हमारा देश शरणार्थियों के मामले में हमेशा नर्म रवैया रखता रहा. यहां लाखों की संख्या में कई देशों के शरणार्थी हैं. अब सीएए बनने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और ईसाई धर्म के ऐसे लोगों को भारतीय नागरिकता मिल सकेगी, जो 31 दिसंबर 2014 तक या उससे पहले भारत आ चुके. इस कानून पर मिली-जुली बातें कही जा रही हैं. दो खेमे यहां भी हो चुके. लेकिन देखने वाली बात ये है कि विरोध कर रहे मुस्लिम देशों में भी नागरिकता के लिए काफी पापड़ बेलने पड़ते हैं.
पूरी दुनिया में नागरिता के सिंपल रूल
एक है, राइट ऑफ सॉइल. ये कहता है कि बच्चे का जहां जन्म हुआ हो, वो अपने आप वहां का नागरिक बन जाता है.
दूसरा नियम है- राइट ऑफ ब्लड. मतलब आपके पेरेंट्स जहां से हैं, आप भी वहीं के कहलाएंगे.
तीसरा नियम भी है. इसमें किसी भी देश का नागरिक दूसरे देश का सिटिजन हो सकता है, लेकिन इसके लिए उसे नेचुरलाइजेशन का पीरियड बिताना होगा.
ये वो समय है, जो आप किसी देश में बिताते हैं. ये 5 सालों से लेकर काफी लंबा भी हो सकता है.
किन देशों में जन्म के आधार पर नागरिकता?
30 से ज्यादा देश बर्थ राइट सिटिजनशिप को मानते हैं. इसमें अमेरिका सबसे ऊपर है. उसने 19वीं सदी में ही राइट ऑफ सॉइल की बात की थी और अपने यहां जन्मे बच्चों को अपना नागरिक बताने लगा था. इसके अलावा कनाडा, अर्जेंटिना, बोलिविया, इक्वाडोर, फिजी, ग्वाटेमाला, क्यूबा और वेनेजुएला जैसे कई मुल्क ये अधिकार देते रहे. हालांकि कई जगहें ज्यादा सख्त हैं. जैसे कई देशों में नागरिकता के लिए बच्चे के माता-पिता दोनों को वहां का होना चाहिए.
मुस्लिम देशों में कैसे मिलती है नागरिकता
इसमें सबसे पहले पड़ोसी देशों को देखते हैं. पाकिस्तान में माइनोरिटी लगातार कम हो रही है. यहां से जबरन धर्म परिवर्तन की भी बातें आती रहीं. भारत के हर नियम-कानून पर परेशान होने वाले पाकिस्तान में मुस्लिम धर्म का होने से नागरिकता नहीं मिल जाती. विदेशी वहां कम से कम 4 साल बिताने के बाद ही सिटिजनशिप के लिए आवेदन कर सकते हैं.
इसमें भी कई नियम हैं. उसने ऐसी कोई पहल नहीं कि अगर साउथ एशिया के किसी देश में मुस्लिम परेशान हैं, तो उसके यहां आ जाएं. यहां तक कि उसने अफगानिस्तान के भी लाखों लोगों को कुछ महीने पहले ही निकाल दिया.
बांग्लादेश में ब्लड राइट चलता है
अगर किसी के पेरेंट्स का जन्म वहां हुआ हो, तो नागरिकता मिल जाएगी. हालांकि फिलहाल सीरियाई कैंप में रह रही शमीमा बेगम को बांग्लादेश ने अपनाने से मना कर दिया था क्योंकि उसके लिंक इस्लामिक स्टेट से पाए गए. बांग्लादेश भी मुस्लिम-मेजोरिटी है, लेकिन यहां भी मुसलमान होने के चलते किसी को सिटिजनशिप नहीं मिलती.
कतर की सिटिजनशिप सबसे मुश्किल
अब बात करें, अमीर मुस्लिम देशों की. इसमें कतर की नागरिकता पाना बहुत मुश्किल है. कतरी नागरिकता के लिए वो अप्लाई कर सकता है, जिसके पेरेंट्स में से कोई एक कतर में जन्मा हो. इसके अलावा अगर आप विदेशी हों तो कतरी सिटिजन कहलाने के लिए 25 साल का इंतजार करना पड़ सकता है. यहां नेचुरलाइजेशन की प्रक्रिया इतनी लंबी है.
इराक और ईरान में क्या हैं नियम
ईरान में जन्म के आधार पर सिटिजन कहलाते हैं. इसके अलावा अगर फॉरेन नेशनल वहां बसना चाहें तो उन्हें कम से कम चार सालों तक देश में रहना होगा. इराक में भी यही नियम लागू है. यहां भी ऐसा नहीं है कि सताए हुए मुस्लिमों को शरण मिल जाए. जैसे गाजा का ही मामला लें तो लगभग सारे मुस्लिम देशों ने उसके लिए आवाज तो उठाई, लेकिन शरण नहीं दी.
सऊदी में अरबी भाषा आना अनिवार्य
सऊदी अरब में नॉन-सऊदी पिता और सऊदी-मां से जन्मी संतान को वहां की नागरिकता मिल सकती है. लेकिन इसके लिए कई शर्तें हैं. जैसे उसके पास परमानेंट रेजीडेंसी हो, वो फर्राटे से अरबी बोलता-समझता हो और उसकी मां के पिता-माता सऊदी से ही हों. यहां पर सऊदी राष्ट्रीयता कानून है. इसमें कई नियम हैं, जिन्हें पूरा करने वाला ही वहां का नागरिक कहलाएगा.