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वक्फ बिल पर विपक्ष और मुस्लिम संगठनों की क्या आपत्तियां? समझें- संसद में पास होने की प्रक्रिया और नंबरगेम

सरकार का मानना है कि वक्फ संशोधन बिल से वक्फ संपत्तियों को रेगुलेट करने और ऐसी संपत्तियों से संबंधित विवादों को निपटाने का अधिकार मिलेगा. साथ ही सरकार का मत है कि बिल के जरिए वक्फ की संपत्ति का बेहतर इस्तेमाल हो सकेगा और मुस्लिम महिलाओं को भी मदद मिल पाएगी.

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बिल के खिलाफ मुस्लिम संगठनों का प्रदर्शन
बिल के खिलाफ मुस्लिम संगठनों का प्रदर्शन

संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण चल रहा है और अगले हफ्ते वक्फ संशोधन बिल को सदन में पेश किया जा सकता है. यह बिल 8 अगस्त 2024 को लोकसभा में पेश हुआ था लेकिन इस पर हंगामे के बाद बिल को जेपीसी के पास भेज दिया गया था. लेकिन अब कभी भी सरकार को इस बिल को पारित कराने के लिए लोकसभा में ला सकती है. इस बिल से मुस्लिम संगठनों से लेकर विपक्षी दल नाराज हैं और उनका आरोप है कि सरकार बिल के जरिए वक्फ की संपत्तियों पर कब्जा करना चाहती है.

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बिल पर सरकार Vs विपक्ष

सरकार का मानना है कि वक्फ संशोधन बिल से वक्फ संपत्तियों को रेगुलेट करने और ऐसी संपत्तियों से संबंधित विवादों को निपटाने का अधिकार मिलेगा. साथ ही सरकार का मत है कि बिल के जरिए वक्फ की संपत्ति का बेहतर इस्तेमाल हो सकेगा और मुस्लिम महिलाओं को भी मदद मिल पाएगी. बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता वाली जेपीसी ने इस साल 27 जनवरी को बीजेपी और उसके सहयोगियों की ओर से बिल के लिए प्रस्तावित 14 संशोधनों को मंजूरी दी, जबकि विपक्ष की ओर से प्रस्तावित 44 संशोधनों को खारिज कर दिया.

वक्फ बिल को लेकर मुख्य रूप से मुस्लिम संगठनों और विपक्ष की चार प्रमुख आपत्तियां हैं.

1. वक्फ के किसी संपत्ति विवाद पर अब फैसले के लिए खिलाफ हाई कोर्ट जा सकते हैं. हालांकि पहले वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला ही आखिरी माना जाता था.
2. अब दान किए बिना किसी संपत्ति पर वक्फ अपना अधिकार नहीं जता सकता, लेकिन इससे पहले दावे के साथ ही कोई भी संपत्ति वक्फ का अधिकार हो जाती थी.
3. वक्फ बोर्ड में महिला और अन्य धर्म से दो सदस्य होने चाहिए. लेकिन पहले बोर्ड में महिला और अन्य धर्म के सदस्य नहीं होते थे. 
4. कलेक्टर वक्फ की संपत्ति का सर्वेक्षण कर सकेगा और उसे संपत्ति का निर्धारण करने का अधिकार दिया गया है.

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बिल में कलेक्टर के पास सरकारी संपत्ति को गलत तरीके से वक्फ की संपत्ति घोषित करने की जांच का अधिकार होगा. हालांकि इसे लेकर जेपीसी ने सिफारिश की थी कि कलेक्टर से बड़े रैंक के किसी अधिकारी को इस काम में लगाया जाए जिसे राज्य सरकार नामित करेगी. वहीं वक्फ की संपत्ति का 6 माह के भीतर पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन जरूरी होगा, इसे लेकर जेपीसी ने मांग की थी कि सही कारण होने पर समयसीमा बढ़ाई जाए. इसी तरह बिल में प्रावधान है कि वक्फ संपत्ति नोटिफाई होने के 15 दिन में पोर्टल पर अपलोड करना होगा, इसे लेकर जेपीसी ने समयसीमा को 90 दिन तक बढ़ाने की सिफारिश की है. 

मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि यह बिल मुसलमानों के धार्मिक और संवैधानिक अधिकारों के लिए खतरा है. उनका मानना है कि वक्फ संपत्तियां सरकारी संपत्ति नहीं बल्कि धार्मिक ट्रस्ट की हैं और यह बिल वक्फ की स्वायत्तता को छीनने वाला है. आरोप है कि यह विधेयक 1995 के मौजूदा वक्फ एक्ट में ऐसे बदलाव करता है, जिससे सरकार को वक्फ संपत्तियों के मैनेजमेंट में दखल देने का अधिकार मिल जाता है.

