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क्या है MTP एक्ट 2021, जिसकी SC को व्याख्या की जरूरत पड़ी, अबॉर्शन को लेकर क्या है कानून?

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि अविवाहित महिला को भी अबॉर्शन कराने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला शादीशुदा हो या न हो, उसे सुरक्षित और कानूनी तरीके से अबॉर्शन कराने का अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून के दायरे से अविवाद महिलाएं बाहर नहीं हैं.

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भारत में अबॉर्शन को लेकर 1971 से कानून है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
भारत में अबॉर्शन को लेकर 1971 से कानून है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

अबॉर्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अविवाहित महिला को भी अबॉर्शन कराने का अधिकार है. 

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला शादीशुदा हो या नहीं हो, उसे सुरक्षित और कानूनी तरीके से अबॉर्शन कराने का अधिकार है. अदालत ने ये भी कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून के दायरे से अविवाहित महिला को बाहर रखना असंवैधानिक है.

ये पूरा मामला इस बात से जुड़ा था कि अगर कोई अविवाहित महिला अपनी मर्जी से संबंध बनाती है और अबॉर्शन कराना चाहती है, तो क्या उसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून के नियम 3B से बाहर रखा जाना वैध है? नियम 3B में उन महिलाओं को रखा गया है जो 20 से 24वें हफ्ते के बीच अबॉर्शन करवा सकतीं हैं.

सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला 25 साल की उस महिला की याचिका पर आया है, जो अपने पार्टनर के साथ सहमति से रह रही थी, लेकिन बाद में उसने शादी करने से मना कर दिया. महिला का कहना था कि वो बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती, इसलिए उसे अबॉर्शन की अनुमति दी जाए. महिला को अबॉर्शन कराने की इजाजत दिल्ली हाईकोर्ट से नहीं मिली थी. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने महिला को अबॉर्शन की इजाजत दे दी थी. 

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सुप्रीम कोर्ट ने तब भी महिला की याचिका पर कहा था कि 2021 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून में संशोधन हुआ था, जिसमें 'पति' की जगह 'पार्टनर' शब्द का इस्तेमाल किया गया है. ऐसा इसलिए हुआ था ताकि 'अविवाहित महिलाओं' को भी इसके दायरे में लाया जा सके. आज फिर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2021 में संशोधन के बाद ये कानून 'विवाहित' और 'अविवाहित' महिला में अंतर नहीं करता है.

भारत में अबॉर्शन को लेकर क्या है कानून?

भारत में अबॉर्शन यानी गर्भपात को 'कानूनी मान्यता' है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि इसकी छूट मिल गई है. भारत में अबॉर्शन को लेकर 'मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट' है, जो 1971 से लागू है. इसमें 2021 में संशोधन हुआ था.

भारत में पहले कुछ मामलों में 20 हफ्ते तक अबॉर्शन कराने की मंजूरी थी, लेकिन 2021 में इस कानून में संशोधन के बाद ये समयसीमा बढ़ाकर 24 हफ्ते तक कर दी गई. इतना ही नहीं, कुछ खास मामलों में 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्शन कराने की मंजूरी ली जा सकती है. भारत में अबॉर्शन को तीन कैटेगरी में बांटा गया है-

1. प्रेग्नेंसी के 0 से 20 हफ्ते तक

- अगर कोई महिला मां बनने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं है या फिर कांट्रासेप्टिव मेथड या डिवाइस फेल हो गया हो और महिला न चाहते हुए भी गर्भवती हो जाए तो वो अबॉर्शन करवा सकती है. इसके लिए एक रजिस्टर्ड डॉक्टर का होना जरूरी है.

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2. प्रेग्नेंसी के 20 से 24 हफ्ते तक

- अगर महिला यौन उत्पीड़न या रेप का शिकार हुई हो और उस वजह से प्रेग्नेंट हुई हो तो 20 से 24 हफ्ते के बीच भी अबॉर्शन करवा सकती है. अगर महिला विकलांग है तो भी अबॉर्शन करवा सकती है. 

- इसके अलावा बच्चे के जिंदा रहने के चांस कम हैं या मां की जान को खतरा हो और प्रेग्नेंसी के दौरान महिला का मेरिटल स्टेटस बदल जाए यानी उसका तलाक हो जाए या फिर विधवा हो जाए, तो भी अबॉर्शन करवा सकती है.

3. प्रेग्नेंसी के 24 हफ्ते बाद

- अगर मां या बच्चे के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को किसी तरह का खतरा है, तो महिला 24 हफ्ते बाद भी अबॉर्शन करवा सकती है. हालांकि, इस पर फैसला मेडिकल बोर्ड लेगा.

- कानून के तहत, हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को अपने यहां मेडिकल बोर्ड का गठन करना जरूरी है. इस बोर्ड में स्त्री रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ, सोनोलॉजिस्ट या रेडियोलॉजिस्ट होते हैं. ये बोर्ड गर्भवती महिला की जांच करते हैं और तभी अबॉर्शन की अनुमति देते हैं.

- अगर प्रेग्नेंसी से गर्भवती की जान को खतरा है तो किसी भी स्टेज पर एक डॉक्टर की सलाह पर अबॉर्शन किया जा सकता है. लेकिन अबॉर्शन तभी होगा, जब महिला की लिखित अनुमति होगी. अगर कोई नाबालिग है या मानसिक रूप से बीमार है तो ऐसी स्थिति में माता-पिता या गार्जियन की अनुमति जरूरी होगी.

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लिंग के आधार पर नहीं करा सकते अबॉर्शन

भारत में अबॉर्शन को लेकर कानून जरूर है, लेकिन लिंग की जांच के बाद ऐसा कराना कानूनी अपराध है और ऐसा करने पर सजा होती है. 

भारत में क्या है अबॉर्शन की स्थिति

भारत में अबॉर्शन को मान्यता देने का कानून 50 साल से भी ज्यादा पुराना है. लेकिन, अभी भी इस कानून को लेकर इतनी जागरूकता नहीं है. केंद्र सरकार के एक दस्तावेज के मुताबिक, भारत में हर साल जितनी मांओं की मौत होती है, उनमें से 8% मौतें असुरक्षित गर्भपात के कारण होती है. इस दस्तावेज का कहना है कि भारत में हर साल असुरक्षित गर्भपात के कारण 12 हजार महिलाओं की मौत हो जाती है.

 

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