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Adipurush Controversy: साउथ के सुपरस्टार प्रभास और बॉलीवुड एक्टर सैफ अली खान की फिल्म 'आदिपुरुष' को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. टीजर रिलीज होते ही फिल्म विवादों से घिर गई है. फिल्म में रावण बने सैफ अली खान के लुक्स का मजाक उड़ रहा है. वहीं, राम के किरदार में प्रभास भी फैंस को उतने नहीं जमे.
विवाद बढ़ने के साथ ही अब इस फिल्म पर बैन लगाने की मांग भी उठने लगी है. ये मांग हिंदू सेना की ओर से की गई है. हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने कहा कि विदेशी फंडिंग से भगवान श्रीराम की छवि को धूमिल करने की कोशिश हो रही है. पैसे कमाने के लिए हमारे धर्म ग्रंथ रामायण से छेड़छाड़ करना गलत है. इससे हिंदुओं की भावनाएं आहत होंगी, इसलिए फिल्म पर रोक लगाई जाए.
मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने फिल्म के डायरेक्टर ओम राउत को चिट्ठी लिखी है. इसमें उन्होंने लिखा है कि भारतीय धार्मिक आस्थाओं के प्रतीक का चित्रण जिस तरह से किया गया है, उससे आपत्ति होना स्वाभाविक है. नरोत्तम मिश्रा ने लिखा कि लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए फिल्म में इस तरह के चित्रण को हटा दें और ध्यान रखें कि भविष्य में ऐसी गलती न हो.
इस फिल्म को ओम राउत ने डायरेक्ट किया है. फिल्म में प्रभास राम बने हैं. कृति सेनन सीता के रोल में दिखेंगी. सैफ अली खान रावण की भूमिका में नजर आएंगे. ये फिल्म अगले साल 12 जनवरी को रिलीज होगी. बहरहाल, टीजर सामने आते ही फिल्म विवादों में घिर गई है. उस पर बैन लगाने की मांग भी हो रही है.
सबसे पहले फिल्मों की सेंसरशिप क्यों?
1989 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था, 'फिल्म सेंसरशिप इसलिए जरूरी है, क्योंकि एक फिल्म में दिखाई गई बातें और एक्शन दर्शकों को प्रेरित करती हैं, वो उनके दिमाग पर मजबूत प्रभाव डाल सकती हैं और भावनाओं को प्रभावित कर सकती हैं. फिल्म जितनी अच्छाई फैला सकती है, उतनी ही बुराई भी फैला सकती है. इसकी तुलना संचार के दूसरों माध्यम से नहीं की जा सकती.'
भारत में फिल्मों को सेंसर करने का काम सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) देखता है. जून 1983 तक इसे सेंट्रल फिल्म सेंसर बोर्ड के नाम से जाना जाता था. यही वजह है कि अभी भी इसे आम भाषा में सेंसर बोर्ड ही कहते हैं. भारत में भी किसी फिल्म को बड़े पर्दे पर रिलीज करना है तो उसके लिए सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट लेना होता है.
सेंसर बोर्ड की वेबसाइट के मुताबिक, एक फिल्म को सर्टिफिकेट हासिल करने में कम से कम 68 दिन का वक्त लगता है. सेंसर बोर्ड फिल्म देखकर पास करता है. अगर जरूरी होता है तो कुछ सीन हटाए जाते हैं. कोई अभद्र भाषा है तो उसे म्यूट किया जाता है या और दूसरी कांट-छांट की जाती है. इसके बाद फिल्म को सर्टिफिकेट मिलता है.
सेंसर बोर्ड चार तरह के सर्टिफिकेट- U (अ), A (व), UA (अव) और S (एस) सर्टिफिकेट जारी करता है. U सर्टिफिकेट वाली फिल्मों पर कोई प्रतिबंध नहीं होता. A सर्टिफिकेट वाली फिल्म नाबालिग नहीं देख सकते. UA सर्टिफिकेट वाली फिल्मों को 12 साल से छोटे बच्चे माता-पिता के साथ ही देख सकते हैं. वहीं, S सर्टिफिकेट वाली फिल्में स्पेशल ऑडियंस के लिए होती है, जैसे- डॉक्टर या वैज्ञानिक.
क्या सेंसर बोर्ड फिल्म को बैन कर सकता है?
सेंसर बोर्ड सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 और सिनेमैटोग्राफ रूल 1983 के तहत काम करता है. सेंसर बोर्ड किसी फिल्म को बैन नहीं कर सकता है.
हालांकि, सेंसर बोर्ड किसी फिल्म को सर्टिफिकेट देने से मना कर सकता है. बिना सर्टिफिकेट के कोई फिल्म रिलीज नहीं हो सकती है. लिहाजा, ये एक तरह से बैन करना ही हुआ.
