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क्या दक्षिण कोरियाई लोगों में बढ़ रही है नॉर्थ कोरिया को लेकर नरमी, क्यों एंटी-स्टेट गतिविधियों के हवाले से लगा था मार्शल लॉ?

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने चौंकाने वाला फैसला करते हुए देश में मार्शल लॉ की घोषणा की और फिर कुछ ही घंटों में इसे वापस भी ले लिया. राष्ट्रपति यून सुक-योल की दलील थी कि नॉर्थ कोरिया की तरफ झुकाव रखने वाली देशविरोधी ताकतों को कमजोर करने के लिए ये कदम जरूरी है. इस देश में उत्तर कोरिया से सहानुभूति एक किस्म का अपराध है. अगर कोई इस तरह के संकेत दे तो खुफिया एजेंसियां उसपर नजर रखती हैं.

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दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति यून सुक-योल के मुताबिक उनके यहां राष्ट्रविरोधी ताकतें बढ़ रही हैं. (Photo- AP)
दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति यून सुक-योल के मुताबिक उनके यहां राष्ट्रविरोधी ताकतें बढ़ रही हैं. (Photo- AP)

मंगलवार से बुधवार के बीच दक्षिण कोरिया में एकाएक बहुत कुछ हो गया. वहां के राष्ट्रपति यून सुक-योल ने मार्शल लॉ का एलान कर दिया, और संसद पर आर्मी की पहरेदारी शुरू करवा दी. हालांकि बाकी पार्टियों समेत उनकी खुद की कैबिनेट इस फैसले से नाराज हो गई. आनन-फानन वोटिंग हुई और दबाव में आए राष्ट्रपति को फैसला पलटना पड़ा. लेकिन ऐसा क्या हुआ जो देश में मार्शल लॉ लगाने की नौबत आ गई? किन एंटी-नेशन ताकतों के पनपने की बात राष्ट्रपति कर रहे थे?

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यून ने देश को संबोधित करते हुए कहा कि वे देश विरोधी ताकतों को कुचलने के लिए मार्शल लॉ का एलान करते हैं. इसका मतलब ये था कि दक्षिण कोरिया अस्थाई तौर पर सेना के कंट्रोल में चला गया. साथ ही इसके तहत किसी भी राजनैतिक गतिविधि और यहां तक कि मीडिया पर भी आर्मी कंट्रोल हो गया. इस बीच, विपक्षी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ने एक फैसले के खिलाफ मतदान की बात की और आन की आन में हजारों लोगों समेत सांसद भी नेशनल असेंबली पहुंच गए. विधेयक के खिलाफ वोटिंग हुई और फैसला बदलना पड़ गया. 

आखिरी बार इस देश में साल 1979 में मार्शल लॉ लगा था, जब सैन्य तानाशाह पार्क चुंग-ही की हत्या हुई थी. अस्सी के दशक में यहां डेमोक्रेसी आई और फिर कभी सेना ने कमान नहीं संभाली. इस बार राष्ट्रपति ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि विपक्ष में उत्तर कोरिया को लेकर ज्यादा ही नरमी दिख रही है, जो कि खतरनाक है. देश-विरोधी सेंटिमेंट्स से लोगों को बचाने के लिए कथित तौर पर उन्होंने ये फैसला किया. लेकिन क्या दक्षिण कोरिया के नेता या लोग उत्तर कोरिया से संवेदना रखें तो ये इतनी बड़ी बात है?

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south korea martial law reasons and history of conflict with north korea photo AP

दोनों देशों के बीच तनाव का हिसाब-किताब समझने के लिए इतिहास में जाना होगा.

तनाव की शुरुआत 20वीं सदी में हुई. इसके पहले कोरिया जापानी एंपायर का हिस्सा था. देश का बंटवारा दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद हुआ. ये वो समय था, जब कोरिया पर जापान का राज था. युद्ध में हार के बाद ये कब्जा तो हट गया लेकिन अमेरिका समेत तमाम देशों ने इसे अस्थाई तौर पर दो हिस्सों में बांट दिया. तब सोवियत संघ (अब रूस) इसके उत्तरी हिस्से को देख रहा था, जबकि दक्षिण को अमेरिका देखभाल रहा था.

ये बंटवारा केवल एक अस्थाई बंदोबस्त था. हालांकि रूस और अमेरिका के बीच कोल्ड वॉर चल पड़ा, जिससे कोरिया के दोनों हिस्सों में भी दूरियां आने लगीं, और फिर वे औपचारिक रूप से अलग हो गए. 

नॉर्थ में कम्युनिस्ट सरकार बनी, जो जाहिर तौर पर रूस से प्रभावित थी. वहीं साउथ में डेमोक्रेसी अपनाई गई. अलग विचारधाराओं की वजह से तनाव बढ़ता चला गया, जिसका अंजाम था कोरियाई युद्ध.  पचास के दशक में उत्तर कोरिया ने दक्षिणी भाग पर हमला कर दिया. दोनों की तनातनी में रूस और अमेरिका भी हाथ सेंकने लगे. तीन साल बाद लड़ाई रुकी तो लेकिन खत्म नहीं हो सकी. असल में उनके बीच कोई पीसमेकिंग डील नहीं हुई. यानी टेक्निकली अब भी दोनों देश युद्ध में हैं. 

