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क्या बगैर चुनाव लड़े भी ताउम्र राष्ट्रपति बने रह सकते हैं पुतिन, रूसी संविधान में ऐसा क्या बदला?

अगले साल रूस में राष्ट्रपति पद के लिए इलेक्शन होने वाला है. व्लादिमीर पुतिन इसमें शामिल होने की घोषणा कर चुके. 70 साल से अधिक उम्र के पुतिन पर आरोप लगता रहा कि कोरोना के दौर में उन्होंने रूसी संविधान में ऐसे बदलाव किए, जिसने उन्हें असीमित ताकत दे दी. यहां तक कि वे बगैर चुनाव करवाए भी प्रेसिडेंट बने रह सकते हैं.

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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन. फोटो (AP)
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन. फोटो (AP)

रूस-यूक्रेन युद्ध को दो साल होने जा रहे हैं. इस बीच हाल ही में पुतिन ने एलान किया कि वे राष्ट्रपति पद के खड़े हो सकते हैं. वैसे ये महज खानापूर्ति ही होगी. रूस में विपक्ष में कोई भी दमदार शख्सियत है नहीं. ऐसे में पुतिन का पांचवी बार राष्ट्रपति बनना तय है. इससे पहले हुए चुनाव भी वे काफी मार्जिन से जीतते आए. इस बीच ये बात भी हो रही है कि रूस के संविधान में ऐसे बदलाव हो चुके, जो पुतिन को बगैर चुनाव लड़े ही राष्ट्रपति बनाए रख सकते हैं. 

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करीब तीन साल पहले ही हो चुका बदलाव

साल 2020 में रूस में बड़ा उलटफेर हुआ. वहां संविधान में संशोधन का प्रस्ताव आया. इसके तहत ये प्रपोज किया गया कि पुतिन साल 2036 तक राष्ट्रपति पद पर बने रहें. यानी, जब तक उनकी उम्र 83 बरस न हो जाए. यहां बता दें कि पुतिन का कार्यकाल साल 2024 में खत्म हो रहा है. इसके काफी पहले ही सारी योजना बना ली गई. 

जनता का मन टटोलने हुई वोटिंग

रूस के केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने खुद को पूरी तरह पारदर्शी दिखाते हुए संशोधन के लिए वोटिंग भी कराई. नतीजे पुतिन के पक्ष में थे. दावा किया गया कि करीब 77.9 प्रतिशत लोग पुतिन को लगातार राष्ट्रपति बनाए रखने के पक्ष में थे. वैसे क्रेमलिन के आलोचकों का कहना है कि मनमुताबिक नतीजे पाने के लिए मतदान में धांधली की गई, लेकिन कोई सबूत न होने की वजह से बात आई-गई हो गई. 

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russia president election vladimir putin amid russia ukraine war

रूस में विपक्ष लगभग गायब हो चुका

विपक्षियों ने इस बदलाव के खिलाफ रैली भी निकाली, लेकिन क्रेमलिन के खौफ की वजह से कम ही लोग इसका हिस्सा बने. यहां बता दें कि रूस में विपक्ष लगभग नहीं के बराबर है. अगर कोई सत्ता के खिलाफ बोलता भी है तो उसकी आवाज दबा दी जाती है. लंबे समय से जेल में पड़े एलेक्सी नवलनी भी गायब हो चुके हैं, जो पुतिन के कट्टर विरोधी माने जाते रहे. 

पुतिन विरोधियों की मौत

कुछ ही महीनों पहले पुतिन के खिलाफ खड़े हो चुके प्राइवेट आर्मी चीफ येवगेनी प्रिगोझिन की भी एक विमान हादसे में मौत हो गई. प्रिगोझिन एक समय पर पुतिन के करीबी थे, लेकिन धीरे-धीरे वे उनके उल्टे खेमे के नेता बन चुके थे. यहां तक कि उनका पलड़ा ज्यादा भारी माना जा रहा था. इसी बीच कई उलटफेर हुए और प्राइवेट आर्मी चीफ की मौत हो गई. हालात ये हैं कि अब कोई भी रूस की सत्ता के खिलाफ नहीं बोलना चाहता क्योंकि वो या तो गायब हो जाएगा, या संदिग्ध हालातों में उसकी मौत हो सकती है. 

russia president election vladimir putin amid russia ukraine war photo AP

और क्या-क्या बदलाव हुए
- संविधान में संशोधन से एलीट वर्ग को और ज्यादा ताकत मिल गई. जैसे दोहरी नागरिकता या ओवरसीज बैंक खाते रखने पर उन्हें कई तरह की छूट मिली. 

- रूसी राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार को लगातार 25 सालों तक रूस में रहना जरूरी बना दिया गया. ये मौजूदा हालातों में शायद ही संभव हो. ऐसे में प्रेसिडेंट पद के लिए दावेदार अपने आप घट जाएंगे. 

- रूस एक्स-सोवियत रेजिडेंट्स के लिए भी नया पासपोर्ट जारी कर रहा है. जैसे-जैसे इनकी संख्या बढ़ेगी, रूस जतला सकेगा कि पूर्व सोवियत संघ के फलां देशों में अब भी उसके लोग हैं. इससे क्रेमलिन की पकड़ मजबूत होगी. 

- संविधान का अनुच्छेद 67 यूक्रेन पर है. इसके तहत रूस किसी भी ऐसी बात को गैरकानूनी मानता है, जिसमें रूसी जमीन को विदेशी ताकतों को लौटाया जाए. रूस ने 2014 में यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा लिया. ये अनुच्छेद उसे ये जमीन न लौटाने की गुंजाइश देता है. 

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अब क्यों चुनाव लड़ने जा रहे हैं पुतिन

रूस में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव न हो तो भी पुतिन अगले दो कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति रह सकते हैं. फिर वे दोबारा इलेक्शन क्यों करवाने जा रहे हैं? ये एक तरह से उनका शक्ति प्रदर्शन हो सकता है. दो सालों से चल रहे युद्ध के दौरान रूसी सेना ने यूक्रेन के कई हिस्सों पर लगभग कब्जा कर लिया है. अनुमान लगाया जा रहा है कि आगामी चुनाव यूक्रेन के जीते हुए हिस्सों पर भी होगा. इससे एक तरह से ठप्पा लग जाएगा कि ये जमीनें रूस की हो चुकीं.

इसके अलावा वैगनर आर्मी के उभरने के बाद पुतिन की ताकत कमजोर पड़ती दिखी थी. चुनाव जीतकर पुतिन ये भी जता सकेंगे कि रूस की जनता अब भी उन्हें चाहती है.

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