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क्या है टाइम कैप्सूल, जो लालकिले के पास भी दबाया गया, क्यों होता रहा इसपर विवाद?

लाल किले के नीचे अक्सर एक टाइम कैप्सूल दबा होने की बात होती है. ये इसलिए रखा गया ताकि आज से सैकड़ों- हजारों साल बाद की पीढ़ियां इतिहास को जान सकें. टाइम कैप्सूल और भी कई जगहों पर दबा है. इसका चलन काफी पुराना लेकिन उतना ही विवादित रहा. इतिहासकार मानते हैं कि राजनैतिक पार्टियां अपने हिसाब से झूठी-सच्ची जानकारी दे सकती हैं.

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टाइम कैप्सूल इतिहास को भविष्य से कनेक्ट करने का जरिया है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
टाइम कैप्सूल इतिहास को भविष्य से कनेक्ट करने का जरिया है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

कभी तीसरा विश्व युद्ध हो और देश के देश तबाह हो जाएं तो जानकारी का क्या जरिया रहेगा! आज एक्सपर्ट जमीन की खुदाई से ये तक पता लगा लेते हैं कि हजारों साल पहले लोग कैसे जीते, या क्या खाते रहे होंगे. तो समझिए, कि टाइम कैप्सूल इसका मॉडर्न तरीका है. दशकों और सदियों बाद भी ये कैप्सूल खराब नहीं होगा और इसके भीतर की जानकारी जस की तस रहेगी. जानिए, आखिर क्या होता है टाइम कैप्सूल और कैसे काम करता है. 

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क्या मकसद होता है इसका?

इसमें किसी एक विषय से जुड़ी लगभग सारी जानकारी संजोई जाती है जैसे ये कोई जगह भी हो सकती है, कोई सदी या कोई शख्सियत भी. टाइम कैप्सूल का मकसद भावी पीढ़ियों को इस बारे में सबकुछ बताना होता है. अक्सर लिखा हुआ खत्म हो जाता है, या उससे छेड़छाड़ हो सकती है, लेकिन इसमें बंद जानकारी में आसानी से फेरबदल नहीं हो सकता. 

कैसा होता है कैप्सूल?

ये एक बॉक्स होता है जो किसी भी शेप का हो सकता है. आमतौर पर इसे एलुमीनियम, स्टील या तांबे से बनाया जाता है ताकि मिट्टी में दबा होने के बाद भी ये ज्यादा से ज्यादा वक्त तक टिका रहे. वहीं लोहे से बने बॉक्स जंग लगने के कारण खराब होने लगते हैं और उनमें रखी सामग्री के नष्ट होने का डर रहता है. इसके भीतर जो इंफॉर्मेशन होती है, वो एसिड-फ्री पेपर पर रहती है जिससे हजारों सालों तक वो वैसी ही बनी रहे. 

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time capsules what they contain and what is the purpose- photo Getty Images

निकालने का समय तय करके भी दबाए जाते हैं ये

कैप्सूल का डिब्बा 3 फीट या इससे भी लंबा होता है, जो जमीन के बहुत गहरे में दफनाया जाता है. काफी गहराई तक दबाने का सीधा उद्देश्य है कि सैकड़ों-हजारों सालों बाद भी उस जगह से जुड़े तथ्य सेफ रहें. वैसे कई बार ये शेड्यूल्ड भी होते हैं. बॉक्स दबाते हुए ये तय किया जाता है कि उसे कितने समय बाद खोला जाएगा. कई उपन्यासकारों के अप्रकाशित नॉवेल अमेरिका में कैप्सूल में दबाए गए हैं और तय हुआ है कि कितने सालों बाद उसे निकालकर छापा जाएगा. 

भारत में कितने टाइम कैप्सूल हैं?

हमारे यहां इसे कालपत्र भी कहा जाता रहा. सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अगस्त 1972 में एक टाइम कैप्सूल लाल किले के पास दबवाया था. जमीन में 30 फीट से भी गहरे दबाए गए कैप्सूल के बारे में कहा जाता है कि इसमें आजादी के बाद के 25 सालों की बात है. लेकिन इसपर अक्सर विवाद होता रहा. विपक्षी पार्टियां आरोप लगाती हैं कि कालपत्र में एक पार्टी और परिवार की तारीफ से ज्यादा कुछ नहीं होगा. देश का इसमें कोई जिक्र नहीं होगा. 

- मार्च 2010 में IIT कानपुर कैंपस में पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने एक कैप्सूल दबाया था. इसमें कैंपस की जानकारी, तस्वीरें और रिसर्च हैं. 

- मुंबई के अलेक्जेंडर गर्ल्स इंग्लिश इंस्टीट्यूशन के कैंपस में भी एक कैप्सूल है, जिसमें स्कूल की जानकारी दी गई है. ये साल 2062 में खोला जाएगा. 

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time capsules what they contain and what is the purpose- photo Getty Images

विदेशों में भी रहा चलन
इंटरनेशनल स्तर पर भी समय-समय पर टाइम कैप्सूल की बातें सामने आती रहीं. साल 2017 में स्पेन में एक टाइम कैप्सूल मिला, जो जीसस की मूर्ति के रूप में था. इसमें साल 18वीं सदी के सामाजिक-आर्थिक हालातों के बारे में बताया गया था. अब तक मिले टाइम कैप्सूल में ये सबसे पुराना माना जाता है. 

क्यों होता रहा इसपर विवाद 

वैसे तो इस कैप्सूल के बारे में कहा जाता है कि इससे जानकारियां मिलेंगी, लेकिन इसमें गलत जानकारियों का डर भी शामिल है. ये भी हो सकता है कि कैप्सूल दबाने वाले लोगों का इरादा खुद को, या अपनी पार्टी और परिवार को ग्लोरिफाई करना रहा हो. ऐसे में सदियों बाद इस बात को क्रॉस चेक भी नहीं किया जा सकेगा और आने वाली पीढ़ियां गलत जानकारी के साथ ही रहेंगी. ऐसे कैप्सूल्स को पाने से आगे चलकर पुरातत्वनविदों को कोई फायदा नहीं होगा.

इसके साथ दूसरे डर भी हैं

ये भी हो सकता है कि टाइम कैप्सूल में जो भाषा लिखी हो, वो उसे पाने के समय में बेकार हो चुकी हो. यानी अगर कंप्यूटर की भाषा में कैप्सूल में जानकारी है तो शायद कुछ दशकों या सदियों बाद समय इतना मॉर्डन हो जाए कि आज की भाषा डिकोड न हो सके.

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