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south korea martial law reasons and history of conflict with north korea

दोनों के बीच सीमा पर सैन्य झड़पें होती रहती हैं. नॉर्थ कोरिया का आरोप है कि पड़ोसी देश की सरकार से लेकर लोग तक उनके यहां के लोगों को उकसा रहे हैं. वे  बैलून के जरिए अपने यहां की धन-दौलत और विकास की फर्जी बातें उत्तर कोरिया की तरफ भेजते हैं ताकि लोग बहकावे में आ जाएं और देश छोड़कर भागने लगें.

उत्तर कोरिया में चूंकि अब भी सैन्य तानाशाही है, लिहाजा वहां दक्षिण कोरिया या अमेरिका की बात करने वालों को सीधे राष्ट्रद्रोही मान लिया जाता है. यहां तक कि देश के लोग बाहर न भाग सकें, या बाहरी दुनिया की खबरें न मिल सकें, इसके लिए वहां काफी सारी सेंसरशिप भी है. अब बात करते हैं दक्षिण कोरिया. वहां विकास तो है लेकिन नॉर्थ कोरिया के मामले में ये देश भी पचास के दशक में ही अटका हुआ है. वहां की सरकार इस बात पर कड़ी नजर रखती है कि देश में उत्तर कोरिया के लिए नरम रुख न आने पाए. 

अक्टूबर में उत्तर कोरिया ने आरोप लगाया कि पड़ोसी देश उनकी राजधानी तक ड्रोन भेज रहे हैं. ये केवल जासूसी नहीं कर रहे, बल्कि उनसे पर्चे गिर रहे हैं, जिनमें उनके ही देश के लोगों को भड़काने वाली बातें लिखी हैं. आरोप लगाते हुए किम जोंग की बहन किम यो जोंग ने चेताया कि अगर ड्रोन दोबारा भेजे गए तो अंजाम ठीक नहीं होगा. मजे की बात ये है कि दक्षिण कोरिया ने इन आरोपों से पूरी तरह इनकार भी नहीं किया. इस बीच दोनों देशों को जोड़ने वाली सड़क पर विस्फोट भी हुए. इनका आरोप दक्षिण कोरिया ने पड़ोसी पर लगा दिया. तो इस तरह से दोनों के बीच मौखिक लड़ाई शुरू हो गई. ऐसा आए-दिन होता रहता है. 

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उत्तर कोरिया में दक्षिण से जुड़ा होने के शक पर भी कड़ी सजाएं दी जाती हैं. वहीं दक्षिण कोरिया इस मामले में कुछ उदार रहा. वहां कई ऐसी पॉलिसीज भी शुरू हुईं, जिससे दूसरे वॉर के बाद अलग हुए परिवार आपस में मिल सकें. लेकिन जैसे-जैसे  उत्तर कोरिया ने न्यूक्लियर ताकत कमाई, साउथ कोरिया उससे ज्यादा ही बिदकने लगा. फिलहाल मेलमिलाप के लिए कोई ऐसी पॉलिसी नहीं है, साथ ही मौखिक युद्ध और छिटपुट तनाव भी बना रहता है.

इस बीच साउथ कोरिया में एक और बदलाव हुआ. वहां वामपंथी पार्टियां बढ़ रही हैं. यहां तक कि विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी पर भी राष्ट्रपति यही आरोप लगा चुके. उनका कहना है कि इस पार्टी की नीति उत्तर के लिए बहुत नरम है, जो कि देश के लिए खतरा है. लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के अलावा कई छोटी पार्टियां बन रही हैं, जो दोनों देशों के मेल पर जोर दे रही हैं. 

क्या एक्शन होता है तथाकथित नरम रुख वाली पार्टियों पर

दक्षिण कोरिया में नेशनल सिक्योरिटी लॉ लागू है, जो उत्तर कोरिया के प्रति सहानुभूति रखने वाली एक्टिविटीज को कंट्रोल करता है. इसके तहत अगर कोई शख्स उत्तर कोरिया के लिए सहानुभूति रखे, या किसी भी तरह से उसके बारे में पॉजिटिव बातें करें तो उसपर कार्रवाई भी हो सकती है. लॉ के तहत प्रोपेगंडा मटेरियल छापने या बांटने पर रोक है.

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अगर किसी संस्था, जैसे मानवाधिकार संगठन पर नॉर्थ के समर्थन का आरोप लगे तो उसकी जांच होती है और गंभीर मामलों में राष्ट्रद्रोह की सजा मिल सकती है. बीते सालों में दबाव के बाद भी कई ऐसे गुट बने, जो प्रो-नॉर्थ कोरिया हैं, जैसे कनफेडरेशन ऑफ कोरियन स्टूडेंट्स यूनियन. हालांकि इनपर सरकारी नजर लगातार बनी रहती है.

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