हमास और इजरायल का युद्ध लगातार गहराता जा रहा है. युद्ध की शुरुआत हमास ने की थी, जब उसने इजरायली म्यूजिक फेस्टिवल में मौजूद लोगों को मारकर काफी लोगों को अगवा कर लिया. अब ये आतंकी गुट अपहृत लोगों और बच्चों की वीडियो जारी कर रहा है. हाल ही में एक युवती की क्लिप आई, जिसमें आतंकी उसके टूटे हुए हाथ का इलाज कर रहे हैं. ये एक तरह का मनोवैज्ञानिक युद्ध है, जो हमास ने इजरायल के खिलाफ छेड़ रखा है.
ब्रेन के साथ होता है खेल
इसे साइवॉर भी कहते हैं. जब दो दुश्मन आपस में भिड़ें तो लड़ाई लंबी चल सकती है. ये भी हो सकता है कि निपटारा ही न हो सके. ऐसे में अक्सर ही सैनिक या कई बार खुद देश की सरकार लड़ाई में शामिल हो जाती है. वो तरह-तरह के मनोवैज्ञानिक हथकंडे अपनाती है जिससे दुश्मन कमजोर होता जाए.
क्या कर रहा है हमास?
हमास का उदाहरण लें तो जैसे उसने इजरायली लोगों को उठा लिया. अब वो धीरे-धीरे उनकी वीडियो रिलीज कर रहा है. कुछ रो रहे हैं, कुछ आतंकियों को नेकदिल बता रहे हैं. लेकिन ऐसी हरेक वीडियो से इजरायल में रहते यहूदियों पर प्रेशर बन रहा है कि अगर समय रहते उन्होंने हथियार न डाले तो शायद अगवा किए गए लोगों की जान चली जाए.
ह्यूमन शील्ड भी दबाव बनाने का एक तरीका
आतंकी संगठन के जरिए ऐसे वीडियो भी आ रहे हैं, जिसमें गाजा के घायल और रोते-बिलखते लोग दिखें. इजरायल ने हमला करने के पहले गाजा पट्टी में रहते लोगों को घर छोड़ने को कहा था, लेकिन हमास ने उन्हें ऐसा करने से रोक लिया. इरादा साफ था कि इजरायल रिहायशी इलाकों पर अटैक न कर पाए. और अगर थोड़ा-बहुत हमला करे भी तो घायल लोगों को दिखाकर हमास सारी सहानुभूति बटोर ले.
युद्ध के मैदान में हाथी लाए जाते थे
सरकार और सैनिकों के दिमाग के खेलने का ये ढंग काफी पुराना है. जैसे अफ्रीका और एशियाई देशों में प्राचीन समय में लड़ाई के मैदान में हाथी भी लाए जाते थे. वे घोड़े की तरह तेज भाग नहीं सकते, न ही इतने ऊंचे होते हैं कि उसपर बैठे लोग हर हथियार से बच जाएं, लेकिन भारी-भरकम होने की वजह से ये डरावने लगते थे. आसपास के सैनिक डरे रहते कि वे दबकर मर न जाएं. अक्सर घोड़े भी हाथी को देखकर बिदककर पीछे हट जाते थे.
कई बार सैनिकों के बीच ये अफवाह फैलाई जाती थी कि उनका सेनापति मर गया है. इससे आर्मी का मनोबल टूट जाता, और वो उस शिद्दत से लड़ाई नहीं कर पाती थी.
लालच देकर दुश्मन सेना को तोड़ना
वक्त के साथ साइकोलॉजिकल वॉरफेयर और मॉर्डन होता गया. पहले विश्व युद्ध के दौरान लड़ाकू विमान से पर्चे गिराए जाते, जिसमें अनापशनाप बातें लिखी होतीं. कई बार दुश्मन सेना का सरेंडर करने या सीक्रेट देने के बदले राशन या पैसों का वादा किया जाता. जर्मन टुकड़ी ने कई जगहों पर भरपेट खाने और इलाज के बदले सरेंडर कर दिया था. इससे युद्ध जल्दी खत्म हो सका.
दूसरे विश्व युद्ध में मामला और आगे निकल गया. अमेरिकी सेना 'गोस्ट आर्मी' तैयार करने लगी. इसमें कागज और प्लास्टिक के बड़े-बड़े टैंक, नकली साजो-सामान के साथ रैलियां होतीं. इससे ये लगता था कि उसके पास भारी सेना और हथियार हैं.
कई तरीके हैं साइकोलॉजिकल वॉर के
एक कदम और आगे निकलते हुए अमेरिका ने फेक रेडियो साउंड तैयार कर लिए. ये कमजोर सिग्नल के साथ तैयार होते थे ताकि जर्मनी को लगे कि उसने अमेरिका की किसी खुफिया चीज को पकड़ा है. संदेश नकली होते, जिससे जर्मन्स का ध्यान बंट जाता और अमेरिका समेत मित्र देश अपना काम कर जाते. ये काम नॉर्थ कोरिया भी लगातार करता आया है. उसने सीमा पर लाउडस्पीकर लगा रखे हैं जिससे लगातार दक्षिण कोरिया के खिलाफ बातें बोली जाती हैं, साथ ही अपनी नेकी का प्रचार किया जाता है.
गल्फ युद्ध के समय यूएस ने किए कई प्रयोग
गल्फ वॉर के दौरान अमेरिका ने कई सारे तिकड़में अपनाईं. वो लाउडस्पीकर पर काफी ऊंची आवाज में सरेंडर करने को कहता. साथ ही पर्चे भी फिंकवाता, जिसमें तत्कालीन इराकी सरकार के बारे में उल्टी-सीधी बातें लिखी होतीं. दावे होते कि सरकार सैनिकों का इस्तेमाल कर रही है. अगर वे अमेरिका को सरेंडर कर दें तो उन्हें सुरक्षा दी जाएगी. नतीजा ये हुआ काफी बड़ी सेना ने हथियार डाल दिए. इसका जिक्र साइकोलॉजिकल ऑपरेशन्स इन डेजर्ट शील्ड नाम के पेपर में मिलता है.
हर देश के पास इस जंग के एक्सपर्ट
अब लगभग हर देश की मिलिट्री में मनोवैज्ञानिक युद्ध के एक्सपर्ट होते हैं. ये साइकोलॉजिकल ऑपरेशन के जानकार होते हैं. इसमें शामिल होने के लिए सैनिकों की शारीरिक ताकत के साथ दिमागी ताकत भी मायने रखती है. कई सारे कड़े टेस्ट होते हैं, जिसके बाद चुने हुए सैनिकों को इसकी ट्रेनिंग दी जाती है. इस दौरान दुश्मन को बिना लड़े कमजोर करना तो सिखाया ही जाता है, साथ ही ये भी बताते हैं कि दुश्मन के जाल में अगर फंस जाएं तो कैसे देश की कोई भी खुफिया जानकारी दिए बगैर वापस लौट सकें.
साल 2019 में कैप्टन अभिनंदन का मामला कुछ ऐसा ही था. पाकिस्तान में ट्रैप होने के बाद अभिनंदन की एडिटेड वीडियो जारी हुई, जिसमें वे हिरासत में दिख रहे थे. ये भारत पर दबाव बनाने का हथकंडा था, जो बुरी तरह से नाकाम रहा. लद्दाख तनाव के समय चीन ने भी ऐसे कई मैथड अपनाए थे. यहां तक कि कथित तौर पर उसके सैनिकों ने हिंदी गाने सीख लिए ताकि भारतीय सैनिकों की संवेदना ले सकें.