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64 साल पुरानी वो प्रेसिडेंशियल डिबेट जिसने बदल दिया था US का इतिहास, क्या बढ़ जाएगी बाइडेन की चिंताएं?

सितंबर 1960 में रिचर्ड निक्सन और जॉन एफ कैनेडी के बीच टीवी पर डिबेट हुई थी. ये अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के लिए पहली टीवी डिबेट थी. इस डिबेट ने अमेरिका की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया.

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जॉन एफ. कैनेडी और रिचर्ड निक्सन. (फाइल फोटोः Getty Images)
जॉन एफ. कैनेडी और रिचर्ड निक्सन. (फाइल फोटोः Getty Images)

अमेरिका में इस साल राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. इससे पहले गुरुवार रात को मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट हुई. ये डिबेट सीएनएन ने करवाई थी. 

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माना जा रहा है कि पहली डिबेट में रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप डेमोक्रेट जो बाइडेन पर भारी पड़ गए. आमतौर पर माना जाता है कि जो प्रेसिडेंशियल डिबेट जीतता है, राष्ट्रपति भी वही बनता है. हालांकि, दोनों के बीच अगली बहस 10 सितंबर को होगी.

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में प्रेसिडेंशियल डिबेट काफी अहम मानी जाती है. लेकिन एक डिबेट ऐसी भी हुई थी, जिसने रातोरात अमेरिका के इतिहास को बदल डाला था. ये बहस आज से 64 साल पहले रिचर्ड निक्सन और जॉन एफ कैनेडी के बीच हुई थी.

ये अमेरिका के इतिहास में दो राष्ट्रपति उम्मीदवारों के बीच टीवी पर हुई पहली डिबेट थी. टीवी पर ये डिबेट 26 सितंबर 1960 को ब्रॉडकास्ट हुई थी. 

कैनेडी vs निक्सन: एक रात में सब बदल गया!

रिचर्ड निक्सन उस वक्त उपराष्ट्रपति थे. डिबेट के दौरान एक ओर कैनेडी जहां आत्मविश्वास से भरे हुए दिख रहे थे. दूसरी ओर निक्सन घबराए हुए, बीमार और पसीने से लथपथ थे.

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नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर और इतिहासकार एलन श्रोडर ने टाइम मैग्जीन को बताया था कि 'कुछ चीजें होती हैं जिन्हें आप कह सकते हैं कि चीजें बहुत नाटकीय रूप से बदल गईं. इस मामले में भी यही हुआ. सबकुछ एक ही रात में बदल गया था.'

कैनेडी के सामने कई सारी चुनौतियां थीं. वो युवा थे. जबकि, अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए उम्र और अनुभव काफी मायने रखता था. हालांकि, इस टीवी डिबेट ने अमेरिका की किस्मत का फैसला कर दिया. कई जानकारों का मानना है कि इस डिबेट ने चुनावों को कैनेडी के पक्ष में मोड़ दिया था. इस डिबेट में निक्सन हार गए थे.

कैनेडी के स्पीच राइटर टेड सोरेनसेन ने टाइम मैग्जीन को बताया था कि कैसे उन्होंने कैनेडी की मदद की थी और संभावित सवाल भी पूछे. उन्होंने बताया था, 'हम जानते की पहली टीवी डिबेट काफी अहम होने वाली थी, लेकिन हमें इसका आइडिया नहीं था कि ये कितनी अहम साबित होने वाली थी.'

पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट ने अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों पर गहरी छाप छोड़ी. राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार आज भी टीवी डिबेट की गंभीरता से तैयारी करते हैं.

टीवी डिबेट के दौरान जॉन एफ. कैनेडी और रिचर्ड निक्सन. (फाइल फोटोः Getty Images)

निक्सन और कैनेडी में बहस

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टीवी डिबेट में साफ दिख रहा था कि निक्सन बीमार हैं और उनका पसीना बह रहा है. उनका वजन भी कम था और वो अस्पताल से ही लौटे थे. दूसरी तरफ, कैनेडी शांत और आत्मविश्वास से भरपूर थे.

जिन अमेरिकियों ने रेडियो पर बहस को सुना, उनका मानना था कि निक्सन जीत गए हैं. लेकिन जिन्होंने टीवी पर डिबेट देखी, उन्होंने कैनेडी को विजेता माना.

सबसे बड़ा फर्क था कि उस वक्त ज्यादातर अमेरिकियों ने पहली बार टीवी पर डिबेट देखी थी. ये 1960 का वक्त था और तब तक लगभग 88 फीसदी घरों में टीवी थी. कैनेडी की टीम को जल्द ही इस बात का अहसास हो गया था कि वो डिबेट जीत गए हैं.

