राजस्थान से चौंकाने वाला मामला आया, जिसमें मां ने अपने डेढ़ महीने के बेटे को ब्लेड से काटकर मार दिया. पूछताछ में सामने आया है कि वो रातभर रोता रहता था, जिससे मां परेशान रहने लगी थी. उसके बाकायदा प्लानिंग करके मर्डर कर दिया. बेहद क्रूर लगने वाला ये केस भले ही इरादतन हत्या का दिख रहा है, लेकिन कई बार बच्चे के जन्म के बाद थकी और हॉर्मोनल बदलावों से जूझती मांएं भी इस तरह का खौफनाक कदम ले लेती हैं. ये पोस्टपार्टम डिप्रेशन है.
क्या कहता है डेटा
अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, अगर कोई महिला अनट्रीटेट पोस्टपार्टम से जूझ रही है तो पहले साल में उसके अपने ही बच्चे को नुकसान पहुंचाने की आशंका 4% तक रहती है.
लगभग 5% तक ये खतरा भी रहता है कि मां खुदकुशी की कोशिश करे.
डिप्रेशन की शिकार 57% मांओं ने माना कि उन्हें अक्सर ही अपने बच्चे को नुकसान पहुंचाने का खयाल आता है, हालांकि वे खुद पर काबू पा लेती हैं.
ये अवसाद जन्म के महीनेभर बाद से लेकर एक साल तक कभी भी पैदा हो सकता है.
क्यों मां ही बन जाती है बच्चे की दुश्मन
असल में सीवियर डिप्रेशन के दौरान मां को भ्रम होने लगता है कि उसका बच्चा कोई शैतान या ऐसी चीज है, जिसने उसे कैद कर दिया है. उसे चेहरे दिखने लगते हैं. बच्चे का रोना या रातभर जागना इस हेल्युसिनेशन को और बल देने लगता है. बच्चे के जन्म के पहले से ही मानसिक तौर पर बीमार रहती आई मां किसी एक्सट्रीम इमोशन की झोंक में आकर अपने ही शिशु को नुकसान पहुंचा उठती है. वहीं पोस्टपार्टम डिप्रेशन यानी बच्चे के जन्म के बाद आए अवसाद में मां पूरी प्लानिंग करती है. इसमें दिनों या हफ्ते भी लग सकते हैं.
क्या है पोस्टपार्टम डिप्रेशन
बच्चे के जन्म के लगभग महीनेभर बाद जो डिप्रेशन होता है, वो पीपीडी कहलाता है. शुरुआत में लगभग सभी को उदासी, रोने की इच्छा और चिड़चिड़ाहट घेरे रहती है. ये फेज करीब 15 से 20 दिन का होता है. लेकिन ये गंभीर नहीं और बगैर दवा के ठीक हो जाता है, बशर्तें परिवार की मदद और पूरी नींद मिल सके. ये अवस्था पोस्टपार्टम ब्लूज कहलाती है.
क्या हैं इसके संकेत
वक्त बीतने के बाद भी रोने की इच्छा और गुस्सा, अकेलापन बढ़ता जाए तो मामला गंभीर है. यह पोस्टपार्टम डिप्रेशन हो सकता है. इसमें महिला लगातार और ज्यादा उदास और परेशान रहने लगती है. कभी वो बच्चे को छूना भी नहीं चाहती, तो कभी बच्चे को किसी और को हाथ तक नहीं लगाने देती. कभी उसे बच्चा दुश्मन लगने लगता है जिसके कारण उसकी हालत ऐसी हो गई.
क्यों होता है ऐसा अवसाद
डिलीवरी के बाद कई हॉमोन्स एकदम से कम हो जाते हैं, जैसे एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रॉन, और थायरॉइड. इनकी वजह से थकान, सुस्ती और उदासी बढ़ जाती है. साथ ही डिलीवरी के बाद कमजोरी आ चुकी होती है, जो आराम न मिलने से बढ़ती चली जाती है. अगर मां छोटे परिवार में रह रही हो, और मदद के लिए कोई न हो तब समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है. नौकरीपेशा मां के लिए यो वक्त दोहरी मार लेकर आता है. इलाज न मिलना इसे खतरनाक बना देता है.
क्या भारत में कोई स्टडी है
हमारे सोशल स्ट्रक्चर के चलते अक्सर मान लिया जाता है कि डिलीवरी के बाद मां को खुश ही रहना चाहिए. उससे अक्सर परफेक्ट मां होने की उम्मीद की जाती है. इस वजह से पोस्टपार्टम डिप्रेशन होने के बाद भी उसके इलाज के लिए या तो लोग अस्पताल नहीं पहुंचते, या मैजिकल हीलिंग यानी झाड़-फूंक की तरफ चले जाते हैं. यही वजह है कि इसपर स्टडी भी काफी कम है.
साल 2019 में इसपर महाराष्ट्र में स्टडी की गई, जो जर्नल ऑफ साउथ एशियन फेडरेशन ऑफ ऑब्सेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी में छपी. इसमें माना गया कि बड़े शहरों में रहती हर 25 में से 1 नई मां के साथ ऐसा हो सकता है. डिलीवरी के बाद से 42 दिनों तक मांओं की स्टडी में ये निकलकर आया.
क्या इलाज है इसका
पोस्टपार्टम ब्लूज यानी डिलीवरी के महीनेभर तक चलने वाली उदासी के लिए दवाओं की जरूरत नहीं. बातचीत और काम में मदद देने, बच्चे को संभालने, मां को भरपूर रेस्ट देकर इसे ठीक किया जा सकता है. लेकिन दूसरी स्टेज पीपीडी में शुरुआत में ही मनोचिकित्सक को दिखाना चाहिए. वे काउंसलिंग के साथ कई दवाएं देते हैं. परिवार की भी काउंसलिंग होती है कि इस तरह के गंभीर डिप्रेशन से जूझ रही मां को कैसे संभालना है.