स्कॉटलैंड की संसद में हाल ही में हिंदूफोबिया का मुद्दा उठा. स्कॉटिश सांसद एश रेगन ने मामले पर बात करते हुए कहा कि अगर मंदिरों में तोड़फोड़ हो, या लोगों से भेदभाव हो, तो इसका मतलब ये नहीं कि हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं, बल्कि ये देश के मूल्यों के साथ भी खिलवाड़ है. कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका में हाल में हिंदू आबाद के लिए बढ़ती अस्वीकार्यता के बीच ये नया कदम है. इससे पहले एंटी सेमिटिज्म यानी यहूदियों से नफरत और इस्लामोफोबिया जैसे टर्म्स पर चर्चा होती रही.
स्कॉटलैंड की कुलआबादी में लगभग 0.3 प्रतिशत हिंदू हैं. इतनी छोटी जनसंख्या भी स्थानीय लोगों की कथित नफरत से बची हुई नहीं. हाल में संसद में उठा मुद्दा एक खास रिपोर्ट- हिंदूफोबिया इन स्कॉटलैंड पर आधारित है, जो गांधियन पीस सोसायटी ने तैयार की थी. इसी साल जनवरी के आखिर में इसे रिलीज किया गया. ये पहली बार है कि जब इस देश में हिंदुओं के खिलाफ भेदभाव पर खुलकर बात हुई. इसी रिपोर्ट को लेते हुए संसद सदस्य हिंदुओं की सुरक्षा के लिए नियम बनाने की बात कर रहे हैं. साथ ही हिंदूफोबिया की औपचारिक रूप से निंदा की गई, जो पूरे यूरोपियन यूनियन में पहली बार हुआ.
क्या कहती है रिपोर्ट
- इसके मुताबिक, साल 2019 से अगले तीन साल में हिंदुओं से जुड़े हेट क्राइम्स 9 से बढ़कर 14 हो गए. ये 56% की बढ़त है.
- साल 2020 और इसके अगले वर्ष भी मंदिरों में तोड़फोड़ और आगजनी जैसे घटनाएं हुईं.
- स्टडी में पाया गया कि 90 फीसदी से ज्यादा हिंदू कर्मचारी धार्मिक कपड़े पहनने या पहचान जाहिर करने से बचते हैं.
- लगभग 38% की धार्मिक छुट्टियों की मांगों को प्राइवेट और सरकारी दफ्तरों में रिजेक्ट कर दिया गया.
- स्टडी में एक सर्वे का जिक्र था, जिसके अनुसार 16 फीसदी स्कॉटिश लोगों ने माना कि वे अपने करीबी के किसी हिंदू से शादी को पसंद नहीं करेंगे. साल 2010 में ये प्रतिशत काफी कम था. तुलना करें ये तो ये नापसंदगी यहूदियों और मुस्लिमों से काफी ज्यादा है.
कितनी है वहां हिंदू आबादी
वहां 54 लाख आबादी में 0.3 प्रतिशत हिंदू हैं. माइनोरिटी में ये काफी कम प्रतिशत है. इससे कहीं ज्यादा दूसरे धर्म जैसे यहूदी और मुस्लिम रहते हैं. स्कॉटलैंड में बसा ये समुदाय कई अलग तरह के प्रोफेशन में है लेकिन राजनीति में उतना स्पेस नहीं पा सका.
क्या है हिंदूफोबिया
फोबिया यानी किसी खास चीज या सोच के लिए अतिरिक्त डर. धर्म की बात करें तो किसी धर्म विशेष से बेवजह का खतरा महसूस करना भी फोबिया बन जाता है. बीते कुछ समय से विदेश में रहकर पढ़ते या काम करते हिंदुओं पर हिंसा की खबरें आ रही हैं. उनके कपड़ों या धार्मिक सोच पर कमेंट हो रही है. यहां तक कि उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए कहा जा रहा है. इस नफरत को नाम दिया गया, हिंदूफोबिया.
इससे पहले भी कई धर्मों के साथ ऐसा हुआ
- सबसे पहले यहूदियों से नफरत दिखाई दी. इसे एंटी-सेमिटिज्म नाम मिला.
- इस्लामोफोबिया शब्द 9/11 के बाद चलन में आया. यह मुस्लिम समुदाय के लिए डर, नफरत और भेदभाव को दिखाता है.
- क्रिश्चियन्स को भी धर्म की वजह से भेदभाव झेलना पड़ा, जैसे मुस्लिम बहुल अफ्रीकी देशों में. या फिर खुद हमारे देश में ऐसी कुछ घटनाएं हुईं.
- हिंदूफोबिया नया टर्म है, जो अमेरिका या ब्रिटेन में भेदभाव पर हुए अध्ययनों के बाद से सुनाई देने लगा.
क्या कहते हैं अध्ययन
साल 2023 की शुरुआत में अमेरिकी रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन- नेटवर्क कांटेजियन रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनसीआरआई) ने दावा किया कि बीते समय में तेजी से एंटी-हिंदू नैरेटिव तैयार हुआ और हिंदुओं पर हमले में थोड़ी-बहुत नहीं, लगभग हजार गुना तेजी आई, खासकर अमेरिका में. इंस्टीट्यूट ने यह भी माना कि इन घटनाओं में किसी एक नस्ल या तबके का हाथ नहीं, बल्कि ये मिल-जुलकर किया जा रहा हेट-क्राइम है. इसे मुस्लिम और खुद को सबसे बेहतर मानने वाले श्वेत नस्ल के लोग, दोनों ही कर रहे हैं.
क्या हो सकती है वजह
लंदन स्थित थिंक टैंक- हैनरी जैक्सन सोसायटी (एचजेएस) ने इसकी कई वजहें दीं. श्वेत लोगों के मन में हिंदुओं के लिए गुस्सा भर रहा है तो इसकी वजह है भारतीय मूल के हिंदुओं का लगातार आगे बढ़ना. सिलिकॉन वैली में हिंदू समुदाय काफी ऊंचे पदों पर है. वैली के लगभग 15 फीसदी स्टार्टअप के मालिक भारतीय और उसमें भी हिंदू हैं. यहां तक कि अमेरिकी राजनीति और मेडिकल जैसी फील्ड में भी ये लोग दबदबा बना चुके हैं. ऐसे में खुद को सुप्रीम मानती श्वेत नस्ल पर प्रेशर बन चुका है कि वो खुद को आगे लाएं. इसी गुस्से और चिड़चिड़ाहट में हेट-क्राइम की शुरुआत हो गई.
चेहरे-मोहरे में समानता भी एक कारण
हिंदुओं पर हमले की एक वजह ये भी है कि उनका चेहरा-मोहरा पाकिस्तानियों से मिलता है. 9/11 हमले के बाद से अमेरिका में मुस्लिमों को लेकर गुस्सा बढ़ता गया. वे मानने लगे कि कहीं न कहीं इसके जिम्मेदार इसी मजहब के लोग हैं. ऐसे में वे हर उस चेहरे को शक और नफरत से देखने लगे, जो एशियाई और खासकर पाकिस्तानी मूल का हो. भारतीय मूल के लोग भी इसी धोखे में हेट क्राइम का शिकार होने लगे.
इसके अलावा, जब भी कोई धर्म या समुदाय अल्पसंख्यक होता है और उसके रीति-रिवाज मेजोरिटी से अलग होते हैं, तो कई बार गलतफहमियां पनप जाती हैं. ऐसे में भी उस खास समुदाय के साथ भेदभाव दिखने लगता है, जो आगे चलकर हिंसा में बदल जाता है.