लगभग तबाह हो चुकी गाजा पट्टी पर इजरायली हमले अब भी हो रहे हैं. डोनाल्ड ट्रंप की भी इस जंग में एंट्री हो चुकी. वे बार-बार धमका रहे हैं कि अगर हमास ने बंधकों को नहीं लौटाया तो बचा-खुचा गाजा भी खत्म हो जाएगा. इस बीच ट्रंप ने ही गाजा के पुर्ननिर्माण के लिए एक प्रस्ताव दिया, जिसे अरब देशों ने नकार दिया. वजह? इसमें वहां रहती आबादी को गाजा छोड़कर जाना होगा, जिसका एक मतलब फिलिस्तीन के कंसेप्ट का कमजोर होना भी है. लेकिन हाल में एक खबर आई, जिसके मुताबिक सौ फिलिस्तीनी नागरिकों को रोजगार के लिए इंडोनेशिया भेजा जा सकता है.
खास बात ये है कि यह कदम इजरायल ने उठाया. तो क्या गाजा के लोगों के विस्थापन को लेकर सहमति बन रही है?
क्या इजरायल ने इसके लिए इंडोनेशिया को कोई रकम या आश्वासन दिया है?
और इंडोनेशिया ही क्यों?
टाइम्स ऑफ इजरायल की रिपोर्ट के अनुसार, गाजा में वॉलंटरी माइग्रेशन को बढ़ावा देने के लिए इजरायल ने एक पायलेट प्रोग्राम शुरू किया. मेजर जनरल गसन अलियन, जो कि गवर्नमेंट एक्टिविटीज इन टैरिटरीज को देख रहे हैं, उनकी लीडरशिप में ये प्रोग्राम डिजाइन किया गया. कथित तौर पर इसके तहत हजारों गाजावासियों को कामकाज के लिए इंडोनेशिया भेजा जा सकता है.
फर्स्टपोस्ट में द जेरुसलेम के हवाले से बताया गया कि ज्यादातर लोग कंस्ट्रक्शन सेक्टर में लगाए जाएंगे. मीडिया रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि फिलहाल 100 लोग वहां भेजे जाएंगे. अगर वे वहां ठीक से सैटल हो जाएं तो बाकी फिलिस्तीनी खुद ऐसा फैसला ले सकते हैं. ये भी हो सकता है कि आगे चलकर वे वहीं बस जाएं. हालांकि ये जर्काता पर निर्भर है कि क्या वो विवादित इलाके के लोगों को अपने यहां बसाना चाहेगा.
यहां एक दिलचस्प बात ये भी है कि गाजावासियों को जिस देश में भेजने की इजरायल कोशिश में है, उस देश के तेल अवीव के साथ डिप्लोमेटिक रिश्ते ही नहीं. दरअसल इंडोनेशिया एक मुस्लिम बहुल देश है जो फिलिस्तीन के सपोर्ट में रहने की वजह से इजरायल को मान्यता नहीं देता. साल 1949 में इंडोनेशिया की आजादी के बाद से ही उसने कभी तेल अवीव के साथ राजनीतिक रिश्ते नहीं रखे.
वहीं साल 1988 में उसने फिलिस्तीन को आधिकारिक मान्यता दे दी. इसके अलावा, ये देश ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) का हिस्सा है, जो आजाद फिलिस्तीन के लिए इजरायल से दूरी बरतता रहा. हालांकि दोनों के बीच अनौपचारिक व्यापारिक और पर्यटक संबंध जरूर हैं लेकिन वे सतही ही हैं.
फिर कैसे इजरायल का प्रस्ताव जर्काता ने स्वीकार किया
इस बारे में कोई ठोस जानकारी कहीं नहीं. इंडोनेशिया बिजनेस पोस्ट के अनुसार, वहां की मिनिस्ट्री ऑफ फॉरेन अफेयर्स ने ऐसे किसी भी एग्रीमेंट या चर्चा से इनकार किया, जिसके तहत फिलिस्तीन के लोग वहां बसाए जाने वाले हैं. माना जा रहा है कि इंडोनेशिया चूंकि फिलिस्तीन का सपोर्टर रहा है, लिहाजा वहां के लोगों की मदद के लिए ही उसने बैक डोर वार्ता में इसपर हामी भरी होगा . नई योजना के तहत लोगों को वहां अस्थाई तौर पर भेजा जाएगा, जहां वे नौकरी करेंगे. जर्काता पर जबरन का आर्थिक बोझ न आ जाए, इसके लिए इजरायल उसे आर्थिक मदद भी करेगा ताकि शरणार्थी ठीक से रह सकें.
