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Same Sex Marriage पर फैसले से पहले पढ़ें- समलैंगिक शादियों के अधिकार के पक्ष में क्या तर्क, विरोध में सरकार की दलीलें क्या?

Same Sex Marriage Verdict: समलैंगिक संबंध अपराध के दायरे से बाहर होने के पांच साल बाद अब समलैंगिक विवाह पर बहस चल रही है. सुप्रीम कोर्ट में आज इसे लेकर फैसला आना है. सुप्रीम कोर्ट फैसला करेगी कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जाए या नहीं?

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समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार 10 दिन तक सुनवाई हुई थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार 10 दिन तक सुनवाई हुई थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Same Sex Marriage Verdict: पुरुष से पुरुष और स्त्री से स्त्री की शादी को कानूनी मान्यता दी जाए या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट का आज फैसला आना है. पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने लगातार 10 दिन तक सुनवाई के बाद 11 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था.

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चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली इस बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस. रविंद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल थे.

सुप्रीम कोर्ट में 18 अप्रैल से इस मामले पर सुनवाई शुरू हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान साफ कर दिया था कि वो इस उम्मीद से कोई संवैधानिक घोषणा नहीं कर सकती कि संसद इस पर कैसी प्रतिक्रिया देगी.

वहीं, सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं का विरोध किया था. केंद्र ने ये भी दलील दी थी कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने या न देने का अधिकार संसद का है, न कि अदालत का.

क्या है पूरा मामला?

- पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से जुड़ी दिल्ली हाईकोर्ट समेत अलग-अलग अदालतों में दायर याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर करने की मांग पर केंद्र से जवाब मांगा था.

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- इससे पहले 25 नवंबर को ही सुप्रीम कोर्ट में भी दो अलग-अलग समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस भेजा था. 

- अलग-अलग अदालतों में दाखिल याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 6 जनवरी को अपने पास ट्रांसफर कर लिया था.

समलैंगिकों की क्या हैं मांगें?

- समलैंगिकों की ओर से दाखिल इन याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट समेत शादी से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों को चुनौती देते हुए समलैंगिक विवाह को अनुमति देने की मांग की गई थी.

- समलैंगिकों ने ये भी मांग की थी कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार LGBTQ+ (लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) समुदाय को उनके मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में दिया जाए.

- एक याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग की गई थी, ताकि किसी व्यक्ति के साथ उसके सेक्सुअल ओरिएंटेशन की वजह से भेदभाव न किया जाए.

केंद्र क्यों है समलैंगिक विवाह के खिलाफ?

- केंद्र सरकार समलैंगिक विवाह के खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर इन याचिकाओं को खारिज करने की मांग की थी.

- केंद्र ने कहा था कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया हो, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि याचिकाकर्ता समलैंगिक विवाह के लिए मौलिक अधिकार का दावा करें.

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- हलफनामे में केंद्र ने दलील दी कि समलैंगिक विवाह को इसलिए मान्यता नहीं दी जा सकती, क्योंकि कानून में पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है. उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं. समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग-अलग माना जा सकेगा?

- कोर्ट में केंद्र ने कहा था, समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से गोद लेने, तलाक, भरण-पोषण, विरासत आदि से संबंधित मुद्दों में बहुत सारी जटिलताएं पैदा होंगी. इन मामलों से संबंधित सभी वैधानिक प्रावधान पुरुष और महिला के बीच विवाह पर आधारित हैं. 

सुनवाई के दौरान केंद्र ने रखी थीं ये दलीलें

- सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था, 'प्यार का अधिकार, साथ रहने का अधिकार, अपना पार्टनर चुनने का अधिकार, अपनी सेक्सुअल ओरिएंटेशन चुनने का अधिकार' ये सभी मौलिक अधिकार हैं. लेकिन उस रिश्ते को शादी या किसी और नाम से मान्यता देने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है.

- मेहता ने कहा था कि सभी तरह के सामाजिक संबंधों को शादी जैसी मान्यता देने का मौलिक अधिकार नहीं है. सभी तरह के निजी संबंधों को मान्यता देने का सरकार का कोई दायित्व नहीं है. समाज में बड़ी संख्या में रिश्ते हैं और सभी को मान्यता देने की जरूरत नहीं है.

