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कहते हैं- जब कंगाली दरवाजे से अंदर आती है तो सारी अकड़ खिड़की के रास्ते बाहर निकल जाती है. कुछ ऐसा ही पाकिस्तान के साथ हो रहा है. अब जब पाकिस्तान बुरी तरह आर्थिक तंगी से जूझ रहा है, तो ऐसे में उसने भारत से बातचीत की पहल शुरू की है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत से बातचीत की पेशकश की है. शरीफ ने कहा, 'हम सबसे बात करने के लिए तैयार हैं. यहां तक कि अपने पड़ोसी के साथ भी. बशर्ते कि पड़ोसी मेज पर गंभीर मुद्दों पर बात करने के लिए गंभीर हो. क्योंकि जंग अब कोई समाधान नहीं है.'
प्रधानमंत्री शरीफ ने ये भी कहा कि जब तक अनसुलझे मुद्दों का समाधान नहीं किया जाता, तब तक हम दोनों 'सामान्य पड़ोसी' नहीं बन सकते.
शहबाज शरीफ का ये बयान ऐसे समय आया है जब पाकिस्तान लगभग डेढ़ साल से राजनीतिक और आर्थिक संकट में फंसा हुआ है. शहबाज शरीफ इससे पहले भी भारत से बातचीत की पेशकश कर चुके हैं.
क्या भारत मानेगा शरीफ की बात?
फिलहाल, इस बात की कोई गुंजाइश नहीं है. इसी साल जून में दिल्ली में एक कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि आतंकवाद को किसी भी हाल में मंजूरी नहीं दे सकते. हम नहीं चाहते कि पाकिस्तान के साथ बातचीत का आधार आतंकवाद हो.
जयशंकर ने कहा था, जब तक सीमा पार आतंकवाद खत्म नहीं हो जाता, तब तक पाकिस्तान के साथ सामान्य संबंध संभव नहीं हैं.
इससे पहले मई में जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो एससीओ के विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होने भारत आए थे, तो जयशंकर ने उन्हें आतंकी इंडस्ट्री का प्रवक्ता बताया था. जयशंकर ने तब भी कहा था, आतंकवाद के पीड़ित और साजिशकर्ता एक साथ बैठकर बातचीत नहीं कर सकते.
इतना ही नहीं, फरवरी में जब पाकिस्तान को आर्थिक संकट से उबारने में भारत की ओर से मदद किए जाने के सवाल पर जयशंकर ने कहा था, 'मैं जानना चाहता हूं कि मेरे लोग इस बारे में क्या महसूस करते हैं. और मुझे लगता है कि आप इसका जवाब जानते हैं.'
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शरीफ क्यों कर रहे बातचीत की पेशकश?
दरअसल, पाकिस्तान को अब समझ आ गया है कि बिना भारत की मदद के उसका भला नहीं हो सकता.
पाकिस्तानी अखबार 'डॉन' में जून में एक आर्टिकल छपा था. इस आर्टिकल में आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए भारत से अच्छे रिश्ते बनाने पर जोर दिया गया था. इसमें ये भी सवाल उठाया गया था कि जब दो देश तमाम मतभेदों के बावजूद कारोबार खत्म या कम नहीं करते तो भारत और पाकिस्तान ऐसा क्यों करते हैं?
असल में, अगस्त 2019 में जब भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को खत्म कर दिया था तो पाकिस्तान ने भारत के साथ कारोबार को सस्पेंड कर दिया था. जब इससे पाकिस्तान की हालत बिगड़ी तो दो साल बाद फिर इसे बहाल कर दिया गया. हालांकि, अब भी पाकिस्तान, भारत के साथ सीमित कारोबार ही कर रहा है.
'डॉन' ने लिखा था, 'अगर भारत के साथ कारोबार निलंबित करने के पाकिस्तान के फैसले का हिसाब-किताब लगाया जाए तो पता चलता है कि इससे सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों को हुआ है. शायद अब समय आ गया है कि हमारे विदेश नीति के जानकार अपने रुख पर फिर से सोचें और कारोबार को बाकी विवादों से अलग रखें.'
