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ममता बनर्जी पर दिलीप घोष के असंसदीय बोल, क्या हैं वो शब्द जो नहीं बोल सकते लीडर, काफी लंबी है लिस्ट

बीजेपी नेता दिलीप घोष ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर विवादित बयान दे दिया. इसपर बीजेपी ने उन्हें असंसदीय शब्द के इस्तेमाल को लेकर नोटिस दिया है. कुछ खास तरह के शब्द या बातें संसद की बोलचाल में उपयोग नहीं होतीं, न ही लीडर ऐसी बातें पब्लिक फोरम में बोल सकते हैं. असंसदीय शब्दों पर एक बुकलेट भी है, जिसमें लगातार नए शब्द जुड़ रहे हैं.

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नेता सार्वजनिक मंच या संसद में कई शब्द नहीं बोल सकते. (Photo- India Today)
नेता सार्वजनिक मंच या संसद में कई शब्द नहीं बोल सकते. (Photo- India Today)

पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के फैमिली बैकग्राउंड पर बीजेपी के सांसद दिलीप घोष की टिप्पणी विवादों में है. ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने सांसद के खिलाफ इलेक्शन कमीशन में शिकायत की. यहां तक कि घोष को उनकी अपनी ही पार्टी ने कारण बताओ नोटिस दे दिया. नोटिस में कहा गया कि घोष की कमेंट अशोभनीय और असंसदीय है. असंसदीय- ये शब्द अक्सर कहा-सुना जाता है. क्या इसका संबंध केवल संसद से है? क्या हैं वे शब्द, जिन्हें इस श्रेणी में रखा जाता है? यहां समझिए. 

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घोष ने आखिर क्या कहा था

भाजपा नेता दिलीप घोष ने ममता बनर्जी पर विवादास्पद बयान देते हुए कहा था कि वे खुद को कभी गोवा की बेटी बताती हैं तो कभी त्रिपुरा की बेटी. वे ये बताएं कि उनके असली पिता कौन हैं. किसी की भी बेटी होना ठीक नहीं है. 

सरनेम के चलते फंस गए थे ये नेता

शिवसेना से जुड़े हेमंत तुकाराम गोडसे जब साल 2014 में नासिक से चुनकर संसद पहुंचे तो खुद को अजीबोगरीब स्थिति में पाया. उनका सरनेम असंसदीय की श्रेणी में था. असल में साल 1956 में एक बिल पर बहस के दौरान एक सांसद ने गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का जिक्र किया था. पार्लियामेंट के पीठासीन अधिकारी ने ये सरनेम उस दिन हुई बहस से हटा दिया था. साथ ही इस टाइटल को असंसदीय शब्दों की लिस्ट में डाल दिया.

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हेमंत तुकाराम गोडसे के आने के बाद भी राज्य सभा के पीठासीन अधिकारी ने सदन की कार्यवाही से गोडसे शब्द हटा दिया. इसके बाद सांसद ने दोनों सदनों को चिट्ठी लिखी, जिसमें अपने सरनेम को असंसदीय शब्दों की लिस्ट से हटाने का आग्रह था, जिसे माना भी गया. इस बात का जिक्र इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में दिखता है. 

hemant godse photo facebook
हेमंत तुकाराम गोडसे.

ये तो हुई एक घटना, लेकिन संसद में बहुत से ऐसे शब्द या बातें हैं, जिन्हें बोलना वर्जित है. सांसदों के पास फ्रीडम ऑप स्पीच तो है, पर उतनी ही, जितने में किसी की डिग्निटी या भावनाएं आहत न हों. 

शब्दों के साथ कहावतें-मुहावरे भी शामिल

रोज सदन की कार्यवाही रिकॉर्ड होती है. पीठासीन अधिकारी के पास ये हक है कि वो इसमें से असंसदीय बातें या शब्द हटा दे. सांसद खुद भी ऐसे शब्दों को हटाने को कह सकते हैं. ये हिंदी-अंग्रेजी या किसी भी भाषा के हो सकते हैं. इसमें कहावतें, मुहावरें भी शामिल हैं, जो किसी को चोट पहुंचाते हों. या किसी खास कल्चर में जिसे खराब माना जाता हो. 

साल 1999 में निकली थी पहली लिस्ट

लोकसभा सचिवालय ने इसे लेकर एक बुकलेट निकाली, जिसका टाइटल है- अनपार्लियामेंट्री एक्सप्रेशन्स. पहली बार इसे साल 1999 में छापा गया था. इसमें पुरानी बहसों को संदर्भ के तौर पर लिया गया है. ये एक तरह की नियमावली है, जो हरेक सांसद को पता होनी चाहिए. असंसदीय शब्दों की लिस्ट दो हिस्सों में बंटी हुई है. पहले पार्ट में अंग्रेजी के शब्द हैं, जबकि दूसरे में हिंदी. बाकी भाषाओं के शब्दों-एक्सप्रेशन का जिक्र भी अंग्रेजी में है. 

