
बहुमत से थोड़ी कम सीटें जीतकर तीसरी बार सत्ता में आई मोदी सरकार कई चौंकाने वाले फैसले ले चुकी है. इन्हीं फैसलों में से एक है नई पेंशन योजना का ऐलान. मोदी सरकार ने पिछले हफ्ते ही एक नई पेंशन योजना को मंजूरी दी है, जिसे 'यूनिफाइड पेंशन स्कीम' या 'UPS' नाम दिया गया है. सरकार ने ये ऐलान ऐसे वक्त किया है, जब लंबे समय से कर्मचारी संगठन और विपक्षी पार्टियां पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) को लागू करने की मांग कर रही हैं. रिटायर होने पर फिलहाल नेशनल पेंशन स्कीम यानी NPS के तहत पेंशन मिलती है. ये स्कीम जनवरी 2004 से लागू है.
UPS में रिटायरमेंट के बाद एक निश्चित पेंशन की व्यवस्था की गई है जबकि, NPS में ऐसा नहीं था. NPS में कर्मचारियों से हर महीने उनकी सैलरी का 10% जमा कराया जाता था. इसमें सरकार भी 14% कंट्रीब्यूट करती थी, जिसे शेयर मार्केट में इन्वेस्ट किया जाता था. रिटायरमेंट के बाद जो भी पेंशन बनती थी, वो कर्मचारियों को एकमुश्त मिल जाती थी. UPS में हर महीने एक निश्चित पेंशन की व्यवस्था की गई है. सरकार का कंट्रीब्यूशन भी बढ़ाकर 18.5% किया गया है. इसके अलावा, अगर कर्मचारी की मौत हो जाती है, तो उसके परिवार को उसकी पेंशन का 60% हर महीने मिलता रहेगा.
विपक्ष ने मोदी सरकार के इस ऐलान पर सवाल उठाए हैं. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने लिखा कि 'UPS में U का मतलब मोदी सरकार का यू-टर्न है. चार जून के बाद जनता की ताकत प्रधानमंत्री के सत्ता के अहंकार पर हावी हो गई है.'
विपक्ष का ये आरोप बेवजह नहीं है. लोकसभा चुनाव और उससे पहले कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में OPS एक बड़ा मुद्दा रहा. जिन राज्यों में कांग्रेस या विपक्षी पार्टी की सरकार बनी, वहां OPS लागू भी कर दी गई. 2022 में हिमाचल में कांग्रेस की सरकार आने के बाद यहां फिर OPS को लागू कर दिया गया. इसी तरह पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद OPS के तहत ही पेंशन दी जाने लगी.
इसी साल जून में बजट से पहले कई ट्रेड यूनियनों ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की थी और उनसे NPS खत्म कर OPS को लागू करने की मांग की थी. अब UPS का फैसला ऐसे वक्त लिया गया, जब हफ्तेभर पहले ही जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ है. इसी साल के आखिरी में महाराष्ट्र और झारखंड में भी चुनाव होने हैं. अगले साल की शुरुआत में दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव हैं. ये वो राज्य हैं, जहां केंद्र सरकार के कर्मचारियों की संख्या ठीक-ठाक है.
पेंशन के बाद MSP की लीगल गारंटी की बारी?
पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल करने की मांग के बीच सरकार ने UPS का ऐलान कर दिया, तो क्या अब किसानों को MSP की लीगल गारंटी पर भी खुशखबरी मिल सकती है? क्योंकि MSP एक ऐसा मुद्दा है, जो आगे चलकर सरकार के लिए गले की फांस बन सकता है. किसान लंबे समय से फसलों के लिए MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं. MSP फसलों की एक न्यूनतम कीमत होती है. MSP की लीगल गारंटी की मांग ऐसी है, जिसे लेकर किसान आंदोलन करते रहे हैं.
इंडिया टुडे के मूड ऑफ द नेशन सर्वे में शामिल 87% लोगों ने माना है कि किसानों को MSP की लीगल गारंटी मिलनी चाहिए. MSP की लीगल गारंटी की मांग ने तब और जोर पकड़ लिया, जब नवंबर 2020 में किसानों ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था. लगभग सालभर चले इस आंदोलन के बाद सरकार ने इन तीनों कानूनों को वापस ले लिया था लेकिन MSP की लीगल गारंटी का मसला अब भी सुलझा नहीं है.
