देश में G20 बैठक को लेकर लंबे समय से गहमागहमी थी. समिट खत्म होने के साथ ही लीडरों की कई तरह की तस्वीरें वायरल हैं. ऐसी ही एक तस्वीर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा के साथ दिख रहे हैं. साथ में छोटे गमले में एक पौधा है. असल में बैठक में शामिल सभी राष्ट्राध्यक्षों ने भारत मंडपम में पौधे लगाए. खास बात ये थी कि ये पौधे उन्हीं देशों से मंगवाए गए थे. कुल 17 देशों से अलग-अलग किस्म के पौधे आयात किए गए, और उसी माहौल में रखा गया, जिसमें वे जिंदा रह सकें. लेकिन साथ ही ये पौधे क्वारंटीन में रखे गए थे.
किसी भी देश से पौधों को लाना आसान नहीं
अक्सर इंटरनेशनल फ्लाइट में चेकिंग के दौरान पौधा जब्त कर लिया जाता है. यहां तक कि फूल या बीज भी नहीं लाए जा सकते. कई देशों से कुछ खास प्लांट की किस्में लाने पर पूरी तरह से पाबंदी है.
देने होते हैं कागज
इसके बाद भी अगर कोई किसी भी किस्म का प्लांट आयात-निर्यात करना चाहे तो इसके लिए एयरपोर्ट पर ही डिक्लेरेशन देना होता है. पौधे या बीज का पूरा कागज होना चाहिए कि वो किस प्रजाति का है, कहां से कहां जा रहा है और क्या वो पूरी तरह से स्वस्थ है. तब भी जरूरी नहीं कि आपको इसकी इजाजत मिल ही जाए.
पौधों से आ सकती हैं बीमारियां
ऐसा इसलिए है कि पौधों से कई तरह की बीमारियां चुपके से दूसरे देशों तक पहुंच जाती हैं. कई बार ये बहुत खतरनाक साबित होती हैं. कई बार इसमें फंगस या ऐसे कीड़े होते हैं, जो बाकी फसल को तबाह कर सकते हैं. ये भी हो सकता है कि प्लांट पर किसी ऐसे पेस्टिसाइड का इस्तेमाल किया गया हो, जो दूसरे पौधों को, या फिर मिट्टी की क्वालिटी को ही खराब कर दे. ऐसे बहुत से मामले लगातार आते रहे.
अमेरिका-वियतनाम वॉर के दौरान वियतनाम ने कई बार अमेरिका पर अपनी फसलों को बर्बाद करने का आरोप लगाया था. ये एग्रीकल्चर वॉरफेयर है जो देशों को भुखमरी की कगार तक ले आता है. इसमें शक भी नहीं होता.
भारत में भी आ चुकी हैं खतरनाक बीमारियां
- साल 1879 में कॉफी के पौधों और बीजों से लीफ रस्ट नाम की बीमारी हमारे देश पहुंची. ये कॉफी श्रीलंका से आई थी.
- साल 1883 में यूरोप से लेट ब्लाइट नाम की बीमारी आई, जो कि आलू और टमाटर के जरिए यहां पहुंची थी.
- साल 1904 में क्रिसेंथमम से रस्ट नाम की बीमा्री ने फसलों को बुरी तरह से खराब किया. ये बीमारी यूरोप और जापान से हम तक पहुंची.
- साल 1906 में ऑस्ट्रेलियाई गेहूं से फ्लैग स्मट नाम की बीमारी यहां आई.
- यूरोप से कई बार अंगूर आयातित हुए, जिनसे हर बार अलग किस्म की बीमारी यहां फैली.
- साल 1912 में इंडोनेशिया के जावा से आया मक्का बीमार प्रजाति का था, जिसने फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया.
पौधों और बीजों से भले ही बीमारियां आ सकती हैं, लेकिन इसी वजह से प्लांट इंपोर्ट-एक्सपोर्ट बैन नहीं हो सकता. यही वजह है कि देशों ने पौधों को क्वारंटीन करने का नियम बनाया. अगर कोई व्यक्ति पौधे ला या ले जा रहा है तो उसे या तो रोक दिया जाएगा, या फिर कागज दिखाने होंगे. वहीं अगर सरकारी या प्राइवेट संस्था बड़े स्तर पर बीजों, फूल-फल या पौधों का इंपोर्ट कर रही हो तो डॉक्युमेंट दिखाने के अलावा उसे क्वारंटीन का प्रोसेस भी अपनाना होता है.
साल 1881 में पहली बार इंटरनेशनल स्तर पर एक संधि हुई, जिसे फाइलोक्सेरा कन्वेंशन कहा गया. कुल 5 बड़े देशों ने इसमें करार किया कि वे पौधों की जांच के बाद भी उसे आयात या निर्यात करेंगे.
हमारे यहां क्वारंटीन को चेक करने और पौधे को ओके करने के लिए कई संस्थाएं
नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेस (NBPGR) इनमें से एक है. ये पौधों और उनके बीजों का सैंपल चेक करता है और तय करता है कि ये पौधे रखने या फिर बाहर भेजने लायक हैं, या नहीं.
इस तरह देखा जाता है क्वारंटीन में
ये देखती है कि विदेशों से आयातित पौधे एक तय समय के लिए देखरेख में और दूसरे पौधों से अलग रहें. इस दौरान इसमें कीड़े लगने, पौधों में किसी बदलाव या फंगस होने जैसी बातें देखी जाती हैं. इसके बाद ही उसे ग्रीन सिग्नल मिलता है.
इसमें कई और भी नियम हैं, जैसे कुछ खास देशों से, खास तरह की फसलों, बीजों या पौधों का आयात किसी हाल में नहीं किया जाता. ये वो किस्में हैं, जिनके साथ पहले बीमारियों की शिकायत आ चुकी. कुछ ऐसे पौधे हैं, जिन्हें लाते हुए अतिरिक्त डॉक्युमेंटेशन करना होता है. अगर देश में कहीं भी, किसी और देश से पौधों का कोई सैंपल आता है, तो नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज देखता है कि वो पूरी तरह से स्वस्थ हो.
G20 में किस देश से कौन सा पौधा आया
- दक्षिण कोरिया से सिल्वर ट्री
- इटली और तुर्की से जैतून
- जर्मनी से विंटरलिंडे
- सऊदी अरब से खजूर पाम
- दक्षिण अफ्रीका से रियल येलोवुड
- अर्जेंटीना से कॉक्सपुर कोरल
- चीन और जापान से कैम्फर लॉरेल
- ऑस्ट्रेलिया से गोल्डन वॉटल