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- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील रखते हुए कहा था, विशेष वर्ग में तलाक का कानून भी सभी लोगों के लिए एक बन सकता है? ट्रांस मैरिज में पत्नी कौन होगा? गे मेरिज में कौन पत्नी होगा? इसका दूरगामी प्रभाव होगा. मौजूदा कानून में पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है, लेकिन समलैंगिक शादियों में क्या होगा?

- मेहता ने दहेज हत्या या घरेलू हिंसा के मामले में गिरफ्तारी का मुद्दा उठाते हुए कहा था, 'अगर कानून में पति या पत्नी की जगह सिर्फ स्पाउस या पर्सन कर दिया जाए, तो महिलाओं को सूर्यास्त के बाद गिरफ्तार न करने के प्रावधान कैसे लागू होंगे?' 

- एक और दलील देते हुए मेहता ने कहा था कि अगर गोद लिए बच्चे की कस्टडी एक मां के पास जाती है, तो देखना होगा कि मां कौन है. मां वो होगी जिसे हम समझते हैं और विधायिका ने भी वही समझा है. लेकिन इन मामलों में ये कैसे तय होगा? 

- तीन मई को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि वो कैबिनेट सचिव की अगुवाई में एक कमेटी का गठन करेगी. ये कमेटी इस बात की जांच करेगी कि समलैंगिक जोड़ों की शादी को वैध किए बिना कौन-कौन से प्रशासनिक कदम उठाए जा सकते हैं.

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समलैंगिकों की ओर से क्या रखी गई थीं दलीलें?

- समलैंगिकों ने दलील रखी कि जो अधिकार हेट्रोसेक्सुअल (विपरित लिंग) के हैं, वही होमोसेक्सुअल (समलैंगिक) के भी हैं. उनकी शादी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड की जानी चाहिए.

- दलील दी गई कि स्पेशल मैरिज एक्ट में शादी की कानूनी उम्र में बदलाव किया जाए. यहां पुरुष की पुरुष से शादी होती है तो उम्र 21 साल और स्त्री की स्त्री से शादी होती है तो 18 साल उम्र तय की जा सकती है.

- याचिकाकर्ताओं की ओर से ये भी मांग की गई थी कि स्पेशल मैरिज एक्ट में 'पुरुष और महिला की शादी' की बात कही गई है. इसमें 'पुरुष' और 'महिला' की जगह 'व्यक्ति' लिखा जाना चाहिए. स्पेशल मैरिज एक्ट को 'जेंडर न्यूट्रल' बनाया जाए. 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या टिप्पणियां की थीं?

- सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम टिप्पणियां की थीं. कोर्ट ने कहा था कि सरकार समलैंगिकों के साथ रहने को 'शादी' कहे या न कहे, पर कुछ न कुछ 'लेबल' तो होना जरूरी है.

- कोर्ट ने कहा था, सरकार को इस बात पर भी सोचना चाहिए कि क्या बिना कानूनी मान्यता दिए समलैंगिक विवाह को किसी स्कीम्स का लाभ दिया जा सकता है या नहीं? 

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- बेंच ने कहा था कि समलैंगिक संबंध में किसी एक पार्टनर के बच्चा गोद लेने में कोई रोक नहीं है. ऐसी स्थिति में अगर बच्चा स्कूल जाता है तो क्या ऐसी स्थिति में सरकार ये नहीं कर सकती कि उस बच्चे को सिंगल पैरेंट चाइल्ड के तौर पर ट्रीट किया जाए. कम से कम उस बच्चे को तो लाभ मिलना चाहिए. 

समलैंगिंक संबंध अपराध नहीं

- 6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिकता अपराध नहीं है. उस समय कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिकों के वही मूल अधिकार हैं, जो किसी सामान्य नागरिक के हैं. सबको सम्मान से जीने का अधिकार हैं.  

- सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को निरस्त कर दिया था. जिसके बाद आपसी सहमति से दो समलैंगिकों के बीच बने संबंधों को अपराध नहीं माना जाता. 

- फैसला सुनाते समय तब के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए. समलैंगिक लोगों को सम्मान से जीने का अधिकार है. समलैंगिकता अपराध नहीं है और इसे लेकर लोगों को सोच बदलनी चाहिए.

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