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unparliamentary words indian parliament amid dilip ghosh remarks on mamata banerjee photo PTI
दिलीप घोष को असंसदीय शब्दों के प्रयोग पर नोटिस मिला है. 

ये हैं हिंदी के कुछ शब्द

जुमलाजीवी, बाल बुद्धि, कोविड स्प्रेडर, शर्मनाक, धोखा, चमचागिरी, स्नूपगेट, तानाशाह, शकुनी, अनपढ़, अनर्गल, अहंकार, औकात जैसे कई शब्द हैं, जो लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही जगहों पर बहस में नहीं बोले जा सकते. नाटकबाजी, झूठा, धोखा, उचक्का, नस्लभेदी जैसे वर्ड्स भी इसी श्रेणी में हैं. 

इन वाक्यों का प्रयोग भी मना

फ्रेज की बात करें तो काला दिन, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, बहरी सरकार, तलवे चाटना, कांव-कांव करना, कई घाट का पानी पीना, घड़ियाली आंसू, गुंडों की सरकार, घास छीलना, घिग्घी बंधना, चोर-चोर मौसेरे भाई, छाती कूटना, ठेंगा दिखाना, ढिंढोरा पीटना और झूठ का पुलिंदा जैसी बातें नहीं कही जा सकतीं. 

अंग्रेजी के कुछ एक्सप्रेशन ऐसे हैं

यू हैव डबल स्टैंडर्ड्स, यू हैव टू बी फेयर, डोन्ट ट्राय टू गैग माय माउथ, बीटन विद शूज, ब्लडशेड, ब्लडी, ब्लडी ओथ, करप्ट, क्रुअल, डिसीव्ड, डॉग, ड्रामा, मिसलीड. ये सारे शब्द अल्फाबेट में अरेंज किए हुए हैं, मतलब ए से लेकर जेड तक. साथ ही शब्द के बगल में ये भी लिखा हुआ है कि वो कब और कहां, किस दौरान बोला गया था. विदेशी संसदों में बोले गए शब्द भी इसका हिस्सा हैं. 

unparliamentary words indian parliament amid dilip ghosh remarks on mamata banerjee photo India Today

कैसे बनती है लिस्ट

- अगर कोई सदस्य ऐसा शब्द बोले, जो किसी को परेशान करे, या सदन की मर्यादा को तोड़ता हो, तो रिपोर्टिंग सेक्शन उसे पीठासीन अधिकारी या स्पीकर को भेजता है. साथ में पूरा संदर्भ रखते हुए उस शब्द को हटाने का आग्रह रहता है. 

- लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन नियम 380 के तहत, स्पीकर के पास ऐसे वर्ल्ड को हटाने का अधिकार है. 

- स्पीकर के शब्द हटाने पर हामी के बाद रिपोर्टिंग सेक्शन उस शब्द को सदन की कार्यवाही के रिकॉर्ड से भी हटा देता है. 

- सेशन खत्म होने के बाद हटाए गए एक्सप्रेशन्स की लिस्ट उसकी वजहों के साथ स्पीकर के दफ्तर, एडिटोरियल सर्विस सेक्शन और संसद टीवी में भेजी जाती है. 

- साथ में एक फुटनोट भी रहता है कि इसे स्पीकर ने खुद हटाया है. 

- एडिटोरियल सर्विस सेक्शन ऐसे शब्दों की लिस्ट तैयार करता और उसे लोकसभा और राज्यसभा में भेजता है ताकि पुरानी लिस्ट अपडेट हो सके. 

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हर देश की संसद में कई शब्दों या कहावतों-मुहावरों को अशोभनीय या असंसदीय माना गया है. इन्हें सदन की बोलचाल की भाषा से दूर रखा जाता है. समय-समय पर लीडर्स को इस बारे में चेतावनी भी मिलती रहती है. 

क्या असंसदीय शब्द बोलने पर कोई एक्शन भी

संविधान के आर्टिकल 105(2) के अनुसार, इसे लेकर कोर्ट में मुकदमा नहीं चलता. मेंबर ऑफ पार्लियामेंट को केवल उसकी पार्टी या विपक्षी पार्टी लताड़ लगा सकती है. कारण बताओ नोटिस दिया जा सकता है. उचित वजह न दिखने पर पार्टी संबंधित नेता पर कार्रवाई कर सकती है. फिलहाल टीएमसी ने चुनाव आयोग से भी दिलीप घोष की शिकायत की है. इसपर आयोग भी कोई फैसला ले सकता है. हालांकि चुनाव के मौसम या बेमौसम भी अक्सर ऐसे शब्द कहे जाते रहे, जिनपर कोई सख्त या मिसाल माने जाने लायक एक्शन नहीं दिखा.

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