क्यों... क्यों... क्यों?
डॉन में छपे इस लेख में लिखा था, खाने-पीने से लेकर दवाइयों तक... पाकिस्तान, भारत से काफी कुछ आयात कर सकता है, वो भी दुनिया के बाकी किसी भी देश की तुलना में काफी सस्ती कीमत पर. फिर भी हम ऐसा नहीं कर रहे हैं. महंगाई हमारे लोगों को कुचल रही है, इसलिए फिर से 'क्यों' पर सोचा जाना चाहिए.
इसमें लिखा था कि कारोबार को रोके बिना भी बाकी मतभेदों को जारी रखा जा सकता है. क्योंकि पहले भी ऐसा हो चुका है.
डॉन लिखता है, जो सामान बाजार में उपलब्ध विकल्पों से सस्ते में खरीदा जा सकता है, उसे आने देना चाहिए, ताकि महंगाई से राहत मिल सके. कारोबार और जियो-पॉलिटिक्स को अलग-अलग रखना चाहिए. क्योंकि इससे हमारे लोगों को कोई मदद नहीं मिलती. हमारी सरकार और राजनेताओं, दोनों को इस पर सहमत होने की जरूरत है.
पाकिस्तान को भारत की कितनी जरूरत?
पाकिस्तान को अभी सबसे ज्यादा मदद चीन से मिल रही है. चीन ने उसे कर्ज भी दिया है. चीन के अलावा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ ने भी पाकिस्तान को तीन अरब डॉलर का कर्ज देने वाला है.
लेकिन इन सबसे पाकिस्तान के हालात बहुत ज्यादा सुधरने वाले नहीं हैं. अपने यहां हालात काबू में करने के लिए उसे भारत की ही जरूरत है. वो इसलिए क्योंकि महंगाई को काबू में करने के लिए उसे सस्ते सामान की जरूरत है, जो भारत से मिल सकता है.
हालांकि, इसके बावजूद पाकिस्तान की अकड़ खत्म नहीं होती है. हाल ही में पाकिस्तान की विदेश राज्य मंत्री हिना रब्बानी खार ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के साथ खराब संबंधों की वजह से कारोबार की कोई संभावना नजर नहीं आती.
अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो भारतीय सामान पर पाकिस्तान काफी हद तक निर्भर है. दोनों देशों के बीच जो कारोबार होता है, उसमें से 96 फीसदी से ज्यादा सामान भारत, पाकिस्तान को बेचता है. जबकि, पाकिस्तान से भारत सिर्फ 4 फीसदी से भी कम सामान खरीदता है. ये दिखाता है कि भारतीय सामान पर पाकिस्तान किस हद तक निर्भर है.
कॉमर्स मिनिस्ट्री के आंकड़ों के मुताबिक, 2022-23 में दोनों देशों के बीच 5,178 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था. इसमें से 5 हजार करोड़ से ज्यादा का सामान भारत ने निर्यात किया था. जबकि, पाकिस्तान से महज 157 करोड़ रुपये का आयात हुआ था.
पाकिस्तान, भारत से सब्जी, फल, आटा, दाल, दूध, कॉफी, चाय, शक्कर, नमक, दवा, खाद, कपड़ा, फर्नीचर, खिलौने जैसे सामान खरीदता है. जबकि भारत, पाकिस्तान से बहुत ही कम मात्रा में फल, सब्जी, दवा, केमिकल, एल्युमिनियम जैसे सामान खरीदता है.
इसलिए भी जरूरी है भारत
पाकिस्तान को वैसे तो आतंकियों का पनाहगार अक्सर कहा जाता रहा है. हालांकि, पाकिस्तान खुद को आतंकवाद का पीड़ित बताकर इससे बचने की कोशिश भी करता रहा है. लेकिन हालिया कुछ सालों में पाकिस्तान की छवि को बहुत नुकसान पहुंचा है. और उसकी वजह भारत ही है.
भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान को जमकर लताड़ लगाई है. प्रधानमंत्री मोदी से लेकर विदेश मंत्री जयशंकर तक, खुले मंच से पाकिस्तान को आतंकवाद की फैक्ट्री बताते रहे हैं.
