अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव को अब कुछ ही घंटे बाकी हैं. डोनाल्ड ट्रंप बनाम कमला हैरिस होड़ पर देशों समेत संस्थाओं ने भी अपने-अपने पाले चुन रखे हैं. बस, अब मंगलवार को वोटर भी अपनी पसंद पर मुहर लगा देंगे. यूएस में होने वाला चुनाव बेहद लंबी प्रोसेस है, जिसे पूरा होने में महीनों लगते हैं. लेकिन वहां के लोग वोट कैसे डालते हैं, उन्हें सुरक्षित जगह जमा कराने और गिनने का काम किसका है, और इस सारी प्रक्रिया पर नजर कौन रखता है?
अमेरिका में भी चुनाव आयोग है, जो ये सब देखता है, लेकिन इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया की तरह उसके पास असीमित ताकत और जिम्मेदारियां नहीं.
अमेरिका में चुनाव की प्रक्रिया का संचालन मोटे तौर पर फेडरल इलेक्शन कमीशन करता है. एफईसी एक सरकारी एजेंसी है, जो साल 1974 में बनाई गई थी ताकि चुनावी खर्चों पर लगाम कसी जा सके, और पारदर्शिता भी बनी रहे. शुरुआत में इसका मकसद केवल फेडरल इलेक्शन्स में पैसों पर कंट्रोल करना था ताकि कोई उम्मीदवार ज्यादा पैसे लगाकर वोटरों का मन न बदल सके और चुनाव पारदर्शी रहे. साथ ही सीमित आर्थिक क्षमता के चलते उम्मीदवार छूट न जाएं, ये ध्यान रखना भी इसका काम है.
वक्त के साथ इसकी जिम्मेदारियां भी कुछ बढ़ीं.
- फंडिंग की निगरानी के दौरान एफईसी यह पक्का करता है कि सभी दलों की फंडिंग का रिकॉर्ड जनता के सामने भी हो ताकि उसे पता रहे कि कैंडिडेट के पास किसका सपोर्ट है.
- फंडिंग के लिए बने नियमों का पालन करवाया भी कमीशन का जिम्मा है. अगर कोई नियम तोड़े तो उसपर मोटा जुर्माना लग सकता है.
- किसी पार्टी या उससे जुड़े कैंडिडेट पर चुनावी नियम तोड़ने का आरोप हो तो कमीशन उसकी जांच करती है.
कौन करता है लीड
एफईसी को छह आयुक्तों की एक टीम संभालती है. इन आयुक्तों में से किसी एक को चेयरपर्सन और दूसरे को वाइस चेयरपर्सन के रूप में चुना जाता है. ये पोस्ट हर साल रोटेशन के आधार पर बदलती रहती है ताकि सबको मौका मिले. इनकी नियुक्ति अमेरिकी राष्ट्रपति करते हैं लेकिन सीनेट की मंजूरी के बगैर ये पक्का नहीं हो सकता.
अमेरिका चूंकि बड़ा देश हैं और 50 राज्यों में बंटा है, लिहाजा एक ही बॉडी को चुनाव से जुड़ा सारा जिम्मा नहीं दिया गया. बल्कि हर स्टेट की अपनी प्रोसेस और नियम होते हैं. हालांकि कुछ संघीय संस्थाएं हैं जो ओवरऑल इसपर नजर रखती हैं. एफईसी इन्हीं में से एक है. उसके अलावा कई और संस्थाएं भी अलग-अलग जिम्मेदारियां निभाती हैं.
- इलेक्शन असिस्टेंस कमीशन का काम राज्यों को चुनाव के लिए तकनीकी मदद और प्रशिक्षण देना है. यह वोटिंग टेक्नोलॉजी, वोटिंग के उपकरण जैसे काम संभालती है.
- इसके अलावा हर राज्य के अपने चुनाव आयोग हैं, जिसका काम तय तारीख पर इलेक्शन कराना और नतीजे घोषित करना है.
सीमित है इसकी शक्ति
भारतीय चुनाव आयोग की तुलना में एफईसी की ताकतें काफी सीमित हैं. वो केवल फंडिंग पर नजर रखता है. राजनैतिक फंड में गड़बड़ी की जानकारी पर वो सीधे-सीधे सजा भी नहीं सुना सकता क्योंकि अक्सर इन फैसलों को कोर्ट में चुनौती दे दी जाती है. इससे कमीशन के निर्णय कई बार लंबित रह जाते हैं, या बदल जाते हैं. इसके अलावा चूंकि कमीशन में आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति और सीनेट करती है, लिहाजा उसपर राजनैतिक दबाव भी हो सकता है.
स्टेट कमीशन के पास ज्यादा जिम्मेदारियां
फेडरल कमीशन की बजाए राज्य चुनाव आयोग ज्यादा शक्तिशाली हैं. दरअसल अमेरिका में इलेक्शन का ढांचा ऐसा है कि हर राज्य को अपने मुताबिक नियम बनाने का अधिकार है. यही वोटरों का पंजीकरण करता है. वोटिंग की प्रोसेस से लेकर मतगणना और नतीजे घोषित करने तक सारा काम यही देखता है. स्टेट कमीशन अपनी जरूरत के अनुसार नियम बना सकती है, सेंटर इसमें कोई दखल नहीं देता. हां, इतना जरूर है कि स्टेट कमीशन को भी फेडरल नियमों का पालन करना होता है.