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5वीं बार राष्ट्रपति बन सकते हैं पुतिन... समझें- उन्हें हराना क्यों है नामुमकिन? रूस पर कैसे बनाया अपना दबदबा

रूस में राष्ट्रपति चुनाव के लिए आज वोट डाले जा रहे हैं. इस चुनाव में पुतिन के खिलाफ तीन उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं, लेकिन उनकी जीत लगभग तय मानी जा रही है. एक सर्वे के मुताबिक, चुनाव में पुतिन को 75 फीसदी से ज्यादा वोट मिल सकते हैं.

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रूस की सत्ता पर पुतिन 24 साल से काबिज हैं.
रूस की सत्ता पर पुतिन 24 साल से काबिज हैं.

रूस में राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डाले जा रहे हैं. 15 मार्च से 17 मार्च के बीच वहां वोटिंग होगी. हालांकि, इन चुनाव को औपचारिकता मात्र ही माना जा रहा है. वो इसलिए क्योंकि व्लादिमीर पुतिन का राष्ट्रपति चुना जाना करीब-करीब तय है.

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रूस का राष्ट्रपति चुनाव इस बार कई मायनों में खास है. उसकी कई वजहें भी हैं. ये चुनाव ऐसे वक्त हो रहे हैं, जब यूक्रेन के साथ रूस की जंग जारी है. पुतिन के सामने कोई दमदार विपक्ष नहीं है. और तो और ये पहली बार है जब रूस में तीन दिन तक वोटिंग होगी. 

इस चुनाव में पुतिन की जीत लगभग तय मानी जा रही है. दरअसल, रूस में राष्ट्रपति चुनने की प्रक्रिया काफी अलग है. वहां 'पॉपुलर वोट' से राष्ट्रपति चुने जाते हैं. 

यानी कि जिसे 50% से ज्यादा वोट मिलते हैं, वही राष्ट्रपति होता है. अगर उम्मीदवार ज्यादा हैं और किसी एक को 50% से ज्यादा वोट नहीं मिले तो तीन हफ्तों बाद दोबारा चुनाव होता है, जिसमें टॉप-2 उम्मीदवार ही होते हैं. फिर इन दो में से कोई एक राष्ट्रपति बनता है.

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पुतिन का जीतना तय क्यों?

पुतिन अब तक चार बार रूस के राष्ट्रपति चुने जा चुके हैं. और हर चुनाव में उनका वोट प्रतिशत पहले के मुकाबले बढ़ा ही है. 

साल 2000 में पुतिन पहली बार राष्ट्रपति चुने गए थे, तब उन्हें 54% वोट मिले थे. इसके बाद 2004 में उन्हें 72% और 2012 में 65% वोट मिले थे. 2018 के राष्ट्रपति चुनाव में पुतिन ने 77% वोट हासिल किए थे.

न्यूज एजेंसी के मुताबिक, 71 साल के पुतिन की छवि रूस में एक 'सख्त नेता' की है. और उनकी लोकप्रियता की एक बड़ी वजह यही है. यूक्रेन से जंग के बीच पुतिन पर 'वॉर क्राइम' के आरोप लगे हों, लेकिन रूस की एक बड़ी आबादी को उनका समर्थन हासिल है.

रूसी मानते हैं कि पुतिन ही हैं जो अमेरिका-यूरोप जैसे पश्चिमी देशों को सख्ती से जवाब दे सकते हैं. फरवरी में एक सर्वे हुआ था, जिसमें 75 फीसदी रूसियों ने पुतिन को ही वोट देने की बात कही थी.

यह भी पढ़ें: एक पर यौन शोषण का आरोप, दूसरे ने अभी बनाई पार्टी, कौन हैं जो चुनाव में व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ खड़े हैं?

जीत की एक वजह ये भी!

व्लादिमीर पुतिन की जीत की एक वजह ये भी है कि वहां उनका मुकाबला करने के लिए कोई बड़ा नेता है ही नहीं. 

