नई लोकसभा के लिए हुए चुनाव के नतीजे आने और सरकार बनने के बाद संसद का पहला सेशन 24 जून से शुरू होने जा रहा है. इसी दौरान सदन के लिए नया अध्यक्ष भी चुना जाएगा. एक दशक बाद देश में फिर से गठबंधठन सरकार है. ऐसे में अध्यक्ष का ये चुनाव सत्ता पक्ष के लिए भी काफी अहम है. फिलहाल स्पीकर के नाम की अटकलों के बीच प्रो-टेम स्पीकर काम संभालने जा रहे हैं.
कांग्रेस लीडर कोडिकुन्निल सुरेश लोकसभा के सबसे पुराने मेंबर हैं इसलिए बहुत मुमकिन है कि वही प्रो-टेम स्पीकर का पद लें. कोडिकुन्निल सुरेश अब तक 7 बार सांसद बन चुके हैं. साथ ही साल 2012 से 2014 तक सेंटर के श्रम मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे के सुरेश, केरल की मवेलिक्कारा सीट पर साल 1989 से जीतते आए.
क्या है प्रो-टेम स्पीकर, स्पीकर से उसका काम कितना अलग
प्रो-टेम अध्यक्ष को लोकसभा का पीठासीन अधिकारी भी कहा जा सकता है. उसे रोजमर्रा की कार्यवाही करवानी होती है. . वो नए अध्यक्ष के चुनाव तक सारी जिम्मेदारियां निभाएगा, यहां तक कि नए सदस्यों को शपथ भी दिलाएगा. हालांकि प्रो-टेम एक अस्थाई ओहदा है. ये तब तक काम करता है जब तक कि सदन का नया अध्यक्ष न चुन लिया जाए. बता दें कि स्पीकर का चुनाव बहुमत से होता है.
संविधान में प्रो-टेम का जिक्र नहीं है. लेकिन संसदीय कार्य मंत्रालय के कामकाज पर ऑफिशियल हैंडबुक में प्रो-टेम अध्यक्ष की नियुक्ति और शपथ ग्रहण पर बात की गई है. इसके अनुसार, नई लोकसभा के गठन से पहले जब स्पीकर का पद खाली रहता है, उस दौरान अध्यक्ष के पद की जिम्मेदारियां सदन का ही एक सदस्य उठाएगा. राष्ट्रपति खुद उसे अस्थाई अध्यक्ष का जिम्मा देता है. इसके बाद ही सदस्य शपथ ग्रहण करते हैं.
कैसे होता है प्रो-टेम का चुनाव
इसका सीधा नियम ये है कि लोकसभा के सबसे सीनियर सदस्य को स्पीकर का ये अस्थाई पद दिया जाए. यहां वरिष्ठता का मतलब सदन में सदस्यता से है, न कि सदस्य की उम्र से. सरकार बनने के साथ ही चूंकि अध्यक्ष पद खाली हो चुका होता है, तो भारत सरकार का लेजिस्लेटिव सेक्शन एक लिस्ट तैयार करता है. इसमें उन सारे सदस्यों के नाम होते हैं जो सदन में सबसे वरिष्ठ हों. यह सूची संसदीय कार्य मंत्री या प्रधानमंत्री को भेजी जाती है ताकि एक सांसद प्रोटेम चुना जा सके.
पीएम की रजामंदी के बाद संसदीय कार्यमंत्री भी इसपर मुहर लगाते हैं, जिसके बाद राष्ट्रपति को ये नाम देते हुए उनसे स्वीकृति मांगी जाती है. प्रेसिडेंट ही राष्ट्रपति भवन में प्रो-टेम को लोकसभा की अस्थाई अध्यक्षता की शपथ दिलाते हैं.
प्रोटेम स्पीकर के पास अध्यक्ष की तरह मौलिक शक्तियां नहीं होती हैं. संसद की तरह ही विधानसभा के लिए भी ट्रांजिशन के समय इनकी नियुक्ति होती है, यानी जब एक विधानसभा खत्म होकर नई विधानसभा शुरू हो रही हो. ऐसे में अस्थाई अध्यक्ष जरूरी हो जाता है. संसद से अलग, यहां प्रो-टेम की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं.
26 जून को स्थाई लोकसभा स्पीकर के लिए चुनाव हो सकता है. अध्यक्ष आम सहमति से चुना जाता रहा, लेकिन इस बार कयास लग रहे हैं कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही इस अहम पद के लिए लड़ाई करेंगे. दरअसल विपक्ष की मांग है कि चूंकि वे भी ताकतवर हैं तो सदन में उनके सदस्य को डिप्टी स्पीकर का पद दिया जाए. अगर ऐसा नहीं होता है तो उस सूरत में स्पीकर पद के लिए विपक्ष भी अपना सदस्य उतारेगा.
चुनाव नतीजे आने के बाद से लगातार स्पीकर के पद की बात हो रही है. ये पद है भी काफी शक्तिशाली. सदन का सबसे प्रमुख व्यक्ति स्पीकर ही होता है. सदन में स्पीकर की मंजूरी के बिना कुछ भी नहीं हो सकता. स्पीकर को सदन की मर्यादा और व्यवस्था बनाए रखनी होती है. अगर ऐसा नहीं होता है तो वो सदन को स्थगित कर सकते हैं या फिर निलंबित कर सकते हैं. इतना ही नहीं, मर्यादा का उल्लंघन करने वाले सांसदों को भी स्पीकर निलंबित कर सकते हैं.