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राजधानी दिल्ली में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे एक छात्र ने आत्महत्या कर ली. 30 साल के अमित कुमार मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे. अमित कुमार ने हॉस्टल के कमरे में फांसी का फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली. इसी तरह पिछले महीने कोटा में 16 साल के छात्र ने भी हॉस्टल के रूम में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. वो बिहार से कोटा आईआईटी की कोचिंग लेने आया था.
इंटरनेट पर जब ढूंढेंगे तो छात्रों की आत्महत्या के ढेरों मामले मिल जाएंगे. लेकिन छात्रों की आत्महत्या को लेकर अब जो नया खुलासा हुआ है, वो वाकई चौंकाने वाला है.
एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में आबादी इतनी तेजी से नहीं बढ़ रही, जितनी तेजी से छात्रों की आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं. इससे पता चलता है कि भारत में छात्रों में सुसाइडल टेंडेंसी तेजी से बढ़ रही है.
ये रिपोर्ट IC3 की सालाना कॉन्फ्रेंस में साझा की गई है. केंद्र सरकार की एजेंसी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के आधार पर इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है. IC3 एक नॉन-प्रॉफिट संस्था है, जो दुनियाभर में शिक्षा पर काम करती है.
क्या जानकारी आई सामने?
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में आत्महत्या के मामले हर साल 2% की दर से बढ़ रहे हैं. जबकि, छात्रों में आत्महत्या के मामलों की दर सालाना 4% से बढ़ी है. इसमें चेताया गया है कि छात्रों की सुसाइड के कई सारे मामलों को दर्ज भी नहीं किया जाता, जो दिखाता है कि ये समस्या कितनी गंभीर हो रही है.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले एक दशक में 24 साल तक के व्यक्तियों की आबादी 58.2 करोड़ से घटकर 58.1 करोड़ हो गई है, जबकि इसी दौरान छात्रों की सुसाइड के मामले 6,654 से बढ़कर 13,044 हो गए हैं.
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में 15 से 24 साल का हर 7 में से 1 व्यक्ति खराब मेंटल हेल्थ से जूझ रहा है. इसमें डिप्रेशन के लक्षण भी शामिल हैं. हैरानी वाली बात ये है कि सर्वे में शामिल सिर्फ 41% ने ही मेंटल हेल्थ की चुनौतियों से निपटने के लिए काउंसलर के पास जाना ठीक समझा.
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डराने वाले आंकड़े...
- 2021 में 13,089 छात्रों ने आत्महत्या की थी. इसकी तुलना में 2022 में छात्रों की आत्महत्या के 13,044 मामले सामने आए थे. 2021 के मुकाबले 2022 में नाममात्र की कमी आई थी.
- 2021 की तुलना में 2022 में आत्महत्या के मामलों में 4% की बढ़ोतरी दर्ज की गई. 2021 में 1.64 लाख लोगों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2022 में 1.70 लाख से ज्यादा लोगों ने खुदकुशी कर ली थी.
- देश में 2022 में जितने लोगों ने आत्महत्या की थी, उनमें से 7.6% छात्र थे. जबकि, खेती-बाड़ी से जुड़े लोगों की संख्या 6.6% थी. यानी, खेती-बाड़ी से जुड़े लोग या किसानों की तुलना में छात्र ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं.
- जेंडर-वाइज देखा जाए तो आत्महत्या करने वालों में पुरुष छात्रों की संख्या ज्यादा है. हालांकि, पिछले 10 साल में पुरुष छात्रों की आत्महत्या के मामले 50% बढ़े हैं, जबकि महिला छात्रों के मामलों में 61% की बढ़ोतरी हुई है. पिछले पांच साल पुरुष और महिला, दोनों छात्रों की आत्महत्या के मामले में सालाना 5% की बढ़ोतरी हुई है.
महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश, ये तीन ऐसे राज्य हैं जहां छात्र सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं. इन राज्यों में छात्रों की आत्महत्या के एक-तिहाई मामले सामने आए हैं. इन तीन राज्यों में 2022 में साढ़े चार हजार से ज्यादा छात्रों की आत्महत्या के मामले सामने आए थे.
उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है और ये उन टॉप-5 राज्यों में शामिल है जहां छात्रों की आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं. उत्तर प्रदेश में 2022 में छात्रों की आत्महत्या के 1,060 मामले सामने आए थे. जबकि, राजस्थान में 571 मामले दर्ज किए गए थे.
आत्महत्या करने वालों में पुरुष ज्यादा
एनसीआरबी के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि आत्महत्या करने वालों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की संख्या कहीं ज्यादा है.
