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24 या 48 घंटे... सुरंग से तो बाहर आ गए, लेकिन घर कब तक जा पाएंगे मजदूर? जानें

उत्तरकाशी की सिल्क्यारा सुरंग में फंसे सभी 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है. ये मजदूर 17 दिन से इस सुरंग में फंसे हुए थे. बाहर आते ही सभी मजदूरों को सबसे पहले अस्पताल ले जाया गया है. जरूरत पड़ने पर इन्हें एयरलिफ्ट कर दूसरे अस्पताल भी ले जाया जा सकता है. लेकिन ऐसे में सवाल उठता है कि ये घर कब तक जाएंगे?

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सुरंग से सभी 41 मजदूर सुरक्षित बाहर आ गए हैं.
सुरंग से सभी 41 मजदूर सुरक्षित बाहर आ गए हैं.

जिंदगी आखिरकार जीत ही गई... 17 दिन से उत्तरकाशी की सिल्क्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूर आज बाहर आ ही गए. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने इन मजदूरों का स्वागत किया.

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मजदूरों को सुरंग से बाहर निकालने के लिए एनडीआरएफ की तीन टीमें अंदर गई थीं. उसके बाद एक-एक कर सभी मजदूरों को 800 मिलीमीटर मोटे रेस्क्यू पाइप के जरिए बाहर निकाला गया. 

बाहर आने के बाद मजदूरों को सबसे पहले सुरंग के अंदर ही बनाई गई मेडिकल फैसिलिटी में रखा गया. इसके बाद उन्हें एम्बुलेंस से अस्पताल ले जाया गया. एम्बुलेंस को जाने में आसानी हो, इसलिए बीआरओ ने सड़क भी बना दी थी.

अभी कहां जाएंगे मजदूर?

सुरंग से बाहर निकलने के बाद सबसे पहले मजदूरों का चेकअप किया गया. मजदूरों को अस्पताल ले जाने के लिए पहले से ही सुरंग के बाहर 41 एम्बुलेंस खड़ी हुई थीं. 

बाहर आते ही मजदूरों को एम्बुलेंस के जरिए चिन्यालीसौड़ के कम्युनिटी हेल्थ सेंटर ले जाया गया. ये जगह सुरंग से लगभग 30 किलोमीटर दूर है. डॉक्टर्स की निगरानी में सभी का इलाज किया जाएगा.

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कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में ऑक्सीजन सपोर्ट के साथ 41 बेड तैयार किए गए हैं. यहीं मजदूरों का इलाज होगा.

घर कब तक पहुंचेंगे मजदूर?

अभी मजदूरों को अपने घर जाने के लिए थोड़ा और इंतजार करना होगा. एनडीएमए के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) सैयद अता हसनैन ने बताया था कि बाहर आने के बाद अगले 48 से 72 घंटे तक मजदूरों को डॉक्टरों की निगरानी में रखा जाएगा. 

सरकारी बयान के मुताबिक, डॉक्टरों और हेल्थ एक्सपर्ट की टीम को भी स्टैंडबाय पर रखा गया है. एम्स ऋषिकेश भी अलर्ट मोड पर है.

अगर किसी मजदूर को कोई दिक्कत होती है या फिर चिन्यालीसौड़ में इलाज की जरूरत पूरी नहीं हो पाती है, तो फिर एयरलिफ्ट कर दूसरे अस्पताल भी ले जाया जा सकता है. इसके लिए वायुसेना के चिनूक हेलिकॉप्टर को रखा गया है.

हालांकि, एम्स ऋषिकेश के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नरिंदर कुमार ने बताया कि मजदूरों को यहां तभी लाया जाएगा, जब उत्तरकाशी जिला अस्पताल में इलाज की जरूरतें पूरी नहीं होंगी.

रैट माइनर्स ने 24 घंटे में बदली स्थिति

सोमवार को 48 मीटर हॉरिजोंटल ड्रीलिंग के दौरान अमेरिका से आई ऑगर मशीन खराब हो गई थी. इसके बाद रैट माइनर्स को बुलाया गया था.

रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटी दो प्राइवेट कंपनियों ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विसेस और नवयुग इंजीनियर्स ने रैट माइनिंग करने वाले 12 एक्सपर्ट्स को बुलाया था. 

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सोमवार शाम से इन रैट माइनर्स एक्सपर्ट ने हॉरिजोंटल ड्रीलिंग साइड से ही हाथों से खुदाई शुरू की. और 24 घंटे में ही 12 मीटर तक खुदाई तक कर दी. इसी वजह से मजदूरों तक पहुंचना संभव हो सका.

रैट माइनिंग का काम तीन चरणों में होता है. एक व्यक्ति खुदाई करता है, दूसरा मलबा जमा करता है और तीसरा उसे बाहर करता है. 

एनडीएमए के सदस्य सैयद अता हसनैन ने कहा था कि 24 घंटे से भी कम समय में 10 मीटर की खुदाई करके रैट माइनर्स ने अभूतपूर्व काम किया है.

12 नवंबर से फंसे थे मजदूर

ये हादसा दिवाली के दिन यानी 12 नवंबर को हुआ था. ये मजदूर इसी सुरंग में काम कर रहे थे. तभी सुरंग धंस गई और मजदूर 60 मीटर लंबी मलबे की दीवार के पीछे धंस गए. उसके बाद से ही इन मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए तेजी से ऑपरेशन चलाया जा रहा था.

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