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कुत्तों को कुचलने से लेकर बकरियों के साथ यौन हिंसा तक, क्यों पशुओं पर क्रूरता बढ़ रही है, कैसे काम करता है एनिमल एब्यूजर का दिमाग?

करीब दो साल पहले केरल से एक वीडियो आया था, जिसमें एक प्रेग्नेंट हथिनी की पटाखों से भरा फल खाने पर मौत हो गई. तब से लेकर अब तक कितनी ही ऐसी घटनाएं हो चुकीं, जिसमें लोग जानवरों को टॉर्चर कर रहे हैं. ऐसा वीडियो भी सामने आया जहां कुत्ते को जान-बूझकर कुचला जा रहा है. ये एक किस्म का सैडिस्टिक प्लेजर है.

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एनिमल क्रुएलिटी लगातार बढ़ रही है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
एनिमल क्रुएलिटी लगातार बढ़ रही है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

करीब दो साल पहले केरल से एक वीडियो आया था, जिसमें एक प्रेग्नेंट हथिनी की पटाखों से भरा फल खाने पर मौत हो गई. तब से लेकर अब तक कितनी ही ऐसी घटनाएं हो चुकीं, जिसमें लोग जानवरों को टॉर्चर कर रहे हैं. ऐसा वीडियो भी सामने आया जहां कुत्ते को जान-बूझकर कुचला जा रहा है. ये एक किस्म का सैडिस्टिक प्लेजर है.

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सबसे पहले तो ये समझते हैं कि सैडिस्ट कौन होते हैं. ये ऐसे लोग होते हैं जिन्हें दूसरों को दुखी देखने में खुशी मिलती है. अगर ये दुख किसी को सीधे-सीधे नहीं मिलता, तो सैडिस्ट खुद इसका जिम्मा उठा लेते हैं. वे कोशिश करते हैं कि उनका टारगेट बुरी तरह से दुखी हो जाए. बहुत से सैडिस्ट इमोशनल दुख देना पसंद करते हैं, तो कईयों को फिजिकल दर्द देखकर ज्यादा अच्छा लगता है. यही सैडिस्टिक प्लेजर है, मतलब दूसरे के दुख में आराम पाना. 

कैसे अलग है साइकोपैथ से सैडिस्ट

ये साइकोपैथ से अलग होते हैं, जिनका मकसद दुख देकर कुछ न कुछ हासिल करना होता है. वहीं सैडिस्ट सिर्फ तकलीफ देने के लिए तकलीफ देते हैं. इसके पीछे दुश्मनी जैसी चीज आमतौर पर नहीं होती. 

क्यों बनते हैं सैडिस्ट?

इसके पीछे कोई सीधी वजह नहीं. इटैलियन दार्शनिक निकोल मेकिवेली ने एक बार कहा था- इंसान नहीं, हालात बीमारियां पैदा करते हैं. ये बात भी एक पैटर्न को देखते हुए कही गई. एक्सपर्ट्स ने पाया कि अकाल के समय जब दिमाग में सेरोटोनिन नामक केमिकल कम होने लगता है, तब लोग ज्यादा क्रूर हो जाते हैं. वे दूसरे इंसानों, बच्चों-औरतों और खासकर बेजुबान पशुओं को चोट पहुंचाते हैं. जब ये लोग या जानवर दर्द से चीखते हैं तो न्यूरोट्रांसमीटर दिमाग तक जीत का सिग्नल भेजते हैं. इससे सेरोटोनिन का स्तर बढ़ जाता है और सैडिस्ट झूठी खुशी पाने लगता है. 