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रूसी सरकार के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने पिछले साल कहा था, 'फिलहाल उनका कोई प्रतिद्वंदी नहीं है और कोई हो भी नहीं सकता. असल में कोई भी उनका मुकाबला नहीं कर सकता.'

रूस में अभी वाकई में कोई भी ऐसा नेता नहीं है जो पुतिन को टक्कर दे सके. पुतिन का विरोध करने वाले नेताओं की या तो मौत हो चुकी है या फिर अज्ञातवास पर हैं. पिछले महीने ही पुतिन के कट्टर विरोधी नेता एलेक्सी नवलनी की आर्कटिक जेल में मौत हो गई थी. माना जाता है कि नवलनी ही पुतिन को टक्कर दे सकते थे.

नवलनी के अलावा प्राइवेट आर्मी के चीफ येवगेनी प्रिगोझिन को भी पुतिन का बड़ा प्रतिद्वंदी माना जाता था. लेकिन कुछ ही महीनों पहले एक विमान हादसे में प्रिगोझिन की भी मौत हो गई.

इन दोनों के अलावा पुतिन के एक और विरोधी उभर रहे थे, जिनका नाम बोरिस नादेझदीन है. लेकिन चुनाव आयोग ने उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में खड़ा होने से ही रोक दिया. 

इस चुनाव में पुतिन का मुकाबला तीन नेताओं- निकोलाई खारितोनोव, लियोनिद स्लत्स्की और व्लादिस्लाव दावानकोव से होगा. हालांकि, इन तीनों को डमी कैंडिडेट ही माना जा रहा है.

निकोलाई खारितोनोव, लियोनिद स्लत्स्की और व्लादिस्लाव दावानकोव.

पुतिन के सामने कौन-कौन?

- निकोलाई खारितोनोवः रूसी संसद के निचले सदन स्टेट ड्यूमा के सदस्य हैं. 75 साल के निकोलाई कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं. 2004 में भी निकोलाई ने पुतिन के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें 14 फीसदी से भी कम वोट मिले थे. सर्वे में अनुमान लगाया है कि इस बार निकोलाई को महज 4 फीसदी वोट मिल सकते हैं.

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- लियोनिद स्लत्स्कीः 56 साल के लियोनिद स्लत्स्की स्टेट ड्यूमा के सदस्य हैं. वो लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ रशिया के नेता हैं. स्लत्स्की भी पुतिन की तरह ही पश्चिम विरोधी हैं. 2018 में महिला पत्रकारों के एक समूह ने उनपर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. हालांकि, संसदीय आयोग ने उन्हें बरी कर दिया था. सर्वे में उन्हें 5 फीसदी वोट मिलने का अनुमान जताया गया है.

- व्लादिस्लाव दावानकोवः 40 साल के व्लादिस्लाव स्टेट ड्यूमा के डिप्टी चेयरमैन हैं. न्यू पीपुल पॉलिटिक पार्टी के नेता हैं. राष्ट्रपति पद के लिए वो सबसे युवा उम्मीदवार हैं. पुतिन की तुलना में उन्होंने खुद को ज्यादा उदार दिखाने की कोशिश की है. यूक्रेन का नाम लिए बिना उन्होंने कहा था कि वो शांति के पक्षधर हैं, लेकिन हमारी शर्तों के साथ. सर्वे के मुताबिक, उन्हें 5 फीसदी वोट मिलने की उम्मीद है.

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सबसे ताकतवर बन जाएंगे पुतिन!

रूस में अब तक सबसे ज्यादा लंबे समय तक सत्ता में सिर्फ जोसेफ स्टालिन रहे हैं. अगर पुतिन इस चुनाव में जीत जाते हैं तो 2030 तक इस पद पर बने रहेंगे. पुतिन 24 साल से सत्ता में हैं और 6 साल का ये कार्यकाल पूरा करने के साथ ही उन्हें 30 साल हो जाएंगे.

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उनसे पहले जोसेफ स्टालिन 29 साल तक रूस की सत्ता में रहे हैं. स्टालिन ने 1924 से 1953 तक रूस की सत्ता संभाली है. 