यही वजह है कि पाकिस्तान अब दुनिया में अलग-थलग सा पड़ गया है. उसका साथ सिर्फ चीन देता है, वो भी अपने मतलब के लिए.
शायद इसीलिए जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो एससीओ मीटिंग में शामिल होने के लिए भारत आए तो उन्होंने कहा कि आतंकवाद को 'डिप्लोमैटिक टूल' की तरह इस्तेमाल करने से बचना चाहिए.
भारत ने कब-कब की मदद?
भारत और पाकिस्तान कई बार एक-दूसरे की आर्थिक तौर पर मदद कर चुके हैं. साल 2010 में जब पाकिस्तान में बाढ़ आई थी, तो भारत ने 2.5 करोड़ डॉलर की मदद की थी. हालांकि, ये मदद भारत ने सीधे तौर पर नहीं, बल्कि संयुक्त राष्ट्र के जरिए पाकिस्तान तक पहुंचाई थी.
इससे पहले 2005 में भी जब भूकंप के कारण तबाही मची थी, तब भारत ने आर्थिक मदद की थी. इसी तरह साल 2001 में जब गुजरात में आए भूकंप के बाद पाकिस्तान ने मदद की थी.
हालांकि, पाकिस्तान में जब पिछले साल बाढ़ आई थी तो भारत की ओर से कोई मदद नहीं की गई थी. तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुख जताया था. इस पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने उनका शुक्रिया अदा किया था.
तब पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने एक इंटरव्यू में कहा था कि न तो भारत से मदद मांगी गई है और न ही उनकी तरफ से मदद की पेशकश की गई है.
कैसे रहे हैं दोनों देशों के रिश्ते?
1947 में दोनों देशों के आजाद होने के बाद से ही रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं. दोनों देश अब तक तीन युद्ध लड़ चुके हैं. इनमें से दो युद्ध कश्मीर के लिए हुए हैं.
भारत और पाकिस्तान के रिश्ते काफी तल्ख भरे रहे हैं. आखिरी बार 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए पाकिस्तान के तब के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भारत आए थे. उनके बाद से किसी भी पाकिस्तानी नेता ने भारत का दौरा नहीं किया है.
हालांकि, इसके बाद 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नवाज शरीफ की नातिन मेहरुन्निसा की शादी में शामिल होने पाकिस्तान पहुंचे थे. उसी दिन नवाज शरीफ का जन्मदिन भी था. प्रधानमंत्री मोदी का ये दौरा अचानक हुआ था.
2016 में उरी हमला और फिर 2019 में पुलवामा हमले के बाद रिश्ते और बिगड़ गए. पुलवामा हमले के बाद दोनों देशों के बीच जंग जैसे हालात बन गए थे. अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने दावा किया था कि इस हमले के बाद भारत और पाकिस्तान परमाणु युद्ध के करीब आ गए थे.
कितना भरोसेमंद है पाकिस्तान?
भारत साफ कर चुका है कि बातचीत की टेबल पर तभी आएंगे जब आतंकवाद पर भी बात हो. लेकिन पाकिस्तान इस बात को मानता नहीं है. उल्टा वो खुद को आतंकवाद से पीड़ित बताता रहता है.
लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी पाकिस्तान की सरजमीं पर खुलेआम घूम रहे हैं. इनमें हाफिज सईद, मसूद अजहर, जकी-उर-रहमान लखवी, जफर इकबाल और अब्दुल रहमान मक्की जैसे आतंकी शामिल हैं.
इतना ही नहीं, पाकिस्तान लाख इस बात को मना करे लेकिन उसकी जमीन से भारत के खिलाफ आतंकियों को तैयार किया जाता है. आए दिन पाकिस्तानी आतंकी सीमा पार कर घुसपैठ करने की कोशिश करते हैं. कई कर भी लेते हैं.
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में पाकिस्तानी आतंकियों ने 34 बार और 2022 में 14 बार घुसपैठ की कोशिश की.