MSP को लेकर सरकार की ओर से कई फॉर्मूले भी दिए गए, लेकिन किसान इसकी लीगल गारंटी से कम पर मानने वाले नहीं हैं. इसी मांग को लेकर इसी साल फरवरी में किसानों ने दिल्ली कूच का ऐलान कर दिया था. अब भी किसान शंभू बॉर्डर पर डटे हुए हैं.
एग्रीकल्चर एक्सपर्ट देविंदर शर्मा ने सवाल किया है कि 'जब कर्मचारियों को हर महीने निश्चित पेंशन मिल सकती है तो किसानों को कानूनी रूप से निश्चित MSP क्यों नहीं मिलनी चाहिए?' उन्होंने UPS को MSP से जोड़ते हुए कहा, 'अगर बाजार से जुड़ी पेंशन कर्मचारियों के लिए नहीं हो सकती तो ऐसा क्यों सोचते हैं कि बाजार से जुड़ी कीमतें किसानों के लिए काम करेंगी?'
हालांकि, जिस तरह से सरकार ने पेंशन के मुद्दे को हैंडल किया है, उससे उम्मीद जगी है कि MSP का मुद्दा भी सुलझा लिया जाएगा. MSP को लेकर सरकार ने जुलाई 2022 में एक समिति भी बनाई थी. इस समिति ने अब तक किसान संगठनों के साथ तीन दर्जन से ज्यादा बैठक की है. उम्मीद है कि पेंशन की तरह ही MSP की लीगल गारंटी का भी कोई रास्ता निकल सकता है.
फिर अग्निवीर में भी होगा कुछ बदलाव?
तीनों सेनाओं में चार साल की भर्ती के लिए जून 2022 में अग्निपथ योजना आई थी. इसके तहत 17.5 से 21 साल के युवाओं को तीनों सेनाओं में भर्ती किया जाता है.
अग्निपथ योजना जब से आई है, तब से ही इसे लेकर विवाद रहा है. जब अग्निपथ योजना का ऐलान किया गया था, तब देशभर में युवाओं ने विरोध प्रदर्शन भी किया था. विपक्ष भी अग्निवीर पर सरकार को घेरता रहा है. लोकसभा चुनाव में अग्निवीर भी एक बड़ा मुद्दा बना था.
अग्निवीर के विरोध की सबसे बड़ी वजह ये है कि चार साल बाद 75% अग्निवीरों को रिटायर कर दिया जाएगा, क्योंकि 25% को ही सेना में बरकरार रखा जाएगा. इन रिटायर अग्निवीरों को पेंशन की गारंटी नहीं है.
हालांकि ये भी सही है कि इंडिया टुडे के मूड ऑफ द नेशन सर्वे में 65 फीसदी लोगों ने अग्निवीर योजना को सही माना था. इनमें से 27% ने अग्निवीर योजना को बिना किसी बदलाव के जारी रखने की बात कही थी. जबकि, 38% ऐसे थे जिनका मानना था कि कुछ बदलावों के साथ इसे जारी रखा जाना चाहिए.
लोकसभा चुनाव के बाद, अग्निवीरों के लिए सरकार ने कुछ रियायतों का ऐलान भी किया है. बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ जैसी पैरामिलिट्री फोर्सेस में अग्निवीरों को 10% आरक्षण का ऐलान किया गया है. इसके अलावा, कई राज्य सरकारों ने पुलिस भर्ती में भी अग्निवीरों को आरक्षण देने का वादा किया है.
अब जब सरकार पेंशन को लेकर नई स्कीम का ऐलान कर चुकी है. MSP की लीगल गारंटी पर समिति काम कर रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार अग्निवीर योजना में कुछ बदलाव कर सकती है? ताकि विपक्ष इसका विरोध कर मुद्दा न बना सके.
दो मुख्य बदलावों का है इंतजार
अग्निवीर योजना में जिन बड़े बदलावों की सबसे ज्यादा उम्मीद जताई जा रही है उनमें अग्निवीरों के कार्यकाल और उनके सेना में स्थायी होने की संभावना को बढ़ाना शामिल है. माना जा रहा है कि सरकार अग्निवीरों की सर्विस का कार्यकाल 4 साल से थोड़ा और बढ़ा दे तो इस योजना का विरोध कुछ हद तक मंद पड़ सकता है. एक विचार ये भी है कि सर्विस से रिटायरमेंट के बाद 25% के बजाय और ज्यादा अग्निवीरों को सेना में स्थाई कर दिया जाए तो अग्निवीरों को पक्की नौकरी की उम्मीद ज्यादा रहेगी और वो इसका विरोध कम कर देंगे.