पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर (PRSC) के डेटा के मुताबिक, 15 सितंबर से लेकर 3 अक्टूबर के बीच खेतों में आग लगने की करीब साढ़े तीन सौ घटनाएं हुईं. इनमें से ज्यादातर का संबंध पराली जलाने से था. इसपर लगाम कसने के लिए स्टेट की सरकार ने एक एक्शन प्लान भी बना रखा है. इसके तहत ऐसे किसानों पर न केवल केस दर्ज होगा, बल्कि लोन लेने में भी मुश्किलें आएंगी. ये तो हुआ एक पहलू, यहां सवाल ये है कि क्यों पराली के चलते दम घुटने की शिकायत दूसरे देशों से नहीं आती, जबकि खेती-बाड़ी तो उनके यहां भी होती है.
क्या होती है पराली
ये फसल का गैरजरूरी हिस्सा है. जब भी धान जैसी फसलें कटती हैं, तो उसे जड़ से नहीं उखाड़ते, बल्कि ऊपर का कुछ हिस्सा छोड़ दिया जाता है. अब नई फसल के लिए खाली खेत चाहिए. तो छूटे हुए हिस्से को जलाने के लिए आग लगा दी जाती है ताकि खेत तुरंत रबी की फसल के लिए तैयार हो सकें.
ये सबसे फटाफट होने वाला और बजट फ्रैंडली तरीका है. यही कारण है कि किसान इसे अपनाते रहे. हालांकि इसके नुकसान और ज्यादा हैं. इससे जो धुआं उठता है वो आसपास के इलाकों तक पहुंच जाता है और लंबे समय तक हवा में टिका रहता है. दिल्ली-एनसीआर के साथ भी यही हो रहा है.
कितना जहर निकलता है पराली जलाने पर
करीब एक टन पराली जलाने पर जो गैसें निकलती हैं, उसमें 14 सौ किलोग्राम से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड होती है. इसके अलावा पार्टिकुलेट मैटर (PM) की मात्रा 3 किलो, और कार्बन मोनोडाइऑक्साइड 60 किलो से भी ज्यादा होती है. ये जहरीली गैसें फेफड़ों, दिल और यहां तक कि आंखों पर भी असर करती हैं. इसकी वजह से अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिसीज , ब्रोंकाइटिस, और कैंसर जैसी बीमारियां तक हो सकती हैं.
इस बात को डेटा से भी समझ सकते हैं. कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट का साल 2022 का डेटा कहता है कि अक्टूबर के आखिर में हवा की गुणवत्ता बहुत खराब हो गई, इसमें पराली का योगदान 26% था.
दूसरे देश क्या करते हैं
धान केवल हम ही तो नहीं उगाते. बहुत से देशों में कम या ज्यादा स्तर पर धान की खेती होती आई है. चीन चावल की खेती में नंबर वन पर है, इसके बाद भारत, बांग्लादेश और इंडोनेशिया का नंबर है. कई दशकों तक चीन में भी पराली जलाने की प्रैक्टिस होती रही. परंपरागत खेती करने वाले मानते थे कि दूसरी फसल उगाने से पहले खेतों का साफ होना जरूरी है.
चीन की सरकार ने बना दिए नियम
करीब 2 दशक पहले ही चीन की सरकार ने पराली जलाने को लेकर सख्ती शुरू कर दी. वो चावल की खेती के बाद छोटी-छोटी टीमें बनाकर लोगों को भेजती है कि कहीं किसान पराली जलाने की तैयारी में तो नहीं. इसकी बजाए पराली को खेतों में ही खत्म करने के दूसरे तरीके अपनाने पर जोर देने लगी. यहां तक कि पराली की रिसाइक्लिंग भी हो रही है. कई प्रांतों को इससे बिजली मिलती है. हालांकि पूरी तरह से पाबंदी इसपर अब भी नहीं लग सकी. किसान कोहरे वाले दिनों की आड़ में ऐसा करने लगे हैं.
इन देशों में होता है अलग-अलग इस्तेमाल
जापान में पराली को जानवरों को खिलाया जाता है. इसके अलावा इससे खाद भी बनाई जाती है ताकि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे. थाइलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया जैसे देशों में खाद बनाने के साथ पराली पर मशरूम उगाने का काम भी होता है. इससे बायो इथेनॉल भी बनाया जाने लगा, जो पेट्रोल के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल हो सकता है.
फिलहाल भारत के अलावा कई दक्षिण एशियाई देशों में पराली जलाना कॉमन बना हुआ है, हालांकि सरकारें इस पर काम कर रही हैं, लेकिन ऐसा विकल्प खोजा जा रहा है जिससे गेहूं की बुआई में देरी न हो, और मिट्टी की क्वालिटी भी खराब न हो.