कनाडा में बीते महीने जंगलों में लगी आग अब तक धधक रही है. यहां तक कि इसका असर सटे हुए अमेरिकी राज्यों तक पर दिखने लगा. लोगों से मास्क पहनने और जरूरी न होने पर बाहर जाना टालने को कहा गया. बहुत से लोग विस्थापित हो चुके हैं और अमेरिकी शरण में जा रहे हैं.
बदल रहा है आग पकड़ने का सीजन
कनाडा में कमोबेश हर साल ही आग लगती रहती है. अक्सर अप्रैल से सितंबर-अक्टूबर के दौरान ऐसा होता है. तब वैसे तो मौसम उतना गर्म नहीं होता, लेकिन ज्यादातर घटनाएं बिजली गिरने की वजह से होती हैं. अब ये पैटर्न तेजी से बदल रहा है. एक्सट्रीम सर्दियों को छोड़कर लगभग पूरे साल कभी भी जंगलों में आग की घटनाएं सुनाई दे रही हैं. कनाडा ही नहीं, अमेरिका और यूरोप के कई देशों में आम हो चुका. एक नई बात ये दिखने लगी कि उष्णकटिबंधीय जंगल भी आग पकड़ने लगे. ये वो जंगल हैं, जहां काफी नमी होती है और बिजली का लगातार गिरना भी जिन्हें ठंडा रखता है.
कैसे लगती है जंगलों में आग
आग पकड़ने के लिए ऑक्सीजन और तापमान की जरूरत होती है. जंगल में ये बखूबी मिलता है. लकड़ियां इसके लिए फ्यूल का काम करती हैं. गर्मी, या बिजली गिरने पर छोटी चिंगारी भी पैदा हो जाए तो आग लग सकती है. अब सवाल ये है कि जंगल में गर्मी कैसे पैदा होती है. तो इसके कई कारण हो सकते हैं. जंगलों के आसपास खेती करने वाले लोग अगर पराली जलाएं तो भी आग का डर रहता है. घूमने जाने वाले कैंप फायर करते हैं जो अक्सर ही जंगलों को खाक कर देती है.
एक बार अगर जंगल में आग पकड़ ले तो फैलती ही चली जाती है. वहां हवा जोरों से चलती है जो आग को फैलाने का काम करती है. घास और सूखी पत्तियां-टहनियां ईंधन बन जाती हैं और आग बढ़ने लगती है. चूंकि तुरंत इसपर ध्यान नहीं जाता है, तो आग इतनी भड़क जाती है कि तेजी से तबाही मचाने लगती है.
कब-कब लगी भयंकर आग
- साल 2015 में इंडोनेशिया में भयंकर आग लगी, जिसमें करीब 92 हजार इंडोनेशियाई मारे गए. इनमें से अधिकतर लोग आग के बुझने के बाद हुए प्रदूषण से खत्म हुए. इस वाइल्डफायर ने पड़ोसी देशों, सिंगापुर और मलेशिया पर भी असर डाला, जहां धुएं की वजह से लगभग 10 हजार मौतें हुईं.
- ग्रीस में अस्सी के दशक में फायर सीजन चल पड़ा था. जंगलों की आग रह-रहकर भड़क आती थी. तब लगभग 2 हजार लोग आग की चपेट में आकर मरे, जबकि बाद में प्रदूषण से कितनी जानें गईं, इसका कोई डेटा नहीं मिलता.
- अमेरिका के मिनेसोटा में साल 2018 में जंगल में आग लगी, जिसने 1 हजार से ज्यादा जानें ले लीं. इस दौरान डेढ़ लाख एकड़ जमीन और करीब 19 हजार बिल्डिंग्स राख में बदल गईं.
ये देश हैं आग के लिए काफी संवेदनशील
यूरोपियन फॉरेस्ट फायर इंफॉर्मेशन सिस्टम ने 19 देशों को जंगलों की आग के लिए बेहद संवेदनशील, वहीं स्पेन, पुर्तगाल, ग्रीस और फ्रांस को एक्सट्रीम डेंजर में बताया. इनके अलावा मोरक्को, अमेरिका, कनाडा दुनिया के वे हिस्से हैं, जहां जुलाई से सितंबर के बीच लगातार जंगलों में भीषण आग से तबाही मची रहती है.
जंगल की आग थोड़ी जरूरी भी
बहुत पुराने समय से जंगलों में आग लगती रही. एक हद तक ये जरूरी भी है. एक्सपर्ट मानते हैं कि इससे कई सारी स्पीशीज को पनपने का मौका मिलता है, जिन्हें अंकुरण के लिए धुएं की जरूरत होती है. अगर जंगल में आग न पकड़े तो पेड़-पौधों की ऐसी प्रजातियां खत्म हो जाएंगी. लेकिन इन्हें उतनी ही आग चाहिए जो नेचुरल हों और कुछ समय में खत्म हो जाएं. वाइल्डफायर से जंगल में जरूरत से ज्यादा पेड़-पौधों का भी सफाया हो जाता है, जिससे बचे हुए पेड़ों को सांस लेने और फलने-फूलने की जगह मिलती है.
कैसे बुझाई जाती है वाइल्डफायर
ये काम बहुत ही खतरनाक होता है. खुली हवा और सूखे पेड़-पत्तियों की वजह से आग तेजी से फैलती जाती है, ऐसे में इससे डील करना काफी जोखिमभरा होता है. यही कारण है कि बहुत से देश फायर फाइटर्स के अलावा सेना की भी मदद लेते हैं. आग जितना ही खतरनाक इसके धुएं में सांस लेना है. जैसा कि हम पहले बता चुके, आग से भले ही लोग बच जाएं, लेकिन जहरीले धुएं से ज्यादा जानें जाती रहीं. तो आग बुझानेवालों को इससे भी जूझना होता है.
इस दौरान कई तरह के टूल इस्तेमाल करते हुए जंगल की सूखी जगहों पर गड्ढे खोदकर उनमें पानी डाल दिया जाता है ताकि आग बढ़ते हुए बुझ जाए. टूरिस्ट्स के जाने-आने, कैंपफायर, या खेतों में आग लगाने पर पाबंदी लग जाती है.
क्लाइमेंट चेंज पर काम करने वाले एक्टिविस्ट ये दावा करने लगे हैं कि आग को बुझाने यानी सप्रेशन मैथड की बजाए हमें इसपर फोकस करना चाहिए कि आग इतनी भड़क क्यों रही है. ग्लोबल वार्मिंग पर रोक लगे तभी समस्या पूरी तरह से खत्म होगी.