सोरेनसेन ने बताया था कि 'अगले दिन ओहायो के एक कार्यक्रम में उन्हें सुनने के लिए भीड़ पहले से कहीं ज्यादा थी. तब हमें पता चला कि कैनेडी ने डेमोक्रेटिक पार्टी में अपने लिए समर्थन मजबूत कर लिया है.'

अगली फिर जो डिबेट हुईं, उनमें निक्सन ने कहीं बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन तब तक कैनेडी को लेकर धारणा बन चुकी थी.

कैनेडी ने भी चुनावों में अपनी जीत के लिए टीवी डिबेट की भूमिका को माना. उन्होंने कहा था, 'टीवी ने काफी कुछ बदल दिया था.'

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1979 की अमेरिकी टास्क फोर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि निक्सन-कैनेडी की टीवी डिबेट के बाद से राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवारों के लिए प्रचार का सबसे मजबूत जरिया टीवी को बना दिया है.

वर्जीनिया यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर पॉलिटिक्स के राजनीतिक विश्लेषक लैरी सबाटो ने टाइम को बताया था कि डिबेट ने उम्मीदवारों को दर्शकों से सीधे जोड़ने में अहम भूमिका निभाई.

तभी से ये सारी बातें राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के दिमाग में हैं. जो बाइडेन और डोनाल्ड ट्रंप के दिमाग में यही बातें होंगी. डिबेट के बाद डेमोक्रेट चिंता में हैं, क्योंकि बाइडेन घबराए हुए दिख रहे थे.

क्या घबरा गए थे निक्सन?

द कन्वर्सेशन की रिपोर्ट के अनुसार, कई लोगों ने देखा कि निक्सन और कैनेडी, दोनों ही कैमरे और स्टूडिया की लाइट से घबरा रहे थे. हालांकि, उस वक्त एबीसी न्यूज के डिबेट मॉडरेटर हॉवर्ड के. स्मिथ का कहना था कि कैनेडी की तुलना में निक्सन ज्यादा कंफर्टेबल थे.

हालांकि, कुछ कमेंटेटर्स की राय इससे अलग थे. उस समय के कमेंटेटर वॉल्टर लिपमैन ने कहा था, 'कैमरों ने निक्सन को बीमार दिखाया, जबकि वो ऐसे नहीं थे. उन्हें उनकी उम्र से ज्यादा दिखाया गया था.'

ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि टीवी डिबेट ने चुनाव को कैनेडी के पक्ष में मोड़ दिया और इसकी वजह सिर्फ 26 सितंबर 1960 की रात थी.

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टीवी ने बदली अमेरिकी राजनीति

इतिहासकारों का मानना है कि 1960 की उस रात हुई टीवी डिबेट ने अमेरिकी राजनीतिक को हमेशा के लिए बदल दिया. 

थियोडोर एच व्हाइट ने अपनी किताब 'द मेकिंग ऑफ द प्रेसिडेंट, 1960' में लिखा है कि जब तक डिबेट नहीं हुई थी, तब तक कैनेडी की छवि अपरिपक्व, युवा और अनुभवहीन नेता की थी. लेकिन इसके बाद वो उपराष्ट्रपति निक्सन के बराबर पहुंच गए थे. उन्होंने उस वक्त लिखा था, 'जल्द ही वो (कैनेडी) अमेरिका के राष्ट्रपति बन जाएंगे. इसके लिए टीवी का बहुत-बहुत धन्यवाद.'

टीवी पर होने वाली ये बहस सिर्फ 1960 के चुनाव तक सीमित ही नहीं रही. बल्कि, इस बहस ने बाद के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को इतना डरा दिया कि अगले 16 साल तक कोई बहस नहीं हुई. 

1964 में लिंडन बी जॉन्सन ने बैरी गोल्डवाटर के सामने बहस के लिए आने से मना कर दिया था. 1968 और 1972 में निक्सन ने भी टीवी पर आने से इनकार कर दिया था. टीवी पर बहस 1976 में तब हुई, जब तत्कालीन राष्ट्रपति गेराल्ड फोर्ड ने अपने डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंदी जिमी कार्टर से दो-चार करने का फैसला लिया.

इतिहासकार डेविड ग्रीनबर्ग लिखते हैं कि टीवी के प्रभाव की धारणा ने अमेरिकी राजनीति को बदल दिया. दशकों तक उम्मीदवारों का व्यवहार भी टीवी ने ही तय किया.

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