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क्या है फॉस्फोरस बम, जो हवा से सारी ऑक्सीजन सोखकर हड्डियों को गला देता है, इजरायल पर लगा इस्तेमाल का आरोप

फिलिस्तीनी आतंकी गुट हमास ने शनिवार को इजरायल पर खतरनाक हमला किया, जिसमें सैकड़ों नागरिक मारे गए. इसके बाद से दोनों के बीच जंग जारी है. इस बीच फिलिस्तीन ने वीडियो जारी करते हुए आरोप लगाया कि इजरायल उसके लोगों पर वाइट फॉस्फोरस बम का इस्तेमाल कर रहा है. वीडियो सालों पुराना निकला, लेकिन फॉस्फोरस बम पर बात जारी है. रूस पर भी इस हथियार के इस्तेमाल का आरोप लगा था.

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फिलिस्तीन और इजरायल के बीच जंग. सांकेतिक फोटो (AP)
फिलिस्तीन और इजरायल के बीच जंग. सांकेतिक फोटो (AP)

फिलिस्तीन और इजरायल में जंग खतरनाक हो चुकी है. छोटे से आतंकी संगठन हमास के बारे में शक जताया जा रहा है कि उसे कई बड़ी ताकतें सपोर्ट कर रही हैं ताकि इजरायल को नुकसान पहुंचाया जा सके. अपने सैकड़ों लोगों को गंवा चुका इजरायल जमकर मुकाबला कर रहा है. इसी बीच फिलिस्तीन ने आरोप लगाया कि इजरायल उसकी घनी आबादी वाले इलाकों पर प्रतिबंधित फॉस्फोरस बम गिरा रहा है. उसने इजरायल को वॉर क्रिमिनल तक कह दिया.

क्या है ये बम, जिसपर इतना हल्ला मचा

वाइट फॉस्फोरस बम सफेद फॉस्फोरस और रबर को मिलाकर तैयार होता है. फॉस्फोरस मोम जैसा केमिकल है, जो हल्का पीला या रंगहीन होता है. इससे सड़े हुए लहसुन जैसी तेज गंध आती है. इस रासायनिक पदार्थ की खूबी ये है कि यह ऑक्सीजन के संपर्क में आते भी आग पकड़ लेता है, और फिर ये पानी से भी बुझाया नहीं जा सकता. यही बात इसे बेहद खतरनाक बनाती है. 

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ऑक्सीजन को खत्म करने लगता है

ऑक्सीजन के लिए रिएक्टिव होने की वजह से जहां भी गिरता है, उस जगह की सारी ऑक्सीजन तेजी से सोखने लगता है. ऐसे में जो लोग इसकी आग से नहीं जलते, वे दम घुटने से मर जाते हैं. ये तब तक जलता रहता है, जब तक कि पूरी तरह से खत्म न हो जाए. यहां तक कि पानी डालने पर भी ये आसानी से नहीं बुझता, बल्कि धुएं का गुबार बनाते हुए और भड़कता है. 

israel allegedly dropping white phosphorus bomb in gaza amid hamas of palestine and israel war photo Twitter (X)

मल्टी-ऑर्गन फेल्योर का कारण बन सकता है

फॉस्फोरस बम चूंकि 13 सौ डिग्री सेल्सियस तक जल सकता है इसलिए ये आग से कहीं ज्यादा जलन और जख्म देता है. यहां तक कि ये हड्डियों तक को गला सकता है. कुल मिलाकर इसके संपर्क में आने पर इंसान जिंदा बच भी जाए तो किसी काम का नहीं रह जाएगा. वो लगातार गंभीर संक्रमण का शिकार होता रहेगा और उम्र अपने-आप कम हो जाएगी. कई बार ये त्वचा से होते हुए खून में पहुंच जाता है. इससे हार्ट, लिवर और किडनी सबको नुकसान पहुंचता है, और मरीज में मल्टी-ऑर्गन फेल्योर हो सकता है. 