इसी साल 31 मार्च को सरकार ने राज्यसभा में बताया था कि सेंसर बोर्ड किसी फिल्म को बैन नहीं कर सकता. लेकिन सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 का धारा 5B के तहत जारी गाइडलाइंस के उल्लंघन पर सर्टिफिकेट देने से मना जरूर कर सकता है.
राज्यसभा में सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया था कि किसी फिल्म का प्रदर्शन राज्य का मामला है और राज्य सरकारें इस मामले में फैसला ले सकती हैं.
सरकार के मुताबिक, 2014 से 6 फिल्मों को सेंसर बोर्ड ने सर्टिफिकेट देने से मना किया है. 2014-15 में एक, 2016-17 में 2, 2018-19 में 2 और 2019-20 में एक फिल्म को सर्टिफिकेट नहीं दिया गया था.
तो क्या सरकार बैन कर सकती है?
हां. सरकार चाहे तो किसी फिल्म को बैन कर सकती है. सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 की धारा 5E के तहत अगर किसी फिल्म को सर्टिफिकेट दे भी दिया जाता है, तो सरकार चाहे तो उस सर्टिफिकेट को या तो निलंबित कर सकती है या रद्द कर सकती है.
पिछले साल सिनेमैटोग्राफ एक्ट में संशोधन के लिए सरकार बिल लेकर आई थी. इस बिल में प्रावधान किया गया था कि अगर किसी फिल्म की रिलीज से दर्शकों को आपत्ति है तो सरकार उसे बैन कर सकती है. हालांकि, ये बिल अभी पास नहीं हुआ है.
हालांकि, 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि अगर सेंसर बोर्ड से किसी फिल्म को सर्टिफिकेट मिल चुका है, तो राज्य सरकारें उस पर बैन नहीं लगा सकतीं. सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला प्रकाश झा की फिल्म 'आरक्षण' पर बैन से जुड़े मामले में दिया था. तब यूपी सरकार ने फिल्म पर बैन लगा दिया था. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार का काम कानून व्यवस्था संभालना है.
सेंसरशिप को लेकर क्या हैं नियम?
फिल्मों में क्या दिखा सकते हैं और क्या नहीं, इसे लेकर सेंसर बोर्ड की गाइडलाइंस है. इसके मुताबिक, फिल्मों में ऐसे सीन नहीं दिखा सकते, जिससे हिंसा को बढ़ावा मिले, बच्चों को अपराधी दिखाया गया हो, नशे को सही ठहराया गया हो या फिर अश्लीलता या डबल मीनिंग वाले शब्दों का इस्तेमाल किया गया हो.
इसके अलावा ऐसे सीन दिखाने पर भी रोक है जिससे किसी जाति, धर्म या समूह का अपमान होता है. ऐसे सीन भी नहीं दिखा सकते, जिससे देश की सुरक्षा जोखिम या खतरे में पड़ सकती हो, विदेशों से संबंध खराब होने की आशंका हो या फिर कानून व्यवस्था बिगड़ने का डर हो.
अगर कोई भी सेंसरशिप के प्रावधानों का उल्लंघन करता है या बिना सर्टिफिकेट के फिल्म को रिलीज करता है, तो ऐसा करने पर उसे कैद या जुर्माने की सजा हो सकती है.
सेंसरशिप प्रावधानों का उल्लंघन करने पर 3 साल की कैद या 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लग सकता है. इसके अलावा ऐसी फिल्म को अदालत जब्त कर सकती है यानी उस पर रोक लगा सकती है. पुलिस ऐसे सिनेमा थियेटरों में घुस सकती है और उस फिल्म को जब्त कर सकती है.
अब तक कितनी फिल्मों पर बैन लगा?
एक आरटीआई के जवाब में सरकार ने बताया था कि 1 जनवरी 2000 से 31 मार्च 2016 तक 793 फिल्मों पर बैन लगाया गया था, यानी इन्हें सर्टिफिकेट नहीं दिया गया था. इनमें 586 भारतीय फिल्में और 207 विदेशी फिल्में थीं.
भारत में कई फिल्मों को बड़े पर्दे पर रिलीज करने पर रोक लग चुकी है. 1996 में आई 'कामासूत्रा' को सेक्सुअल कंटेंट दिखाने के कारण बैन कर दिया गया था. फूलन देवी पर बनी 'बैंडिट क्वीन' को भी बैन कर दिया गया था. ये फिल्म 1994 में आई थी. बैंडिट क्वीन को कान्स फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया था.
1996 में आई 'फायर' फिल्म को भी सर्टिफिकेट नहीं दिया गया था. ये भारतीय सिनेमा की पहली फिल्म थी, जिसमें होमोसेक्सुअल रिलेशनशिप दिखाई गई थी. 2004 में आई भारत-पाकिस्तान पर बनी फिल्म 'हवा आने दे' को भी बैन कर दिया गया था, क्योंकि डायरेक्टर ने कट लगाने से मना कर दिया था.