जापान में अकेले रहने का चलन इतना बढ़ चुका कि अब वहां फैमिली स्ट्रक्चर खत्म हो रहा है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन एंड सोशल सिक्योरिटी का डेटा कहता है कि साल 2040 तक देश के 40 प्रतिशत से ज्यादा घरों में सिंगल लोग होंगे, जो शादी की औसत उम्र पार कर चुके होंगे. परिवार के नाम पर उनके पास बूढ़े माता-पिता होंगे. ऐसे ही अकेले लोगों को टारगेट करते हुए जापान में रेंटल-फैमिली बिजनेस चल पड़ा. इसमें भाड़े पर परिवार के सदस्य मिलते हैं.
क्यों हो रहे अकेले
जापानियों में काम को लेकर एक तरह का पागलपन दिखता है. यहां तक कि ओवरवर्क के कारण बहुत सी मौतें भी होने लगीं. इसके बाद भी जापान युवा से लेकर बूढ़े तक लगातार काम किए जा रहे हैं. वे न तो परिवार को वक्त देते हैं, न ही उन्हें परिवार बनाने की फुर्सत है. यही वजह है कि वहां फैमिली खत्म हो रही है.
बड़ी आबादी हो चुकी अकेली
ऐसे भी लोग हैं, जो दुनिया से इतना कट जाते हैं कि फिर चाहने पर भी वे शादी नहीं कर पाते. जापान के कैबिनेट ऑफिस ने इसी साल ऐसे सोशल लोनर्स का आंकड़ा दिया. सरकार मानती है कि उसके यहां अकेले रहते हुए अकेले पड़ चुके लोग तेजी से बढ़े. लगभग डेढ़ मिलियन लोग घरों में लगभग बंद होकर रह रहे हैं. वे ऑफिस तो जाते हैं, लेकिन इसके बाद कोई सोशल एक्टिविटी नहीं होती.
सिंगल लोगों से भेदभाव
देश में ऐसे लोग बढ़ तो रहे हैं, लेकिन वहां इसे अच्छी नजर से नहीं देखा जाता. अगर कोई अपना शहर छोड़कर दूसरी जगह नौकरी करने जाए तो जापान में भी उसे किराए पर घर नहीं मिलता. यहां तक कि ऑफिस पार्टियों में न्यौता नहीं दिया जाता. ऐसे लोगों की जरूरत पूरी करने के लिए किराए पर फैमिली का बिजनेस चला.
कैटेलॉग देखकर चुनता है सदस्य
अकेला रहता शख्स हर घंटे के हिसाब से परिवार का सदस्य भाड़े पर ला सकता है. यहां तक कि वो ये भी छांट सकता है कि आने वाला मेंबर किस रंग, कैसे तौर-तरीकों वाला और कैसे कपड़े पहने हुए हो. ऐसा इसलिए कि फैमिली मेंबर परिवार की तरह ही दिखे, बाहरी आदमी नहीं.
इसकी शुरुआत साल 1987 में टोक्यो में जापानीज एफिशिएंसी कॉर्पोरेशन ने की. तब इस शहर में बाहर से आए लोग रहते थे, जो परिवार से दूर थे. उन्हें फैमिली वाली फीलिंग देने के लिए खुद कॉर्पोरेट्स ने ये इरादा किया और इस तरह से कंपनी खड़ी हो गई.
इतना होता है मेंबरों का किराया
अलग-अलग कंपनियां इसके लिए अलग चार्ज करती हैं, लेकिन आमतौर पर ये 20 हजार येन प्रति मेंबर होता है. यानी लगभग 2 सौ डॉलर में एक से कुछ घंटों के मां, पिता, भाई, बहन या पति-पत्नी किराए पर मिल जाएंगे. कई बार लोग भाड़े के परिवार को छुट्टी पर भी साथ ले जाते हैं. ये आमतौर पर खूब कमाने वाले सिंगल लोग होते हैं, जो समझना चाहते हैं कि शादी करना उन्हें रास आएगा या नहीं.
कई बार इमोशनल कनेक्ट भी बन जाता है
किराए पर आने वाले सदस्य एक्टर्स होते हैं, जिन्हें जो भी रोल दिया, वे बखूबी निभाते हैं. पैसे लेकर वे रिश्तेदार बनते हैं और घंटे या दिन बीतने पर चले जाते हैं. उनके मन में क्लाइंट के लिए कोई इमोशन नहीं होता. लेकिन कई बार क्लाइंट्स किराए के इस सदस्य से जुड़ जाते हैं. वे उनका पीछा करने लगते हैं, या उनसे मिलने पहुंच जाते हैं.
होता है बैकग्राउंड चेक
रेंटल सर्विस चलाने वाली कंपनियां अपने क्लाउंट का बैकग्राउंड चेक करती हैं. देखती हैं कि वो कितना भरोसेमंद है, तभी अपने एक्टर्स को उसके साथ भेजती हैं. एक्टर अपने क्लाइंट से ये भी पूछ सकते हैं कि वो कौन से खास पल को सबसे ज्यादा याद करते हैं ताकि सर्विस के दौरान उसी मैमोरी को जिया जा सके. इससे रिश्ता असल लगता है.
रोमांटिक रिश्ते भी किराए पर मिलने लगे
स्पाउस यानी पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका वाले रिश्तों में कंपनियां काफी अलर्ट रहती हैं. क्लाइंट से उसकी पसंद-नापसंद पता की जाती है. उसे एक्टर्स का कैटेलॉग भेजा जाता है जिससे वो अपना मनपसंद साथी चुन सके. नाम फाइनल होने के बाद ईमेल या फोन पर दोनों बात करते हैं. इसके बाद ही एक्टर को क्लाइंट से मिलवाया जाता है.
अब इस बिजनेस में भी स्पेशलाइजेशन
कई कंपनियां रेंट पर बहनें या भाई ही प्रोवाइड करती हैं. ये आमतौर पर कई दिनों या हफ्तों के लिए भी क्लाइंट के साथ रहते हैं. इसमें फीस के अलावा खाने-पीने या आने-जाने का पूरा खर्च क्लाइंट ही देता है. या बूढ़े लोगों को युवा बच्चे दिलाए जाते हैं ताकि वे परिवार का सुख दोबारा जी सकें.
कितनी बड़ी है इंडस्ट्री
इसका टर्नओवर कितना होता है, ये डेटा कहीं भी उपलब्ध नहीं. अक्सर क्लाइंट और उन्हें सर्विस देने वाले एक्टर भी चाहते हैं कि उनका काम सीक्रेट रहे. इससे कंपनियां अपने एक्टर्स के नाम और उनसे हो रहा मुनाफा भी नहीं बतातीं. साल 2017 में फैमिली रोमांस नाम की कंपनी ने बिजनेस इनसाइडर से बातचीत में कहा था कि उनके यहां 2 हजार के लगभग एक्टर्स हैं, जो परिवार के हर सदस्य का रोल प्ले करते हैं. इसके अलावा भी कई कंपनियां हैं, जो छोटे-बड़े स्तर पर ये काम कर रही हैं.