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क्या है इस्तेमाल का इतिहास

दूसरे वर्ल्ड वॉर में इस बम का जमकर उपयोग हुआ था. खासकर अमेरिकी सेना ने जर्मनी के खिलाफ खूब बम गिराए. आरोप तो यहां तक है कि उसने सेना के अलावा जान-बूझकर रिहायशी इलाकों पर भी वाइट फॉस्फोरस की बमबारी शुरू कर दी ताकि देश पर दबाव बनाया जा सके.

हमला लगभग परमाणु अटैक जैसा खतरनाक था, जिसकी चर्चा कम हुई. इराक युद्ध में भी अमेरिकन मिलिट्री पर यही आरोप लगा था. ये आसान लेकिन बेहद खौफनाक तरीका है, जिससे दुश्मन देश पर दबाव बनाया जा सकता है. 

 israel allegedly drops white phosphorus bomb in gaza amid hamas of palestine and israel war photo Reuters

जेनेवा में लगा 'लगभग' प्रतिबंध

इस बम के खतरों को देखते हुए साल 1980 में जेनेवा कन्वेंशन में वाइट फॉस्फोरस को लगभग प्रतिबंधित किया गया. लगभग प्रतिबंधित यानी कुछ खास वजहों, जगहों पर इसका इस्तेमाल हो सकता है. कन्वेंशन ऑन सर्टेन कन्वेंशनल वेपन (CCW) के तहत जो प्रोटोकॉल बना, उसमें इसके कम से कम उपयोग की बात मानते हुए 115 देशों ने हस्ताक्षर किए.

क्या हुआ था तय

तय किया गया कि अगर इस बम का इस्तेमाल रिहायशी इलाकों में हुआ तो इसे केमिकल अटैक माना जाएगा, और देश पर वॉर क्राइम के तहत एक्शन हो सकता है. इसके बाद भी अमेरिकी सेना पर इस बम के गैरजरूरी इस्तेमाल का आरोप लगता रहा. कहा तो यहां तक गया कि अमेरिका चूंकि सबसे ताकतवर देश है इसलिए जानते हुए प्रोटोकॉल में कई कमियां छोड़ दी गईं ताकि वो बेझिझक बम अटैक कर सके. 

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 israel allegedly drops white phosphorus bomb in gaza amid hamas of palestine and israel war photo AP

इन बातों पर उठा विवाद 

एक तरफ तो परमाणु हमले से इसकी तुलना होती रही, दूसरी तरफ जेनेवा कन्वेंशन में तय हुए प्रोटोकॉल में कई सारे लूपहोल्स भी छोड़ दिए गए. जैसे रिहायशी इलाकों में हवा से जमीन पर वार करने वाले हथियारों पर रोक लगी हुई है, जबकि जमीन से जमीन पर हमला करने को लेकर कोई बात नहीं. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसी बात का फायदा उठाकर फॉस्फोरस बम से हमला हो सकता है. इसका हमला अगर सरफेस से भी हो तो भी खतरा कम नहीं होता. 

कौन से देश कटघरे में

- सीरियाई सिविल वॉर में संगठन आपस में ही इस बम से हमले करने लगे. इंटरनेशनल एनजीओ ह्यूमन राइट्स वॉच ने साल 2012 से अगले 6 सालों में ऐसे 90 से ज्यादा हमले गिने. 

- इजरायल ने कन्वेँशन पर दस्तखत नहीं किए. उसपर भी गाजा पट्टी में ऐसे अटैक का आरोप लगता रहा. कथित तौर पर उसने लेबनान पर भी केमिकल अटैक किया. 

- साल 2016 में सऊदी के नेतृत्व में यमन पर ये हमला किया गया था. 

- इस्लामिक स्टेट (ISIS) पर एक्शन लेते हुए अमेरिकी सेना ने भी सीरिया और इराक के कई इलाकों पर फॉस्फोरस बम गिराया.

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