रूस में सबसे ताकतवर शख्स राष्ट्रपति ही होते हैं. और पुतिन इसमें खरे भी उतरते हैं. पुतिन का न सिर्फ वहां दबदबा है, बल्कि मीडिया से लेकर अपने विरोधियों तक पर उनका कंट्रोल है.

2036 तक राष्ट्रपति रह सकते हैं पुतिन?

राष्ट्रपति बनने से पहले पुतिन रूस के प्रधानमंत्री थे. 1999 में रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने पुतिन को प्रधानमंत्री नियुक्त किया. कुछ ही महीनों में येल्तसिन ने इस्तीफा दे दिया और फिर पुतिन कार्यवाहक राष्ट्रपति चुने गए.

26 मार्च 2000 को पुतिन ने अपना पहला राष्ट्रपति चुनाव जीता. मार्च 2004 में पुतिन दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए. उन्हें 70 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे. 

993 का रूसी संविधान कहता है कि कोई भी व्यक्ति लगातार दो कार्यकाल तक राष्ट्रपति बना नहीं रह सकता है. लिहाजा 2008 में पुतिन को पद छोड़ना पड़ा.

पुतिन ने दिमित्री मेदवेदेव को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और खुद प्रधानमंत्री बन गए. मेदवेदेव की सरकार में संविधान में संशोधन किए गए और तय किया कि राष्ट्रपति का कार्यकाल अब 4 साल की बजाय 6 साल का होगा.

चूंकि पुतिन प्रधानमंत्री रह चुके थे, इसलिए वो 2012 में तीसरी बार रूस के राष्ट्रपति चुने गए. मार्च 2018 में पुतिन चौथी बार राष्ट्रपति बने. 2018 के चुनाव में पुतिन को 75 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे. 

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जुलाई 2020 में पुतिन एक संविधान संशोधन लेकर आए. इससे उन्हें 2036 तक राष्ट्रपति बने रहने की ताकत मिल गई. पुराने कानून की जगह नए कानून ने ले ली, इसलिए पुतिन 2024 के बाद 2030 का राष्ट्रपति चुनाव भी लड़ सकते हैं. इस तरह पुतिन चाहें तो 2036 तक राष्ट्रपति बने रह सकते हैं.

ऐसे राजनीति में आए थे पुतिन

7 अक्टूबर 1952 को सोवियत संघ के लेनिनग्राड में व्लादिमीर व्लादिमीरोविच पुतिन और मारिया इवानोवना के घर व्लादिमीर पुतिन का जन्म हुआ. वो अपने माता-पिता की तीसरी संतान थे. उनके दो बड़े भाइयों की बचपन में ही बीमारी से मौत हो गई थी.

पुतिन के दादा स्पिरिडोन पुतिन सोवियत नेता व्लादिमीर लेनिन और जोसेफ स्टालिन के पर्सनल कुक थे. पुतिन के पिता सोवियत नेवी में तो उनकी मां फैक्ट्री में काम किया करती थीं. 

सितंबर 1960 से पुतिन ने अपने घर के पास के ही एक स्कूल से पढ़ाई शुरू की. उन्होंने सेंट पीटर्सबर्ग स्टेट यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की. 

1975 में पुतिन ने सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी KGB को जॉइन किया. 1980 के दशक में उन्हें जर्मनी के ड्रेसडेन में एजेंट के तौर पर तैनात किया गया. ये विदेश में उनकी पहली तैनाती थी.

करीब 16 सालों तक जासूस का काम करने के बाद पुतिन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और राजनीति में आ गए. 

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पुतिन 24 साल से रूस की सत्ता पर काबिज हैं. पुतिन ने अपने शासन में विपक्ष और मीडिया पर कंट्रोल किया हुआ है. 1999 में भी जब येल्तसिन ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया तो कई लोग इस फैसले के खिलाफ थे, लेकिन पुतिन को कोई नहीं रोक सका.

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