क्या होता है वक्फ

इस्लामी परंपरा में वक्फ मुसलमानों के फायदे के लिए किया गया धार्मिक दान है. ऐसी संपत्तियों को बेचा या किसी अन्य उद्देश्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और न ही उन्हें विरासत में हासिल किया जा सकता है, बल्कि वे हमेशा अल्लाह के मार्ग में समर्पित रहती हैं. वक्फ की गई संपत्ति पर दोबारा दावा नहीं किया जा सकता. देश में इनमें से बड़ी तादाद में संपत्तियों का इस्तेमाल मस्जिदों, मदरसों और कब्रिस्तानों के लिए किया जाता है और कई अन्य संपत्ति खाली पड़ी हैं या उन पर अतिक्रमण हो चुका है.

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फिलहाल ये सारी वक्फ संपत्तियां वक्फ एक्ट 1995 के अधीन हैं, जो उनके मैनेजमेंट और प्रशासन के लिए राज्य स्तरीय बोर्डों के गठन को अनिवार्य बनाता है. इन बोर्डों में राज्य सरकार के नॉमिनेट मेंबर, मुस्लिम विधायक, राज्य बार काउंसिल के सदस्य, इस्लामिक स्कॉलर और वक्फ संपत्तियों के प्रशासक शामिल होते हैं.

बोर्ड पर 9 लाख एकड़ जमीन

सरकार के मुताबिक वक्फ बोर्ड भारत में सबसे बड़े भूस्वामियों में से एक है. देश भर में कम से कम 8,72,351 वक्फ संपत्तियां हैं, जो 9 लाख एकड़ से ज्यादा इलाके में फैली हुई हैं, जिनकी अनुमानित कीमत एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है. वक्फ बोर्ड भारत में सशस्त्र बलों और भारतीय रेलवे के बाद सबसे बड़ा भूस्वामी है. सरकार का आरोप है कि वक्फ संपत्तियों और वक्फ बोर्डों में भ्रष्टाचार काफी ज्यादा है और इसे सुधारने के लिए ही वक्फ संशोधन बिल लाया गया है.

जंतर मंतर पर बिल के खिलाफ प्रदर्शन (फोटो: India Today)

संसद में क्या है नंबर गेम

संसद में विधेयक पारित कराना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण नहीं रहने वाला क्योंकि बिल पहले ही जेपीसी से होकर आ रहा है. वहीं 542 सदस्यों वाली लोकसभा में सरकार के पास पर्याप्त बहुमत है और ध्वनिमत के अलावा अगर बिल पर वोटिंग (डिवीजन) भी कराई जाती है तो सदन से यह बिल आसानी से पारित हो जाएगा. लोकसभा में फिलहाल एनडीए के पास 293 सांसद हैं जिनमें बीजेपी के 240 सदस्य शामिल हैं. वहीं कांग्रेस के 99 सांसदों के साथ INDIA ब्लॉक के पास 233 सांसद हैं. इसके अलावा कुछ सांसद निर्दलीय जीतकर आए हैं तो कुछ ऐसे हैं जो एनडीए और इंडिया ब्लॉक किसी का भी हिस्सा नहीं हैं.  

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इसी तरह राज्यसभा में फिलहाल सदस्यों की संख्या 236 है, जिसमें बीजेपी के पास अपने 98 सदस्य हैं. वहीं एनडीए के सदस्यों की संख्या 115 के आसपास है. आम तौर पर सरकार के पक्ष में वोट डालने वाले छह नॉमिनेट सदस्यों के साथ एनडीए का संख्याबल बढ़कर 120 से ज्यादा हो जाता है, जो बहुमत के मौजूदा आंकड़े को आसानी से पार कर लेगा

ऊपरी सदन में कांग्रेस के 27 सदस्य, जबकि उसके सहयोगी दलों के 58 सदस्य हैं, जिससे राज्यसभा में विपक्षी गठबंधन के कुल सदस्यों की संख्या 85 के आसापास हैय राज्यसभा में सदस्यों की बड़ी संख्या वाली अन्य पार्टियों में YSR कांग्रेस के पास 9 और बीजेडी के पास 7 सदस्य हैं. AIADMK के पास चार सदस्य और तीन निर्दलीय और छोटे दलों के सदस्य है, जो एनडीए या इंडिया ब्लॉग किसी के भी साथ नहीं हैं. 

बिल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

बिल के विरोध में सोमवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की अगुवाई में प्रदर्शन हुआ. इसमें असदुद्दीन ओवैसी समेत तमाम विपक्षी दलों के प्रतिनिधि शामिल हुए. बोर्ड का कहना है कि संसद में बिल का विरोध करने के लिए एनडीए के प्रमुख घटक दल जेडीयू नेता नीतीश कुमार और टीडीपी सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू से AIMPLB सदस्यों ने बात की है. इन नेताओं से अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा के लिए सदन में विधेयक का विरोध करने की अपील की गई है.

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ऐसे में अगर संसद में इन दोनों ही प्रमुख दलों का रुख एनडीए के खिलाफ जाता है तो विधेयक पारित कराने में सरकार को मुश्किल हो सकती है, लेकिन मौजूदा हालात में ऐसी किसी बात की संभावना न के बराबर है. जेडीयू और टीडीपी पहले ही बिल को लेकर अपना समर्थन जता चुकी हैं.

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