समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लेकर फिर से चर्चा तेज हो गई है, दरअसल 22वें विधि आयोग ने UCC पर जनता से एक महीने में राय मांगी है. आयोग द्वारा जारी आधिकारिक ईमेल आइडी membersecretary-lci@gov.in पर धार्मिक संगठन या व्यक्ति अपने सुझाव भेज सकते हैं. आयोग ने सात साल पहले यानी 2016 में भी जनता से राय ली थी. मार्च 2018 में उसने अपनी रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें गया कहा था कि फिलहाल समान नागरिक संहिता यानी कॉमन सिविल कोड की जरूरत देश को नहीं है.
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मतलब एक देश, एक कानून यानी देश में रहने वाले सभी नागरिकों (हर धर्म, जाति, लिंग के लोग) के लिए एक कानून होना. अगर सिविल कोड लागू होता है तो विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे तमाम विषयों में नागरिकों के लिए एक से कानून होंगे. संविधान के चौथे भाग में राज्य के नीति निदेशक तत्व का विस्तृत ब्यौरा है जिसके अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है.
अनुच्छेद 44 उत्तराधिकार, संपत्ति अधिकार, शादी, तलाक और बच्चे की कस्टडी के बारे में समान कानून की अवधारणा पर आधारित है. वैसे भारत में केवल गोवा राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है. सवाल यह है कि गोवा यह कैसे लागू है? क्या दुनिया के किसी और देश में Uniform Civil Code लागू है? अगर भारत में इसे लागू कर दिया जाता है तो इसके क्या परिणाम होंगे?
भारतीय संविधान में गोवा को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है. साथ ही संसद ने कानून बनाकर गोवा को पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का अधिकार दिया था. यह सिविल कोड आज भी गोवा में लागू है. इसको गोवा सिविल कोड के नाम से भी जाना जाता है. गोवा में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई समेत सभी धर्म और जातियों के लिए एक फैमिली लॉ है. यानी शादी, तलाक और उत्तराधिकार के कानून हिंदू, मुस्लिम और ईसाई सभी के लिए एक समान हैं. गोवा में किसी मुस्लिम को तीन बार बोलकर अपनी पत्नी को तलाक देने का हक नहीं हैं. इसके अलावा शादी तभी कानूनी तौर पर मान्य होगी, जब उसका रजिस्ट्रेशन कराया जाएगा. अगर गोवा में एक बार शादी का रजिस्ट्रेशन हो जाता है, तो तलाक सिर्फ कोर्ट से ही मिलता है.
गोवा में संपत्ति पर पति और पत्नी का समान अधिकार है. हिंदू, मुस्लिम और ईसाई के लिए अलग-अलग कानून नहीं हैं. गोवा को छोड़कर देश के बाकी हिस्सों में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई धर्म के लिए अलग-अलग नियम हैं. गोवा में ये भी नियम है कि पैरेंट्स को अपनी कम से कम आधी संपत्ति का मालिक अपने बच्चों को बनाना होगा, जिसमें बेटियां भी शामिल हैं.
गोवा में मुसलमानों को चार शादी करने का अधिकार नहीं है, लेकिन हिंदू पुरुष को दो शादी करने की छूट है. हालांकि इसके लिए कुछ कानूनी प्रावधान भी हैं. अगर हिंदू शख्स की पत्नी 21 साल की उम्र तक बच्चे पैदा नहीं कर पाती है या 30 साल की उम्र तक लड़का पैदा नहीं करती है तो उसका पति दूसरी शादी कर सकता है. वैसे गोवा के सीएम प्रमोद सावंत बता चुके हैं कि साल 1910 के बाद से इस नियम का फायदा किसी भी हिंदू को नहीं मिला है.
देश में ब्रिटिश सरकार ने 1835 में समान नागरिक संहिता (UCC) की अवधारणा को लेकर एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें अपराधों, सबूतों और अनुबंधों जैसे विषयों पर भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता लाने की बात कही गई थीं. हालांकि उस रिपोर्ट में हिंदू व मुसलमानों के पर्सनल लॉ को इस एकरूपता से बाहर रखने की सिफारिश की गई थी.
हालांकि जब व्यक्तिगत मुद्दों से निपटने वाले कानूनों की संख्या बढ़ने लगी तो सरकार को 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिए बी.एन. राव समिति गठित कर दी.
इसी समिति की सिफारिशों के आधार पर हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के लिए निर्वसीयत उत्तराधिकार से संबंधित कानून को संशोधित एवं संहिताबद्ध करने के लिए 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को अपना लिया गया. हालांकि मुस्लिम, इसाई और पारसियों के लिये अलग-अलग व्यक्तिगत कानून लागू रहे.
इस्राइल, जापान, फ्रांस और रूस में समान नागरिक संहिता या कुछ मामलों के लिए समान दीवानी या आपराधिक कानून हैं. यूरोपीय देशों और अमेरिका के पास एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है फिर चाहे उनका धर्म कुछ भी हो. इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है जो सभी व्यक्तियों पर लागू होता है चाहे उनका धर्म कुछ भी हो.