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ये शोध नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में क्रुएलिटी रिवार्ड्स- द ग्रेटिफिकेशन नाम से छपा थी. 

recent cases of animal cruelty in india viral video and psychology behind it- photo Unsplash

एनिमल एब्यूजर आगे चलकर क्रिमिनल भी हो सकते हैं

इसमें यह भी माना गया कि जानवरों को तंग करके खुशी पाने वाले लोगों के साथ काफी डर रहता है कि वे इंसानों को भी चोट पहुंचाने लगे. लगभग 2 दर्जन सर्वे रिपोर्ट्स का मिलाजुला नतीजा कहता है कि 35% क्रिमिनल्स एनिमल एब्यूजर भी रह चुके होते हैं. यहां तक कि घरेलू हिंसा करने वाले 71% से ज्यादा लोग पशुओं पर भी क्रूरता कर चुके होते हैं. 

पशुओं पर क्रूरता के अलग-अलग पैटर्न

वैसे तो टॉर्चर करते-करते मार देना एनिमल एब्यूज का एक्सट्रीम रूप है, लेकिन खाने पीने के लिए जानवरों को मारना क्रूरता की श्रेणी में नहीं रखा जाता. पशुप्रेमी संस्थाएं भी केवल नैतिक आधार पर लोगों से अपील करती हैं कि वे मांसाहार छोड़ दें. दूसरी तरफ जानवरों को पालकर भूखा रखना, उन्हें मारना-पीटना, जबरन नशा देना, यौन संबंध बनाना जैसी बातें क्रूरता की श्रेणी में आती हैं. इसे इंटेंशनल एनिमल टॉर्चर एंड क्रुएलिटी (IATC) कहते हैं. 

IATC की कुछ श्रेणियां

- सीधी-सीधी लापरवाही. इसमें वे लोग आते हैं, जो पशुओं से नफरत तो नहीं करते, लेकिन उन्हें पालकर ऐसे ही छोड़ देते हैं. 

- इंटेशनल एब्यूज के तहत जान-बूझकर पशुओं को परेशान करने वाले लोग आते हैं. इसे यूसैडिज्म भी कहते हैं. 

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- एक और श्रेणी है ऑर्गेनाइज्ड एब्यूज. इसमें गिरोह बनाकर, सोच-समझकर पशुओं को चोट पहुंचाई जाती है, मसलन कौओं, कुत्तों या बैलों की लड़ाई. 

- एनिमल सेक्सुअल एब्यूज भी एक कैटेगरी है. इन दिनों इस किस्म के कई वीडियो आए, जिसमें लोग पशुओं से यौन संबंध बना रहे हैं. 

recent cases of animal cruelty in india viral video and psychology behind it- photo Pixabay

इन पशुओं पर होती है हिंसा

- सबसे ज्यादा हिंसा स्ट्रीट डॉग, कैट्स, बकरियों-गायों के साथ होती है. इनमें से बहुत कम ही सामने आ पाती हैं. 

- हर 60 सेकंड में एक पशु गंभीर टॉर्चर झेलता है. 

- हर साल 115 मिलियन एनिमल्स लैब एक्सपेरिमेंट के लिए इस्तेमाल होते हैं. 

जानवरों और इंसानों के बीच बॉन्डिंग पर काम करने वाला एनजीओ ह्यूमन सोसायटी इंटरनेशनल कई चौंकाने वाली बातें कहता है. अगर केवल अमेरिका को देखें तो वहां हर साल 1 करोड़ कुत्ते-बिल्लियों के साथ यौन या दूसरे किस्म की हिंसा होती है, जिसमें उनकी मौत हो जाती है. ये रिकॉर्डेड केस होते हैं, जो सामने आ जाते हैं.

इसे रोकने के लिए कौन से नियम

हमारे यहां प्रिवेंशन ऑफ क्रुएलिटी टू एनिमल एक्ट में 3 श्रेणियां हैं- जिसमें मामले की गंभीरता के आधार पर दोषी को जुर्माना और कारावास दोनों सजाएं मिल सकती हैं. लेकिन ये काफी नहीं है. पशुप्रेमी संस्थाएं बहुत बार इनमें बदलाव की मांग करती रहीं. 

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