चरमपंथी समूह हमास ने पिछले साल 7 अक्टूबर को दक्षिणी इजरायल पर अटैक कर लगभग 12 सौ लोगों की हत्या कर दी, साथ ही सैकड़ों को बंधक बना लिया था. इसके तुरंत बाद इजरायल ने हमास से जंग शुरू कर दी. चूंकि हमास का ठिकाना गाजा पट्टी है, लिहाजा फिलिस्तीनी नागरिक भी हिंसा का शिकार होने लगे. चार महीने बीतने के बाद भी जंग जारी है. इस बीच ताकतवर देश लगातार इजरायल को टू-स्टेट सॉल्यूशन के लिए मना रहे हैं. खुद यूनाइटेड नेशन्स का मानना है कि ये लड़ाई रोकने का अकेला तरीका है.
क्या है टू-स्टेट सॉल्यूशन
दशकों से चले आ रहे इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के बीच टू-स्टेट की बात शुरू हुई. इस प्लान के तहत फिलिस्तीन को अलग स्टेट बनाने की बात है, जबकि इजरायल अलग रहेगा. इससे दो अलग-अलग कल्चर और धर्म को मानने वाले शांति से अलग रह सकेंगे.
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अभी समस्या ये है कि इजरायल और फिलिस्तीन के बीच कोई सीमा रेखा ही तय नहीं है. इजरायल तो अलग देश है, लेकिन फिलिस्तीन अलग मुल्क नहीं. येदो हिस्सों में बंटा हुआ है. एक हिस्से पर इस्लामी चरमपंथी संगठन हमास का कब्जा है, जिसे इजरायल समेत कई देश आतंकी संगठन मानते हैं. दूसरा हिस्सा वेस्ट बैंक हैं, जिसपर सरकार तो अलग है, लेकिन इजरायल का सिक्का चलता है.
साल 1991 में अमेरिका की मध्यस्थता के बाद मैड्रिड शांति सम्मेलन में टू-स्टेट सॉल्यूशन की बात उठी. वैसे इससे पहले भी यूएन ये कह चुका था, लेकिन अमेरिकी दखल के बाद इसपर चर्चा बढ़ी. माना जा रहा है कि अलग-अलग होकर रहना ही अकेला हल है, जो इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शांति ला सकेगा.
तब परेशानी क्या है
टू-स्टेट सॉल्यूशन में सबसे बड़ी दिक्कत सीमाओं की है. दोनों के बॉर्डर लगातार बदलते रहे. इजरायल के आजाद देश बनने के बाद यूएन ने फिलिस्तीन की भी सीमा तय की थी, जिसे ग्रीन लाइन कहा गया. ये लाइन केवल फिलिस्तीन नहीं, बल्कि बाकी अरब देशों से भी इजरायल को अलग करती है. लेकिन साल 1967 में अरब देशों ने मिलकर इजरायल पर हमला कर दिया.
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युद्ध में जीत के बाद इजरायल ने अपनी सीमाओं का विस्तार कर लिया. इसमें वर्तमान के वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी, ईस्ट येरूशलम और गोलन हाइट्स भी शामिल हैं.
दोनों की सीमाएं कैसे और कौन तय करेगा
समस्या ये है कि टू-स्टेट के बारे में सोचते हुए इजरायल का बॉर्डर कहां तक माना जाए. अगर 1948 की सीमा को माना जाए तो इजरायल कभी राजी नहीं होगा. वो येरूशलम को पूरी तरह अपना हिस्सा मानता है. यहां तक कि ये जगह उनकी आस्था का भी केंद्र है.
यही हाल गाजा का भी है. वहां के फिलिस्तीनी भी येरूशलम से मजहबी जुड़ाव रखते हैं. ऐसे में टू-स्टेट में जाएं तो येरूशलम को बांटना होगा, जो कि प्रैक्टिकल तौर पर भी मुमकिन नहीं, और न ही इजरायल इसकी अनुमति दे सकेगा.
इसके अलावा हमास समेत बाकी चरमपंथी गुट भी बखेड़ा कर रहे हैं. उनकी दलील है कि टू-स्टेट सॉल्यूशन के चलते फिलिस्तीनी लोग उस जमीन को हमेशा के लिए खो देंगे, जिसपर साल 1948 की जंग के बाद इजरायल ने कब्जा कर लिया था.
फिलिस्तीनी गुटों की भी अलग-अलग राय
गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में भी आपसी तालमेल नहीं है. वे टू-स्टेट को अलग-अलग तरह से देखते हैं. वेस्ट बैंक में अलग फिलिस्तीन की मांग करने वाले मौजूदा ढांचे को ही मान लेने की बात करते हैं ताकि ज्यादा संघर्ष न हो. वहीं गाजा में चमरपंथी समुदायों का बोलबाला है, जो येरूशलम को भी अपने पास चाहते हैं. ये भी टू-स्टेट सॉल्यूशन में अड़ंगा डाल सकता है, जो कि ओस्लो अकॉर्ड के समय दिखा था.
ओस्लो समझौता भी हुआ था
नब्बे के दशक में इजरायल और फिलिस्तीन टू-स्टेट की तरफ लगभग बढ़ आए थे. ये ओस्लो समझौता कहलाता है, जब दोनों जगहों के मौजूदा लीडर बातचीत को राजी हो चुके थे. हालांकि दोनों ही तरफ के चरमपंथियों को ये रास नहीं आया. वे आपस में कोई छूट देने को तैयार नहीं थे. इस बीच इजरायली प्रधानमंत्री यित्हाक रॉबिन की हत्या हो गई. इसके बाद तनाव इतना बढ़ गया कि समझौते पर बात रुक गई.
क्यों अपनाया जाता है टू-स्टेट सॉल्यूशन
इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में टू-स्टेट सॉल्यूशन काफी बड़ी चीज है. ये किसी देश को संप्रभुता का हक देता है. इससे वहां की सरकार का देश के भीतर और सीमाओं पर पूरा अधिकार हो जाता है कि वो अपने लिए बेहतर फैसले ले सके. इसी के चलते देश तय कर सकते हैं कि वे दूसरे देशों से कैसे संबंध रखेंगे. जब तक इसमें हिंसा न हो, किसी देश को दूसरे से दूरी रखने, या व्यापार न करने का भी हक शामिल है. अक्सर ये समाधान विवादित सीमाओं के बीच रखा जाता है.