दो दशकों के आंकड़े बताते हैं कि भारत में सुसाइड करने वाले हर 10 में से 6 या 7 पुरुष होते हैं. 2001 से 2022 के दौरान हर साल आत्महत्या करने वाली महिलाओं की संख्या 40 से 48 हजार के बीच रही. जबकि, इसी दौरान सुसाइड करने वाले पुरुषों की संख्या 66 हजार से बढ़कर 1 लाख के पार चली गई.
2022 में 1.70 लाख से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की थी, जिनमें से 1.22 लाख से ज्यादा पुरुष थे. यानी हर दिन औसतन 336 पुरुष आत्महत्या कर लेते हैं. इस हिसाब से हर साढ़े 4 मिनट में एक पुरुष सुसाइड कर रहा है.
सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के आंकड़े बताते हैं कि पुरुष ज्यादा आत्महत्या करते हैं. WHO के मुताबिक, दुनिया में हर एक लाख मर्दों में से 12.6 सुसाइड करके अपनी जान दे देते हैं. वहीं, हर एक लाख महिलाओं में ये दर 5.4 की है.
पर मर्दों में ऐसा क्यों?
हर व्यक्ति में आत्महत्या करने का अलग-अलग कारण होता है. एक्सपर्ट का मानना है कि डिप्रेशन, तनाव की वजह से आत्महत्या करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. कई बार मेडिकल कारण भी होता है. इसके अलावा जब इंसान के पास अपनी परेशानी से निकलने का कोई रास्ता नहीं होता, तो वो आत्महत्या कर लेता है.
एनसीआरबी ने अपनी रिपोर्ट में आत्महत्या करने के कारणों के बारे में भी बताया है. इसके मुताबिक, फैमिली प्रॉब्लम और बीमारी (एड्स, कैंसर आदि) से तंग आकर लोग सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं. पिछले साल 32% सुसाइड फैमिली प्रॉब्लम और 19% बीमारी की वजह से हुई. हालांकि, इसमें ये नहीं बताया कि महिला और पुरुष ने किन कारणों से सुसाइड की.
हालांकि, रिपोर्ट बताती है कि आत्महत्या करने वाले पुरुषों में से लगभग 60 फीसदी ऐसे थे जो या तो दिहाड़ी मजदूर थे या अपना खुद का कुछ काम करते थे या फिर बेरोजगार थे. यानी, हो सकता है कि इनकी आत्महत्या करने की वजह आर्थिक तंगी रही हो.
2011 में एक रिसर्च हुई थी. इसमें ये पता लगाने की कोशिश की गई थी कि आखिर महिलाओं की तुलना में पुरुष ज्यादा सुसाइड क्यों करते हैं? इस रिसर्च में सामने आया था कि समाज में पुरुषों को अक्सर ताकतवर और मजबूत समझा जाता है और इस वजह से वो अपने डिप्रेशन या सुसाइडल फीलिंग को दूसरे से साझा नहीं कर पाते और आखिर में थक-हारकर आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं.
2003 में भी एक मर्दों में सुसाइड को लेकर यूरोप में स्टडी हुई थी. इस स्टडी में बताया गया था कि बेरोजगारी के समय मर्दों के सुसाइड करने का रिस्क बढ़ जाता है, क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि समाज और परिवार को जो उनसे उम्मीद है, उस पर वो खरे नहीं उतर पा रहे हैं.
इन सबके अलावा पुरुषों में सुसाइड की एक वजह शराब और ड्रग्स की लत को भी माना जाता है, क्योंकि नशा सुसाइडल टेंडेंसी को बढ़ाता है.
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क्या आत्महत्या की कोशिश करना अपराध है?
इस बात को लेकर अक्सर बहस होती रहती है कि क्या आत्महत्या की कोशिश करना अपराध है? तो इसका जवाब है- पहले था लेकिन अब नहीं. आईपीसी में आत्महत्या की कोशिश करना अपराध था. लेकिन भारतीय न्याय संहिता में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. हालांकि, इसमें धारा 224 है, जो कहती है कि जो कोई किसी लोकसेवक को काम करने के लिए मजबूर करने या रोकने के मकसद से आत्महत्या की कोशिश करता है, तो उसे एक साल तक की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है.
हालांकि, मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017 की धारा 115 आत्महत्या की कोशिश करने वाले तनाव से जूझ रहे लोगों को इससे राहत देती है. ये धारा कहती है कि अगर ये साबित हो जाता है कि आत्महत्या की कोशिश करने वाला व्यक्ति बेहद तनाव में था, तो उसे किसी तरह की सजा नहीं दी जा सकती.
बहरहाल, आत्महत्या एक गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्या है. अगर आपको भी कोई परेशानी है तो दोस्तों-रिश्तेदारों से बात करें या डॉक्टरी सलाह लें. सही समय पर सही सलाह ले ली तो इसे काफी हद तक रोका जा सकता है.