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क्या बासमती एक्सपोर्ट करने के फेर में पानी का संकट मोल ले रहा देश, क्या है वर्चुअल वॉटर ट्रेड?

भारत के बासमती चावल का दबदबा पूरी दुनिया में बढ़ रहा है. हालांकि इस प्रीमियम चावल को उगाने की भारी कीमत भी हम चुका रहे हैं. जब हम बासमती एक्सपोर्ट करते हैं, तो साथ में पानी भी एक्सपोर्ट कर रहे होते हैं. चावल जमीन से इतना पानी सोखता है कि कई देशों ने इसकी खेती ही कम कर दी. वो चावल खाते तो जमकर हैं, लेकिन खरीदकर.

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कई देश ज्यादा पानी खर्च करने वाली फसलें नहीं उगा रहे हैं. (Photo- Unsplash)
कई देश ज्यादा पानी खर्च करने वाली फसलें नहीं उगा रहे हैं. (Photo- Unsplash)

अभी गर्मी शुरू भी नहीं हुई कि देश के कई हिस्सों से पानी की किल्लत की खबरें आ रही हैं. इस बीच हम लगातार टॉप चावल एक्सपोर्टर बने हुए हैं. इन दोनों बातों का सीधा कनेक्शन है. साल 2014-15 में भारत ने 37 लाख टन बासमती चावल दूसरे देशों को भेजा. लेकिन इसके साथ ही 10 ट्रिलियन लीटर पानी भी चला गया. ये वो पानी है, जो चावल की खेती में खर्च हुआ. ये वर्चुअल वॉटर ट्रेडिंग है. कई देशों ने ऐसी फसलें उपजानी लगभग बंद कर दीं, जो ज्यादा पानी पीती हैं. 

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इस तरह शुरू हुई वर्चुअल पानी पर बात

नब्बे के दशक में कई देशों ने एक नया काम किया. उनके पास उपजाऊ जमीन थी, और पानी भी था, लेकिन वे खेती, खासकर चावल, रूई और गन्ने की खेती से बचने लगे. वे इन चीजों को भारी कीमत पर दूसरे देशों से खरीदने लगे. लेकिन इसमें उनका घाटा नहीं था, बल्कि दूर की रणनीति थी. वे देश असल में अपना पानी बचाते हुए दूसरे देशों में जल-संकट पैदा कर रहे थे.

क्या है हिडेन वॉटर

साल 1993 में ब्रिटिश साइंटिस्ट जॉन एंथनी एलन ने पहली बार इस चालाकी पर बात की. लंदन के किंग्स  कॉलेज प्रोफेसर ने इसे नाम दिया वर्चुअल वॉटर डिप्लोमेसी. ये वो पानी है, जो किसी प्रोडक्ट या सर्विस को कस्टमर तक पहुंचाने में खर्च होता है. इसे हिडेन या इनडायरेक्ट वॉटर भी कहते हैं.

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virtual water trade basmati rice cultivation and connection with water scarcity photo Unsplash

एलन ने कहा कि जब भी कोई सामान या सर्विस दी जाए तो साथ में यह भी देखा जाए कि उसे तैयार करने में कितना पानी खर्च हुआ है. ये वो चीज है, जिसपर पहले कम ही लोगों का ध्यान गया था. मिसाल के तौर पर अगर आप किसी रेस्त्रां में पास्ता खाते हैं तो वहां टोटल कॉस्ट में ये भी देखा जाए कि पास्ता के लिए गेहूं उगाने से लेकर पास्ता बनाने तक कितना पानी खर्च हुआ होगा. 

प्रोडक्ट के पीछे कितना पानी लग रहा

अगर कोई देश या कंपनी कोई ऐसा प्रोडक्ट बनाती है, जो ज्यादा पानी खर्च करता हो, तो ये कंपनी पर ही बोझ नहीं, बल्कि इसका असर दुनिया पर भी होगा. जमीन से पानी घटता जाएगा. ये बात नजर भी आने लगी है. जैसे कर्नाटक या पंजाब ही बात लें तो फिलहाल वहां पानी की किल्लत हो रही है. ये वहां गन्ने और चावल की पैदावार का नतीजा है. पंजाब का भी यही हाल है, जो चावल की पैदावार करता रहा. 

