सतलज-यमुना लिंक नहर (SYL) को लेकर आज पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने बैठक की. हालांकि, हर बार की तरह ही इस बार भी इस मसले का हल नहीं हो सका और बैठक बेनतीजा रही.
इस मीटिंग के बाद भगवंत मान ने कहा कि उनके पास हरियाणा को देने के लिए पानी ही नहीं है. वहीं, खट्टर ने कहा कि नहर के कंस्ट्रक्शन के लिए पंजाब माना ही नहीं.
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री बैठक करें और सतलज-यमुना लिंक नहर के विवाद का हल निकालें.
सतलज-यमुना लिंक नहर को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच चार दशकों से भी लंबे समय से विवाद है. सुप्रीम कोर्ट के दखल के बावजूद इस मसले का हल नहीं हो पा रहा है.
पर क्या है ये विवाद?
- 1 नवंबर 1966 को पंजाब पुनर्गठन एक्ट पास हुआ. इसी के साथ पंजाब और हरियाणा अस्तित्व में आए. उसी दिन से दोनों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर विवाद शुरू हो गया.
- जब पंजाब और हरियाणा अलग-अलग हुए, तब रावी और ब्यास नदी में बहने वाले पानी का आकलन 15.85 मिलियन एकड़ फीट (MAF) किया गया था.
- 1971 में फिर पानी का आकलन बढ़कर 17.17 MAF हो गया. इसमें से पंजाब को 4.22 MAF, हरियाणा को 3.5 MAF और राजस्थान को 8.6 MAF पानी मिला.
- 24 मार्च 1976 को केंद्र सरकार ने पानी के बंटवारे को लेकर अधिसूचना जारी की. हालांकि, ये अभी तक लागू नहीं हो सकी.
सतलज-यमुना लिंक नहर क्या है?
- 1981 में फिर समझौता हुआ. 8 अप्रैल 1982 को तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पंजाब के पटियाला जिले के कपूरई गांव में सतलज-यमुना लिंक नहर का उद्घाटन किया.
- 214 किलोमीटर लंबी ये नहर पंजाब में बहने वाली सतलज और हरियाणा से गुजरने वाली यमुना नदी को जोड़ने के लिए बननी थी. 214 किमी में से 122 किमी हिस्सा पंजाब और 92 किमी हिस्सा हरियाणा में पड़ता है.
- ये प्रोजेक्ट शुरू होता, उससे पहले ही अकाली दल ने इसका विरोध शुरू कर दिया. जुलाई 1985 में उस वक्त के पीएम राजीव गांधी और अकाली दल के प्रमुख हरचंद सिंह लोंगोवाल के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.
- समझौते में पानी का आकलन नए सिरे से करने के लिए ट्रिब्यूनल बनाने पर सहमति बनी. इस ट्रिब्यूनल ने 1978 में रिपोर्ट दी. इसमें पंजाब के पानी का कोटा बढ़ाकर 5 MAF और हरियाणा का काटो 3.83 MAF करने की सिफारिश की.
बात कहां अटकी रह गई?
- सतलज-यमुना लिंक नहर प्रोजेक्ट का उद्घाटन हुए 40 साल हो चुके हैं, लेकिन अब तक ये नहर बन नहीं सकी है. कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि नहर का 90 फीसदी काम हो चुका है और जो बचा है वो पंजाब के हिस्से का है.
- पंजाब शुरू से ही इस प्रोजेक्ट के खिलाफ रहा है. पंजाब का कहना है कि जब विभाजन हुआ तो दोनों राज्यों के बीच 60 और 40 के आधार पर संपत्तियां बांटी गई. पंजाब कहता है कि इस प्रोजेक्ट में रावी, ब्यास और सतलज नदी शामिल है लेकिन यमुना का नहीं.
- वहीं, हरियाणा दावा करता है कि उसके यहां पानी का संकट है. उसके लिए सिंचाई जरूरतों को पूरा कर पाना भी मुश्किल है. हरियाणा का तर्क है कि पानी में उसके सही हिस्से से उसे वंचित किया जा रहा है.