सबसे पहले ये जानते चलें कि फ्रांस में ऐसा क्या हुआ, जिसे बाकी देश अपने लिए सबक की तरह देख रहे हैं. वहां अल्जीरियाई मूल के एक किशोर की ट्रैफिक नियम तोड़ने पर पुलिस की गोली से मौत हो गई. इसके बाद हिंसा भड़की और इसके कई वीडियो आए जिसनमें लोग दुकान लूटते या भड़काऊ नारे लगाते दिखने लगे. तब से ही ये चर्चा चल पड़ी कि शरणार्थियों को अपने यहां रखना कितना सुरक्षित है, खासकर अगर वे देश को अपना न सकें.
यूक्रेन और रूस में लड़ाई के बीच यूरोप की एक अलग तस्वीर निकलकर आई. यूरोपियन यूनियन ने सताए हुए लोगों के लिए टेंपररी प्रोटेक्शन डायरेक्टिव फॉर रिफ्यूजीस फ्रॉम यूक्रेन नाम से एक डायरेक्टिव बनाया. उसने अपने सदस्यों से कहा कि वे यूक्रेनी लोगों को शरण दें. हर देश को निश्चित संख्या में कुछ शरणार्थियों को शेल्टर देने को कहा गया.
शरणार्थियों को लेकर दिखने लगा फर्क
पोलैंड से लेकर जर्मनी तक की सीमाओं पर नए लोग आने लगे. बहुत से देशों ने तबाह हो चुके ऐसे लोगों के लिए अपने बॉर्डर खोल तो रखे थे, लेकिन सलेक्टिव होकर. वे श्वेत मूल के ईसाई लोगों को अपना रहे थे, जबकि मुस्लिम या कलर्ड लोगों को वहीं रोक रहे थे. इसी साल जारी यूरोपियन इस्लामोफोबिया रिपोर्ट में माना गया कि यूरोप अब रिफ्यूजियों को लेकर पहले जैसा उदार नहीं रहा.
क्या हो सकती है वजह?
इसका एक कारण ये होस्ट देश खुद दे रहे हैं. वहां के लोग मुसलमान या कलर्ड शरणार्थियों से डरते हैं. वे मानते हैं कि रिफ्यूजियों की आबादी ऐसे ही बढ़ती जाए तो एक दिन उनके ही देश में वे अजनबी हो जाएंगे. वे खुद को इस्लामोफोबिक नहीं मान रहे थे, बल्कि विदेशियों पर आरोप लगा रहे थे वे यूरोप का अरबीकरण कर रहे हैं.
एक कारण ये भी है कि हर देश के पास निश्चित रिसोर्सेज हैं. अगर घर के चूल्हे पर 10 लोगों के लायक खाना पकता हो, तो 11वें अचानक आए मेहमान का तो पेट भरा जा सकता है, लेकिन संख्या दोगुनी हो जाए तो सबके सब भूखे रह जाएंगे. कुछ यही बात यूरोप के कई देश महसूस करने लगे. रिसोर्सेस बंटने लगे. घर, नौकरियों में मारामारी दिखने लगी.
वर्ल्ड बैंक हालांकि मानता है कि ये तकलीफें कुछ ही समय के लिए रहती हैं. देश का मैनपावर जैसे ही बढ़ता है, नए रोजगार भी पैदा होंगे, और जीडीपी भी बढ़ेगी. इसके बाद भी कथित शॉर्ट-टर्म असर ज्यादा परेशान करने वाले हैं. खासकर होस्ट देशों की महिलाओं और युवाओं को नौकरी का बंटवारा करना होता है. अगर देश में पहले से ही आबादी ज्यादा हो तो लोगों के पास शेल्टर की भी समस्या होने लगती है.
अक्सर ये भी देखा गया कि है कि युद्ध-प्रभावित इलाकों से आने वाले लोग मानसिक तौर पर उतने स्थिर नहीं होते. उनकी आक्रामकता भी स्थानीय लोगों में डर और गुस्सा पैदा कर रही है.
इस देश में हैं सबसे ज्यादा शरणार्थी
फिलहाल जर्मनी यूरोप का वो अकेला अमीर देश है, जहां सबसे ज्यादा शरणार्थी हैं. साल 2022 की शुरुआत में उसने 1.2 मिलियन शरणार्थियों को होस्ट किया, इसकी संख्या साल 2023 में दोगुनी हो गई. वहां रहते लोगों में लगभग नौ लाख यूक्रेनियन हैं, जबकि लगभग पौने 7 लाख लोग सीरिया से आए हैं. इनके अलावा अफगानिस्तान, इराक और मिडिल ईस्ट के दूसरे देशों से भी शरणार्थी यहां रह रहे हैं.
थकने लगा है जर्मनी
अब जर्मनी के कई राज्य और शरणार्थियों को लेने से कतरा रहे हैं. मई में इसपर काफी बैठकें भी हुईं और संख्या सीमित करने का फैसला लिया गया. फिलहाल शरणार्थियों के आवेदन को सलेक्ट या रिजेक्ट होने में करीब 26 महीने लगते हैं, यानी दो साल से भी ज्यादा समय. अब इस प्रोसेस को तेज किया जा रहा है ताकि रिजेक्ट हो चुके रिफ्यूजियों को जल्दी वापस भेजा जा सके.
सख्त हो सकती है बॉर्डर पेट्रोलिंग
जर्मनी बॉर्डर का बड़ा हिस्सा पेट्रोलिंग से बचा रहता है. अभी ऑस्ट्रिया से लगी हुई सीमा पर ही सख्त चेकिंग है, जबकि डेनमार्क, फ्रांस, लग्जमबर्ग, नीदरलैंड, पोलैंड, बेल्जियम, स्विट्जरलैंड और चेक गणराज्य से भी देश की सीमाएं साझा हैं. यहां अब तक आवाजाही खुली हुई रही. अब बात हो रही है कि यहां भी सेफ्टी रखी जाए ताकि दूसरे देशों से होते हुए शरणार्थी जबरन न घुस आएं.