इसका दूसरा पक्ष देखें

अगर कोई देश गेहूं या चावल का आयात करता है तो वो उसके साथ ही अनाज की पैदावार में लगने वाला पानी भी वर्चुअली आयात कर रहा है. जबकि खुद उसके यहां पानी की बचत हो रही है. ये दोहरा फायदा है, जबकि एक्सपोर्टर देश को नुकसान है. 

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virtual water trade basmati rice cultivation and connection with water scarcity photo Getty Images

दूसरे देशों की जमीन पर खेती

ज्यादा पानी खर्च करने वाली फसलों या उत्पाद को एक्वेटिक क्रॉप या एक्वेटिक प्रोडक्ट कहते हैं. कई यूरोपियन देश और अमेरिका, जापान में ऐसी चीजों का सीधे आयात हो रहा है. वहीं कई देश दूसरे देशों में जमीनें खरीदकर वहां ऐसी उपज कर रहे हैं. ये जमीनें लोन पर ली जाती हैं. गरीब देश इसकी इजाजत भी दे देते हैं. जैसे चीन ने खेती के लिए अफ्रीकी देशों में जमीन लीज पर ली हुई हैं. वो इसके जरिए वहां के संसाधनों को भरपूर इस्तेमाल कर रहा है. 

ये देश बचा रहे पानी

मिस्र में नील नदी है, जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी नदी है. किसी समय वहां चावल, कपास और सोया की जमकर खेती हुई. लेकिन पानी की कमी के बाद इस देश ने वॉटर -इंटेसिव फसलें उगानी कम कर दीं. यहां तक कि कई बार इस देश में चावल उगाने पर किसानों पर फाइन भी लगाया गया. चीन के पास दुनिया की तीसरी बड़ी नदी यांग्शी है, लेकिन वो भी ऐसी चीजें आयात करने पर जोर दे रहा है, जो पानी के मामले में खर्चीली हों. साथ ही वो लगातार ऐसी तकनीकें भी बना रहा है, जो कम पानी में ज्यादा उपज दे सकें. 

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वर्चुअल वॉटर बचाने के लिए कई देश तकनीकें बना रहे हैं. वे कम पानी के खर्च पर चावल, रूई और दलहन की खेती करने लगे हैं. ऐसी ही एक तकनीक है- सिस्टम ऑफ राइस इन्टेंसिफिकेशन. इसमें मिट्टी की क्वालिटी बढ़ाकर और वीड कंट्रोल के जरिए पानी की बचत की जा रही है. कई दूसरी भी तकनीकें हैं, जो कम खर्च में फसलें उगाती हैं. 

virtual water trade basmati rice cultivation and connection with water scarcity photo Getty Images

कौन से देश बाहर से मंगवा रहे एक्वेटिक प्रोडक्ट

प्रोफेशनल सर्विस फर्म प्राइस वॉटरहाउस कूपर्स के मुताबिक मिडिल ईस्ट के देश 85% फूड दूसरे देशों से मंगवाते हैं. इसमें अनाज के साथ मीट और फल-सब्जियां भी शामिल हैं. वहीं मैक्सिको मक्के के इंपोर्ट के जरिए हर साल 12 बिलियन क्यूबिक टन पानी बचाता है. यूरोप के ज्यादातर हिस्सों में पानी की कमी नहीं है, लेकिन तब भी यहां 40%  प्रोडक्ट या अनाज बाहर से मंगाए जा रहे हैं. चीन को लेकर कोई सीधा डेटा इस बारे में नहीं दिखता. 

कौन सी फसल पीती है कितना पानी

- एक किलोग्राम कपास उपजाने में 10 हजार लीटर पानी लगता है. 

- एक किलो धान की उपज के लिए 3 से 5 हजार लीटर पानी की जरूरत होती है. 

- गन्ने की फसल के लिए 1500 से 2500 मिलीमीटर पानी की जरूरत पड़ती है.

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- एक किलोग्राम सोया की पैदावार में लगभग 900 लीटर पानी लग जाता है. 

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