रोम: नागरिक कानून के सिद्धांत रोम में ही बनाए गए थे. रोम के लोगों ने एक कोड विकसित करने के लिए सिद्धांतों का इस्तेमाल किया, जो निर्धारित करता था कि कानूनी मुद्दों का फैसला कैसे किया जाएगा. उन्होंने इसे जूस सिविले कहा. 527 CE में सम्राट जस्टिनियन ने इस संहिता का बनाया था. रोमन कानून को बाद में कई दूसरे देशों ने भी लागू किया. हालांकि समय के साथ उसकी व्याख्या और विकास किया गया. न्यायविदों की पीढ़ियों ने मौजूदा हालात के आधार पर इसका इस्तेमाल किया.
फ्रांस: दुनिया में सबसे प्रसिद्ध नागरिक संहिताओं में से एक फ्रांस की है. फ्रांस में 1804 की शुरुआत में लागू नेपोलियन सिविल कोड लागू की गई थी. इस नागरिक कानून ने 300 से अधिक स्थानीय नागरिक कानून को बदल दिया. इसने प्रथागत कानून और मौजूदा कानूनी प्रावधानों दोनों को हटा दिया. इसने संपत्ति, वस्तुओं, सूदखोरी, सुखभोग, उत्तराधिकार, वसीयत, उपहार, अनुबंध और अर्ध-अनुबंधों के एक विशाल क्षेत्र को अपने में समाहित कर लिया. फ्रांसीसी कोड ने विशेषाधिकार और समानता, रीति-रिवाजों और कानूनी आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित किया.
अमेरिका: अमेरिका में भी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है, जबकि भारत की तरह यहां भी बहुत विविधता है. यहां कानून की कई परतें हैं, जो देश, राज्य और काउंटी, एजेंसियों और शहरों में अलग-अलग लागू होती हैं. राज्यों में खुद के सुप्रीम कोर्ट के अलावा स्वतंत्र कानूनी संस्थाएं हैं, जो अपनी खुद की प्रथाओं और लीगल कन्वेंशन्स का पालन करती हैं. ये सामान्य सिद्धांत नागरिक कानूनों को राज्यों में इस तरह से नियंत्रित करते हैं जो पूरे देश में लागू होते हैं. केवल संघीय प्रकृति के मुद्दे या सुरक्षा, कराधान, सामान्य कानूनी मुद्दे जैसे मुद्दे जो पूरे देश को प्रभावित करते हैं, उन्हें संघीय सर्वोच्च न्यायालय निपटाती है.
मुस्लिम देश: मुस्लिम देशों में पारंपरिक रूप से शरिया कानून लागू है, जो धार्मिक शिक्षाओं, प्रथाओं और परंपराओं से लिया गया है. न्यायविदों द्वारा आस्था के आधार पर इन कानून की व्याख्या की गई है. हालांकि, आधुनिक समय में इस तरह के कानून को संशोधित किया गया है या यूरोपीय मॉडल से प्रभावित होकर नियमों को संशोधित कर दिया गया है. दुनिया के इस्लामिक देशों में आमतौर पर पारंपरिक शरिया कानून पर आधारित नागरिक कानून लागू हैं. इन देशों में सऊदी अरब, तुर्की, पाकिस्तान, मिस्र, मलेशिया, नाइजीरिया आदि देश शामिल हैं.
- अलग-अलग धर्मों के पर्सनल लॉ खत्म होने से न्यायपालिका पर से बोझ कम होगा.
- विवाह, विरासत और उत्तराधिकार समेत विभिन्न मुद्दों से संबंधित जटिल कानून आसान हो जाएंगे.
- धर्म या व्यक्तिगत कानूनों के आधार पर भेदभाव खत्म होगा. महिलाओं और अल्पसंख्यकों को समान अधिकार और सुरक्षा मिलेगी.
- तीन तलाक जैसी धार्मिक रूढ़ियां खत्म होंगी.
- यूसीसी से धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा. व्यक्तिगत कानून प्रभावित होंगे.
- सभी धर्मों पर हिंदू पर्सनल लॉ लागू करने के आरोप लगेंगे.
- धर्मिक स्वतंत्रता, समानता और प्रचार को लेकर बहस छिड़ जाएगी. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, जो किसी भी धर्म को मानने और प्रचार की स्वतंत्रता को संरक्षित करता है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता की अवधारणा के विरुद्ध है.
- दक्षिण और उत्तर के राज्यों में हिंदू समाज में कई रिवाजों में विभिन्नताएं हैं. जैसे उत्तर में रिश्तेदारों के बीच विवाह नहीं होते हैं लेकिन दक्षिण में इसे शुभ माना जाता है. जैसे दक्षिण में मामा-भांजी का विवाह होता है. ऐसे में समानता कैसे आएगी.
- इसी तरह नगालैंड, मेघालय और मिजोरम के स्थानीय रीति-रिवाजों को संविधान द्वारा सुरक्षा दी गई है. ऐसे में एकरूपता कैसे आएगी.
- सामाजिक सुधार की आड़ में अल्पसंख्याकों पर बहुसंख्यकों के कानून लागू करने के आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो जाएंगे.