. अगर विक्रमसिंघे जीतते हैं, तब तो भारत के लिए ठीक है. लेकिन कोई दूसरी पार्टी या गठबंधन की जीत होती है, तो ये भारत के लिए चिंता बढ़ाने वाली बात होगी.
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पाकिस्तान तो शुरू से ही दुश्मन
1947 में बंटवारे के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं. दोनों देश अब तक तीन युद्ध लड़ चुके हैं. इनमें से दो युद्ध कश्मीर के लिए हुए हैं. और सीमा पर तो हरदम तनाव बना रहता ही है.
पाकिस्तान के अब तक के इतिहास में आधे वक्त तो सेना का शासन रहा है. और आधे वक्त जब लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार आई है, तब भी उसका रुख एंटी-इंडिया ही रहा है.
पाकिस्तान लंबे समय से चीन का करीबी रहा है. चीन ने वहां अरबों डॉलर का निवेश भी कर रखा है. बीआरआई प्रोजेक्ट के तहत चीन-पाकिस्तान के बीच इकोनॉमिक कॉरिडोर भी बन रहा है, जिसका 80% से ज्यादा खर्च चीन ही उठा रहा है.
चीन के कर्ज के चलते ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भी बदतर होती जा रही है. उसकी करंसी लगातार कमजोर होती जा रही है. इससे महंगाई की भी बुरी मार पड़ रही है.
भारत क्या कर रहा?
अपने पड़ोसियों को साथ रखने और चीन से दूर रखने के लिए भारत पड़ोसी मुल्कों की काफी मदद करता रहा है. भारत ने 2024-25 के बजट में अपने सात पड़ोसियों की मदद के लिए लगभग चार हजार करोड़ रुपये का फंड रखा है.
पाकिस्तान को छोड़ दिया जाए तो भारत ने अपने सभी पड़ोसियों पर बीते सालों में हजारों करोड़ रुपये खर्च किए हैं. दरअसल, देखा जाए तो दक्षिण एशिया चीन और भारत के लिए एक 'जंग का अखाड़ा' भी बनता जा रहा है.
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जरिए चीन सभी दक्षिण एशियाई देशों तक पहुंच चुका है. ऐसा करके उसने भारत को चारों तरफ से घेर रखा है. ऐसे में इन देशों में चीन का प्रभाव कम करने के लिए भारत को आर्थिक मदद देना जरूरी है.
एनडीए सरकार 'नेबर फर्स्ट पॉलिसी' के जरिए पड़ोसियों को अपने साथ रखने की कोशिश कर रही है. चीन के प्रभाव को कम करने के लिए भारत को इन देशों को अपने करीब रखना जरूरी है.