क्या लोगों के पास वापस लौटने का भी विकल्प
गाजा पट्टी एक नाकेबंदी वाला इलाका है, जहां इजरायल और इजिप्ट दोनों ही सीमित आवाजाही की इजाजत देते हैं. जो लोग रोजगार के लिए बाहर गए हैं, लौट तो सकते हैं लेकिन तभी जब इजरायल को शक न हो. कई बार तेल अवीव बाहर गए लोगों को सिक्योरिटी रिस्क मानकर उनकी वापसी रोक सकता है. इधर मिस्र भी रफा क्रॉसिंग के जरिए गाजा से लोगों के आनेजाने पर नजर रखता है.
कई बार यह सीमा खोल दी जाती है, लेकिन सामान्य तौर पर इसपर रोक लगी होती है. जंग की स्थिति में कड़ाई और बढ़ जाती है. जैसे अक्टूबर 2023 में हमास और इजरायल जंग के बीच बहुत से लोग बाहर चले गए. अब फिलहाल उनकी वापसी संभव नहीं, जब तक कि इजरायल नर्म न पड़ जाए.
गए हुओं को लौटने का अधिकार
इंटरनेशनल लॉ राइट टू रिटर्न की बात करता है. यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (UDHR) का आर्टिकल 13 कहता है कि कि हर व्यक्ति को अपने देश लौटने का हक है. यूनाइटेड नेशन्स ने भी इसकी बात की. इसके अनुसार, फिलिस्तीनी शरणार्थियों को अपने घरों में लौटने या मुआवजा पाने का अधिकार है.
जबरन हटाने पर पाबंदी
इसके अलावा जेनेवा कन्वेंशन भी है. इसका आर्टिकल 49 कहता है कि किसी भी ऑक्युपाइंग पावर को जबरन आबादी को स्थानांतरित नहीं करना चाहिए. जैसे अभी के हालात को लें तो गाजा में आवाजाही पर एक तरह से इजरायल का पूरा कंट्रोल आ चुका, लेकिन वो चाहकर भी आबादी को अपनी मर्जी से यहां-वहां नहीं भेज सकता. यही कारण है कि इजरायल और अमेरिका कंस्ट्रक्शन प्लान तो दे रहे हैं लेकिन चूंकि इसमें विस्थापन भी होगा, तो वे योजना पर काम नहीं कर पा रहे.
गाजावासियों को क्यों नहीं दे रहे समर्थक देश आसरा
गाजा के आइडिया फिलिस्तीन को लगभग सारे ही मुस्लिम देश सपोर्ट कर रहे हैं लेकिन कोई भी वहां के शरणार्थियों को अपनाने को राजी नहीं. इसके पीछे कई ऐतिहासिक, राजनीतिक और रणनीतिक कारण रहे.
पहला तर्क ये दिया जाता रहा कि अगर गाजा के लोग ही जमीनें छोड़ने लगे तो फिलिस्तीन की आजादी की मुहिम कमजोर हो जाएगी. अरब देश चाहते हैं कि वहां के लोग बाहर न जाकर वहीं बसे रहें ताकि पहचान और आवाज बनी रहे. एक आशंका ये है कि अगर वे फिलिस्तीनियों को स्थाई तौर पर बसा लेंगे तो तेल अवीव को गाजा और वेस्ट बैंक पर कंट्रोल का मौका न मिल जाए.
लेकिन ये भी सच है कि समर्थन के बावजूद बाकी देशों को अपने यहां अस्थिरता का भी डर रहा. अरब देशों को कहीं न कहीं ये खतरा भी है कि अगर वे गाजा के लोगों को अपनाएंगे तो साथ में हमास या बाकी चरमपंथी गुटों के लोग भी आ सकते हैं. इससे आज नहीं तो कल उनकी खुद की सुरक्षा खतरे में आ जाएगी.
इसके अलावा लेबनान, जॉर्डन, और मिस्र जैसे मुल्क पहले से ही कई समस्याएं देख रहे हैं. अगर उन्होंने लाखों नए लोगों को शरण दी तो आर्थिक, सामाजिक बोझ भी बढ़ेगा. ऐसा हो भी चुका है. सत्तर के दशक में फिलिस्तीनी शरणार्थियों की बढ़ी आबादी के चलते स्थानीय लोगों में गुस्सा बढ़ा और लेबनान में सिविल वॉर के हालात बन गए थे.