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चट मंगनी, पट ब्याह की तरह अब 'झट तलाक' भी संभव, समझें क्या हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मायने?

तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसला सुनाया. इसके बाद आपसी सहमति से तलाक लेने वालों को 6 महीने का इंतजार नहीं करना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर शादी इस हद तक पहुंच जाए, जहां सुलह की गुंजाइश न हो तो इस आधार पर अदालत तलाक की मंजूरी दे सकती है.

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मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2022 में फैसला सुरक्षित रख लिया था. (फोटो क्रेडिट- Vani Gupta/aajtak.in)
मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2022 में फैसला सुरक्षित रख लिया था. (फोटो क्रेडिट- Vani Gupta/aajtak.in)

चट मंगनी, पट ब्याह के बाद अब 'झट से तलाक' भी संभव है. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया है कि अगर पति-पत्नी के बीच रिश्ते इस कदर टूट चुके हैं कि ठीक होने की गुंजाइश न बची हो तो इस आधार पर वो तलाक की मंजूरी दे सकता है.

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जबकि, अभी तक ऐसा होता था कि तलाक के लिए पति-पत्नी को 6 महीने तक इंतजार करना पड़ता था. लेकिन अब ऐसे मामलों में फैमिली कोर्ट की बजाय सीधे सुप्रीम कोर्ट से तलाक लिया जा सकता है. 

जस्टिस एसके कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी की संवैधानिक इस पर सुनवाई कर रही थी. इस मामले में बेंच ने पिछले साल 29 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

क्या था मामला?

- दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के सामने कई याचिकाएं दायिर हुई थीं, जिसमें कहा गया था कि क्या आपसी सहमति से तलाक के लिए भी इंतजार करना जरूरी है?

- याचिकाएं में मांग की गई थी कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13B के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए जरूरी वेटिंग पीरियड में छूट दी जा सकती है या नहीं? ये मामला 29 जून 2016 को संवैधानिक बेंच के पास गया था.

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- सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस पर भी विचार किया कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत वो कोई ऐसा आदेश या डिक्री जारी कर सकता है, जिसके तहत वो तलाक का आदेश दे सकती है, जबकि एक पक्ष तलाक का विरोध कर रहा हो.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या?

- पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल कर सकती है और आपसी सहमति से तलाक के लिए 6 महीने के जरूरी वेटिंग पीरियड को कुछ मामलों में खत्म कर सकती है.

- अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को ऐसा आदेश या डिक्री पास करने का अधिकार देता है जो अदालत के सामने लंबित किसी भी मामले में 'पूर्ण न्याय' के लिए जरूरी है.

इसके मायने क्या हैं?

- 1955 के हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13 में 'तलाक' का प्रावधान किया गया है. इसमें उन स्थितियों का जिक्र है जब तलाक लिया जा सकता है. इसके अलावा इसमें आपसी सहमति से तलाक का भी जिक्र है.

- इस कानून की धारा 13B में आपसी सहमति से तलाक का जिक्र है. हालांकि, इस धारा के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए तभी आवेदन किया जा सकता है जब शादी को कम से कम एक साल हो गए हैं.

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- इसके अलावा, इस धारा में ये भी प्रावधान है कि फैमिली कोर्ट दोनों पक्षों को सुलह के लिए कम से कम 6 महीने का समय देता है और अगर फिर भी सुलह नहीं होती है तो तलाक हो जाता है.

- सुप्रीम कोर्ट में इसी 6 महीने के इंतजार को चुनौती दी गई थी. कहना था कि जब आपसी सहमति से तलाक हो रहा है तो 6 महीने इंतजार करने की जरूरत क्या है?

तलाक लेने के आधार क्या?

- पति या पत्नी में से कोई भी शादी के बाद अपनी इच्छा से किसी दूसरे व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाता हो. 

- शादी के बाद अपने साथी के साथ मानसिक या शारीरिक क्रूरता का बर्ताव करता हो.

- बिना किसी ठोस कारण के ही दो साल या उससे लंबे समय से अलग रह रहे हों.

- दोनों पक्षों में से कोई एक हिंदू धर्म को छोड़कर दूसरा धर्म अपना लेता हो.

- दोनों में से कोई एक पक्ष मानसिक रूप से बीमार हो और उसके साथ वैवाहिक जीवन जीना संभव न हो.

- अगर दोनों में से कोई एक कुष्ठ रोग से पीड़ित हो.

- पति या पत्नी में से कोई एक संक्रामक यौन रोग से पीड़ित हो.

- अगर पति या पत्नी में से कोई घर-परिवार छोड़कर संन्यास ले ले.

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- अगर पति या पत्नी में से किसी एक के जीवित रहने की कोई भी खबर सात साल तक न मिली हो.

- अगर शादी के बाद पति बलात्कार का दोषी पाया जाता हो.

- अगर शादी के समय पत्नी की उम्र 15 साल से कम रही हो तो वो 18 साल की होने से पहले तलाक ले सकती है.

 

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